नयी दिल्ली, 12 जनवरी (भाषा) अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट से एयरलाइन एयर इंडिया की लागत संरचना और लाभप्रदता पर दबाव पड़ता है। कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हालांकि, एयरलाइन के पास कुछ प्राकृतिक बचाव है क्योंकि यह उन अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए अधिक किराया ले सकती है जहां टिकटों की कीमत विदेशी मुद्राओं में होती है।
हाल के सप्ताहों में भारतीय रुपया गिरता रहा है और 10 जनवरी को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86.04 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। कमजोर रुपये के कारण एयरलाइन कंपनियों के परिचालन खर्च बढ़ता है, क्योंकि उनकी अधिकांश लागत डॉलर में होती है।
एयर इंडिया के मुख्य वाणिज्यिक अधिकारी (सीसीओ) निपुण अग्रवाल ने कहा कि रुपये में गिरावट निश्चित रूप से उद्योग और एयर इंडिया के लिए एक चुनौती है, और उत्पादकता में सुधार और अन्य पहल करके स्थिति से निपटना होगा।
इसी सप्ताह उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “रुपये में गिरावट से हमारी लागत संरचना पर दबाव पड़ता है क्योंकि हमारी अधिकांश लागत डॉलर में है, सिवाय मानव संसाधन लागत के जो स्थानीय मुद्रा में है। रुपये में जितनी गिरावट होगी, हमारी लागत संरचना और लाभप्रदता पर उतना ही अधिक दबाव पड़ेगा।”
एयर इंडिया समूह प्रतिदिन 1,168 उड़ानें संचालित करता है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों के लिए 313 सेवाएं शामिल हैं। इन विदेशी उड़ानों में से 244 छोटी दूरी की और 69 लंबी दूरी की हैं।
इस समूह में एयर इंडिया और कम लागत वाली एयरलाइन एयर इंडिया एक्सप्रेस शामिल हैं।
पिछले साल, एयर इंडिया ने विस्तारा को अपने साथ मिला लिया और एआईएक्स कनेक्ट को एयर इंडिया एक्सप्रेस के साथ एकीकृत कर दिया गया।
अग्रवाल के अनुसार, एयरलाइन के पास कुछ प्राकृतिक बचाव है क्योंकि यह अन्य एयरलाइनों की तुलना में बहुत अधिक अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भरती है।
उन्होंने कहा, “इसलिए, हम अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा में शुल्क ले सकते हैं और हम अपने ग्राहकों पर इसका कुछ प्रभाव डाल सकते हैं क्योंकि हम डॉलर या जो भी मुद्रा उपलब्ध है, उसमें मूल्य निर्धारण करते हैं।”
साथ ही, अग्रवाल ने कहा कि हर चीज की कीमत विदेशी मुद्रा में नहीं होती।
उन्होंने कहा, “यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर भी हमारा कुछ प्रभाव पड़ता है, लेकिन उनमें से कुछ को हमारे पास मौजूद दवाब से कम किया जा सकता है, लेकिन इससे हमारी लाभप्रदता प्रभावित होती है और बाजार में किराए पर दबाव पड़ता है।”
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