मुंबई, 30 जनवरी (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक ने बृहस्पतिवार को केंद्रीय बैंक की प्रवर्तन कार्रवाई को तर्कसंगत और समेकित करने के मकसद से भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम के तहत मौद्रिक जुर्माना और समझौता करने लायक (कम्पाउंडिंग) अपराधों को लेकर मानदंडों को कड़ा किया।
संशोधित रूपरेखा के तहत भुगतान प्रणाली परिचालकों और बैंकों के लिए प्राधिकरण के बिना अनुमति के भुगतान प्रणाली का संचालन, प्रतिबंधित सूचना का खुलासा करने और निर्धारित अवधि के भीतर रिजर्व बैंक द्वारा लगाए गए जुर्माने का भुगतान करने में विफल रहना, भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम (पीएसएस अधिनियम) के तहत अपराध की श्रेणी में आता है।
रूपरेखा के अनुसार, रिजर्व बैंक को उल्लंघन/चूक के मामले में 10 लाख रुपये या मामले में जुड़ी राशि का दोगुना, इसमें जो भी ज्यादा हो, जुर्माना लगाने का अधिकार है।
इससे पहले, आरबीआई को पांच लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का अधिकार था। यह राशि जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम, 2023 के लागू होने के बाद बढ़ायी गयी थी, जो 22 जनवरी, 2024 को लागू हुआ।
ऐसे मामलों में जहां ऐसा उल्लंघन या चूक जारी है, पहले जुर्माने के बाद हर दिन के लिए 25,000 रुपये तक का अतिरिक्त जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यह जुर्माना तबतक लगाया जा सकता है जबतक नियमों का उल्लंघन या चूक जारी रहती है।
इसमें कहा गया है कि पीएसएस अधिनियम, रिजर्व बैंक के अधिकारी को समझौता करने लायक उल्लंघनों से जुड़े मामलों के निपटान को लेकर अधिकृत करता है। ये अपराध ऐसे नहीं होने चाहिए जिसमें कारावास या जेल तथा जुर्माने का प्रावधान है।
आरबीआई ने कहा कि केवल भौतिक उल्लंघनों पर ही मौद्रिक जुर्माना लगाने या अपराधों को कम करने के रूप में प्रवर्तन कार्रवाई की जाएगी।
यह व्यवस्था मौद्रिक जुर्माना लगाने और जुर्माने की राशि निर्धारित करने की प्रक्रिया भी प्रदान करती है।
भाषा रमण अजय
अजय
Follow us on your favorite platform:
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)