अगले वित्त वर्ष में 6.3-6.8 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद, विवेकपूर्ण नीति प्रबंधन जरूरीः समीक्षा |

अगले वित्त वर्ष में 6.3-6.8 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद, विवेकपूर्ण नीति प्रबंधन जरूरीः समीक्षा

अगले वित्त वर्ष में 6.3-6.8 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद, विवेकपूर्ण नीति प्रबंधन जरूरीः समीक्षा

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Modified Date: January 31, 2025 / 07:18 PM IST
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Published Date: January 31, 2025 7:18 pm IST

(तस्वीर के साथ)

नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) मजबूत व्यापक-आर्थिक बुनियाद के दम पर भारत की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2025-26 में 6.3-6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ने की संभावना है। हालांकि, वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए रणनीतिक और विवेकपूर्ण नीति प्रबंधन की जरूरत होगी। आर्थिक समीक्षा 2024-25 में यह बात कही गई है।

शुक्रवार को संसद में पेश की गई आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चार साल के निचले स्तर 6.4 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है, जो इसके एक दशक के औसत के करीब है।

वित्त वर्ष 2024-25 का आर्थिक लेखा-जोखा पेश करते हुए कहा गया है कि वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लिए देश को दो दशक तक आठ प्रतिशत की दर से वृद्धि करनी होगी।

हालांकि, इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को निवेश दर मौजूदा 31 प्रतिशत से बढ़ाकर जीडीपी का 35 प्रतिशत करना होगा और विनिर्माण क्षेत्र पर अधिक ध्यान देना होगा। इसके अलावा कृत्रिम मेधा (एआई), रोबोटिक्स और जैव-प्रौद्योगिकी जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में भी निवेश करना होगा।

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन के नेतृत्व वाली टीम द्वारा तैयार की गई आर्थिक समीक्षा कहती है कि घरेलू अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व मजबूत बने हुए हैं, जिसमें मजबूत बाहरी खाता, संतुलित राजकोषीय सशक्तीकरण और स्थिर निजी खपत शामिल है।

आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट कहती है, ‘‘इन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए हमें उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2025-26 में आर्थिक वृद्धि दर 6.3 और 6.8 प्रतिशत के बीच रहेगी।’’

इसी के साथ कहा गया है कि वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए रणनीतिक एवं विवेकपूर्ण नीति प्रबंधन और घरेलू मूल सिद्धांतों को मजबूत करने की जरूरत होगी।

समीक्षा रिपोर्ट के मुताबिक, स्थिर वृद्धि पथ से वर्ष 2024 के लिए वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को एक आकार मिलता है हालांकि क्षेत्रीय रुझान अलग-अलग हो सकते हैं।

निकट अवधि में वैश्विक वृद्धि का आंकड़ा रुझानों के स्तर से थोड़ा नीचे रह सकता है। भारत में उल्लेखनीय जुझारूपन दिखाते हुए सेवा क्षेत्र वैश्विक विस्तार को आगे बढ़ाने का काम कर रहा है।

इस बीच, यूरोप में विनिर्माण क्षेत्र संघर्ष कर रहा है, जहां संरचनात्मक खामियां बरकरार हैं। अगले वर्ष के लिए व्यापार परिदृश्य भी धुंधला बना हुआ है।

आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति के दबाव कम हो रहे हैं लेकिन पश्चिम एशिया में तनाव और रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे भू-राजनीतिक गतिरोधों के कारण संबद्ध मूल्य दबाव के जोखिम बने हुए हैं।

आर्थिक समीक्षा कहती है, ‘‘हालांकि, वित्त वर्ष 2025-26 में घरेलू निवेश, उत्पादन वृद्धि और मुद्रास्फीति में नरमी के रूप में कई सकारात्मक पहलू दिख रहे हैं। लेकिन इतने ही सशक्त और प्रमुख रूप से बाहरी नकारात्मक पहलू भी हैं।’’

रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनने की आकांक्षा साकार करने के लिए यह अहम है कि मध्यम अवधि के वृद्धि परिदृश्य का मूल्यांकन भू-आर्थिक विखंडन (जीईएफ), चीनी विनिर्माण ताकत और ऊर्जा बदलाव प्रयासों के लिए चीन पर वैश्विक निर्भरता की उभरती वैश्विक वास्तविकताओं के संदर्भ में किया जाए।

आर्थिक समीक्षा प्रणालीगत विनियमन के एक केंद्रीय तत्व पर ध्यान केंद्रित कर वृद्धि के आंतरिक इंजन और घरेलू प्रोत्साहकों को फिर से सक्रिय करने का एक तरीका भी पेश करती है।

नागेश्वरन ने आर्थिक समीक्षा की प्रस्तावना में कहा है कि देश में केंद्र एवं राज्यों की सरकारें उद्यमियों और परिवारों को उनका समय एवं मानसिक संतुष्टि देने का सबसे कारगर तरीका अपना सकती हैं जो कि नियमन में कटौती का तरीका हो सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘इसका मतलब आर्थिक गतिविधि का सूक्ष्म प्रबंधन बंद करना और जोखिम-आधारित नियमन को अपनाना और उस पर अमल करना है।’’

उन्होंने कहा कि प्रभावी सरकारी नीतियों का मतलब नियमन के सिद्धांत को ‘दोषी साबित होने तक दोषी’ से बदलकर ‘दोषी साबित होने तक निर्दोष’ करना भी है।

भाषा प्रेम प्रेम अजय

अजय

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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)