नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) बंदरगाहों पर देरी और बोझिल नियामकीय जरूरतों से देश की आयातित इस्पात पर निर्भर 10,000 से अधिक इकाइयां संकट में आ गई हैं।
शोध संस्थान जीटीआरआई ने सोमवार को कहा कि सरकार को इस क्षेत्र की मदद के लिए आयात प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और प्रणालियों को डिजिटल बनाने पर विचार करना चाहिए।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने बयान में कहा, आयात प्रतिबंध तथा गुणवत्ता नियंत्रण उपायों सहित घरेलू इस्पात विनिर्माताओं की सुरक्षा के मकसद से बनाई गई नीतियों ने अनजाने में आयातित इस्पात पर निर्भर उद्योगों को परेशानी में डाल दिया है।
इसमें कहा गया, 10,000 से अधिक इकाइयां परिचालन तथा वित्तीय चुनौतियों से जूझ रही हैं, जिससे उनकी उत्पादन और निर्यात क्षमता पर खतरा मंडरा रहा है।
जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘ बंदरगाहों पर देरी और लालफीताशाही भारत के इस्पात उपयोगकर्ता उद्योगों के लिए परेशानी बनी हुई है। बंदरगाहों पर देरी और अस्पष्ट नियामक आवश्यकताओं के कारण इस्पात पर निर्भर 10,000 से अधिक इकाइयों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। विनिर्माण उद्योगों के लिए आवश्यक आयात अत्यधिक जांच से गुजरते हैं।’’
सरकार ने आयात पर निगरानी रखने के लिए इस्पात आयात निगरानी प्रणाली (एसआईएमएस) शुरू की, जिसके तहत माल आने से पहले विस्तृत घोषणा करना अनिवार्य कर दिया गया।
इसके अतिरिक्त, गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) विशिष्ट इस्पात उत्पादों के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के साथ पंजीकरण अनिवार्य करता है।
हालांकि, उन्होंने कहा कि सीमा शुल्क विभाग ने इन आवश्यकताओं को अंधाधुंध तरीके से बढ़ा दिया है तथा क्यूसीओ के दायरे से बाहर की वस्तुओं के लिए भी बीआईएस अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) की मांग की है।
भारत के इस्पात का इस्तेमाल करने वाले उद्योगों ने सरकार से स्पष्ट, पारदर्शी और कुशल प्रक्रिया सुनिश्चित करने का आग्रह किया है।
जीटीआरआई ने कहा कि यदि आयात प्रतिबंध आवश्यक हैं, तो उन्हें प्रक्रियागत बाधाओं के बजाय सुपरिभाषित नीतियों के जरिये क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
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