प्रधानमंत्री सिविल सेवा अधिकारियों का चयन प्रबंधन स्कूल से करने पर कर सकते विचार: नारायणमूर्ति |

प्रधानमंत्री सिविल सेवा अधिकारियों का चयन प्रबंधन स्कूल से करने पर कर सकते विचार: नारायणमूर्ति

प्रधानमंत्री सिविल सेवा अधिकारियों का चयन प्रबंधन स्कूल से करने पर कर सकते विचार: नारायणमूर्ति

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Modified Date: November 14, 2024 / 10:23 PM IST
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Published Date: November 14, 2024 10:23 pm IST

मुंबई, 14 नवंबर (भाषा) इन्फोसिस के सह-संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति ने बृहस्पतिवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सार्वजनिक सेवाओं की डिलिवरी में व्यापक रूप से सुधार के लिए यूपीएससी परीक्षा पर निर्भर रहने के बजाय प्रबंधन स्कूलों से सिविल सेवा अधिकारियों के चयन पर विचार कर सकते हैं।

उन्होंने यहां सीएनबीसी टीवी18 के एक कार्यक्रम में कहा कि यह प्रशासनिक मानसिकता से प्रबंधन उन्मुख बदलाव का हिस्सा होगा।

मूर्ति ने कहा कि प्रबंधन का रुख दूरदर्शिता, उच्च आकांक्षा, असंभव को हासिल करना, लागत नियंत्रण, लोगों का भरोसा बढ़ाना और चीजों को तेजी से पूरा करना है, जबकि प्रशासनिक दृष्टिकोण यथास्थिति पर जोर देता है।

उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी ने हमारी अर्थव्यवस्था को गति देने के मामले में अब तक शानदार काम किया है। संभवत: वह अब इस बात पर गौर कर सकते हैं कि सरकार में क्या हमें प्रशासकों के बजाय अधिक प्रबंधकों की आवश्यकता है।’’

मूर्ति ने कहा कि सरकार को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) प्रतिभा के लिए मौजूदा प्रणाली के बजाय प्रबंधन स्कूलों का उपयोग करने की आवश्यकता है। मौजूदा प्रणाली में उम्मीदवार संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित अत्यधिक प्रतिस्पर्धी परीक्षा में शामिल होकर तीन या चार विषयों की परीक्षा देते हैं।

एक बार जब उम्मीदवार का चयन हो जाता है, तो उसे प्रशिक्षण के लिए मसूरी (लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी) ले जाया जाएगा। वहां उसे विशेष क्षेत्र कृषि, रक्षा या विनिर्माण में प्रशिक्षित किया जाएगा। यह सामान्य प्रशासक बनाने की मौजूदा व्यवस्था से अलग होगा।

मूर्ति ने कहा कि सफल उम्मीदवार प्रशिक्षण समाप्त होने के बाद विषय के विशेषज्ञ बन जाएंगे और 30-40 साल तक अपने संबंधित क्षेत्र में देश की सेवा करेंगे।

उन्होंने कहा कि मौजूदा प्रशासनिक रुख 1858 से जुड़ा है। इसमें बदलाव लाने की जरूरत है।

इन्फोसिस के सह-संस्थापक ने लोगों की मानसिकता को बदलने की अपील करते हुए कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि भारत एक ऐसा राष्ट्र बनेगा जो सिर्फ प्रशासन उन्मुख होने के बजाय प्रबंधन उन्मुख होगा।’’

मूर्ति ने निजी क्षेत्र में सेवारत बुद्धिजीवियों को कैबिनेट मंत्री के स्तर के बराबर समितियों के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने और मंत्री और नौकरशाहों के हर बड़े निर्णय को मंजूरी देने का भी सुझाव दिया।

उन्होंने कहा कि किसी भी देश में सरकारी दखल को कम करने, कार्रवाई में सुस्ती और अक्षमता को कम करने की आवश्यकता है।

सप्ताह में 70 घंटे काम करने पर उनकी विवादास्पद टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर मूर्ति ने कहा कि वह अपनी टिप्पणी पर कायम हैं। उन्होंने कहा कि मोदी भी सप्ताह में 100 घंटे काम करते हैं।

मूर्ति ने कहा कि जब 1986 में इन्फोसिस में कामकाज सप्ताह में पांच दिन किया गया, तो उन्हें निराशा हुई। लेकिन वह स्वयं सप्ताह के साढ़े छह दिन 14 घंटे काम करते थे। उन्होंने 2014 में कंपनी में कार्यकारी पद छोड़ दिया था।

भाषा रमण अजय

अजय

 

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