नयी दिल्ली, 25 मार्च (भाषा) मनरेगा, ईपीएफओ और ईएसआईसी जैसी केंद्र सरकार की 34 प्रमुख योजनाओं में एन्क्रिप्टेड आधार का उपयोग करके लाभार्थियों के 200 करोड़ से अधिक रिकॉर्ड प्रसंस्कृत किए गए। एक आधिकारिक बयान में मंगलवार को यह जानकारी दी गई।
श्रम और रोजगार मंत्रालय ने बयान में कहा कि भारत के सामाजिक सुरक्षा आंकड़ों को एक जगह लाने की कवायद का चरण-1 भी शुरू हो गया है।
बयान में कहा गया कि देश ने आईएलओ (अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन) के सहयोग से एक व्यापक आंकड़ा-एकत्रीकरण कवायद के जरिये अपने सामाजिक सुरक्षा दायरे को बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
इसके मुताबिक, ‘‘मनरेगा, ईपीएफओ, ईएसआईसी, एपीवाई और पीएम-पोषण जैसी 34 प्रमुख केंद्रीय योजनाओं में एक विशिष्ट पहचानकर्ता के रूप में एन्क्रिप्टेड आधार का उपयोग करके, विशिष्ट लाभार्थियों की पहचान करने के लिए 200 करोड़ से अधिक रिकॉर्ड प्रसंस्कृत किए गए।’’
इस कवायद से पता चला कि भारत की 65 प्रतिशत आबादी (92 करोड़ लोग) कम से कम एक सामाजिक सुरक्षा लाभ (नकद और वस्तु दोनों) के तहत आती है। इनमें से 48.8 प्रतिशत को नकद लाभ मिलता है।
मंत्रालय ने कहा कि आईएलओ ने भारत के मौजूदा सामाजिक सुरक्षा दायरे का आकलन 48.8 प्रतिशत किया है, जो कम है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इसमें लोगों को दिए जाने वाले वस्तु लाभों को शामिल नहीं किया गया है।
इस आंकड़े को ध्यान में रखने के बाद भारत का वास्तविक सामाजिक सुरक्षा दायरा बहुत अधिक होने की उम्मीद है।
आंकड़ा एकत्रीकरण के बारे में मंत्रालय ने कहा कि यह कवायद न केवल सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में भारत की अग्रणी स्थिति को मजबूत करेगी, बल्कि केंद्र सरकार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को बेहतर ढंग से कल्याणकारी खर्च करने में मददगार भी होगी।
बयान के मुताबिक, केंद्रीय स्तर पर आंकड़े जमा करने के लिए चरण-1 में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और गुजरात को शामिल किया जाएगा।
भाषा पाण्डेय अजय
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