पर्यावरण-अनुकूल होने संबंधी भ्रामक दावों पर लगाम के लिए नए दिशानिर्देश जारी |

पर्यावरण-अनुकूल होने संबंधी भ्रामक दावों पर लगाम के लिए नए दिशानिर्देश जारी

पर्यावरण-अनुकूल होने संबंधी भ्रामक दावों पर लगाम के लिए नए दिशानिर्देश जारी

:   Modified Date:  October 15, 2024 / 03:50 PM IST, Published Date : October 15, 2024/3:50 pm IST

नयी दिल्ली, 15 अक्टूबर (भाषा) सरकार ने कंपनियों के पर्यावरण नियंत्रण संबंधी भ्रामक दावों और ‘ग्रीनवाशिंग’ गतिविधियों के नियमन के लिए मंगलवार को व्यापक दिशानिर्देश जारी किए। इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं की सुरक्षा करना और पर्यावरण अनुकूल उत्पादों के विपणन में पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।

‘ग्रीनवाशिंग’ एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कोई कंपनी अपने उत्पादों को पर्यावरण के लिहाज से सुरक्षित होने के बारे में गलत धारणा या भ्रामक जानकारी देती है।

ग्रीनवाशिंग पर लगाम लगाने के लिए उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने नए दिशा-निर्देश जारी किए। इसके जरिये सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि पर्यावरण के अनुकूल होने संबंधी दावे सत्यापन योग्य साक्ष्य और स्पष्ट खुलासे द्वारा समर्थित हों।

उपभोक्ता मामलों की सचिव निधि खरे ने कहा कि ये दिशानिर्देश पर्यावरणीय दावों पर रोक नहीं लगाते हैं लेकिन वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि दावे ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ किए जाएं।

उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘दावों को सत्यापन योग्य साक्ष्य और स्वतंत्र अध्ययनों द्वारा समर्थित होना चाहिए। मसलन, अब ‘100 प्रतिशत पर्यावरण-अनुकूल’ और ‘शून्य उत्सर्जन’ जैसे शब्दों को सटीक और सुलभ पात्रताओं के साथ प्रमाणित किया जाना चाहिए।’

ये दिशानिर्देश स्पष्ट मापदंड स्थापित करने के लिए ‘ग्रीनवाशिंग’ और ‘पर्यावरणीय दावों’ की परिभाषाएं भी निर्धारित करते हैं।

कंपनियों को तकनीकी शब्दों के लिए उपभोक्ता-अनुकूल भाषा का इस्तेमाल करने की जरूरत होती है जबकि तुलनात्मक पर्यावरणीय दावे सत्यापित किए जा सकने लायक और प्रासंगिक आंकड़ों पर आधारित होने चाहिए।

उपभोक्ता मामलों की सचिव ने कहा कि आकांक्षी या भविष्य के पर्यावरणीय दावे केवल तभी किए जा सकते हैं जब उन्हें स्पष्ट और कार्रवाई योग्य योजनाओं से समर्थन दिया जाए।

नए दिशानिर्देशों के मुताबिक, पर्यावरणीय दावे करने वाली कंपनियों को विज्ञापनों या संचार में सभी महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा करना चाहिए, चाहे वह क्यूआर कोड, यूआरएल या अन्य डिजिटल मीडिया के माध्यम से हो। उन्हें यह बताना होगा कि क्या दावा पूरे उत्पाद, इसकी निर्माण प्रक्रिया, पैकेजिंग, उपयोग या निपटान को संदर्भित करता है।

वहीं ‘कम्पोस्टेबल’, ‘डिग्रेडेबल’, ‘पुनर्चक्रण योग्य’ और ‘शुद्ध-शून्य’ जैसे दावे विश्वसनीय प्रमाणन, भरोसेमंद वैज्ञानिक साक्ष्य या तीसरे पक्ष के सत्यापन से समर्थित होने चाहिए। ये खुलासे उपभोक्ताओं के लिए आसानी से सुलभ होने चाहिए।

हालांकि ये दिशानिर्देश मौजूदा नियमों के साथ ही प्रभावी होंगे लेकिन किसी भी विशिष्ट कानून के साथ टकराव की स्थिति में नया कानून ही मान्य होगा। व्याख्या में अस्पष्टता या विवाद के मामलों में केंद्रीय प्राधिकरण का निर्णय अंतिम होगा।

भाषा प्रेम प्रेम रमण

रमण

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)