नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य हासिल करने के लिए नीतिगत और व्यापक आर्थिक परिणामों को आकार देने में वित्तीय बाजारों के वर्चस्व यानी ‘वित्तीयकरण’ को लेकर सावधान रहने की जरूरत है। आर्थिक समीक्षा 2024-25 में यह बात कही गई है।
शुक्रवार को संसद में पेश की गई आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, वित्तीयकरण के चलते उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के कर्जों का अभूतपूर्व स्तर देखने को मिला है। इसके कुछ प्रभाव नियामकों को दिखाई देते हैं जबकि कुछ नजर नहीं आते हैं।
इसके मुताबिक, इस तरह के संदर्भों में आर्थिक वृद्धि संपत्ति की बढ़ती कीमतों पर अत्यधिक निर्भर हो जाती है, जिससे असमानता और परिसंपत्ति बाजार के रुझान बढ़ जाते हैं। इसका सार्वजनिक नीतियों, खासकर नियामकों पर अत्यधिक प्रभाव देखने को मिल सकता है।
आर्थिक समीक्षा कहती है कि वित्तीय प्रणाली को 2047 तक अपनी आर्थिक आकांक्षाओं के अनुरूप बनाने के प्रयास में जुटे भारत को एक तरफ वित्तीय क्षेत्र के विकास एवं आर्थिक वृद्धि और दूसरी तरफ वित्तीयकरण के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
इसका मतलब है कि देश को अपने संदर्भ के अनुरूप अपना रास्ता निर्धारित करना होगा जिसमें परिवारों में वित्तीय बचत के स्तर, निवेश की जरूरतों और वित्तीय साक्षरता के स्तर को ध्यान में रखा जाएगा। यह सुनिश्चित करना कि क्षेत्र में प्रोत्साहन राष्ट्रीय विकास आकांक्षाओं के अनुरूप हों, नीतिगत अनिवार्यता है।
समीक्षा कहती है कि प्रतिकूल भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच भारत के वित्तीय क्षेत्र ने अच्छा प्रदर्शन किया है। मौद्रिक मोर्चे पर प्रणालीगत तरलता अक्टूबर-नवंबर 2024 के दौरान अधिशेष में रही।
इसके मुताबिक, बैंकों के वित्तीय मापदंड मजबूत बने हुए हैं, जो बेहतर लाभप्रदता संकेतकों में नजर भी आते हैं। वाणिज्यिक बैंकों के कर्ज और जमा के बीच का अंतर कम हो गया है जबकि जमाओं ने ऋण वृद्धि के साथ तालमेल बरकरार रखा है।
वित्तीय क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कुल ऋण में उपभोक्ता ऋण की हिस्सेदारी बढ़ी है। वित्त वर्ष 2013-14 और वित्त वर्ष 2023-24 के बीच, कुल बैंक ऋण में उपभोक्ता ऋण की हिस्सेदारी 18.3 प्रतिशत से बढ़कर 32.4 प्रतिशत हो गई।
इसके अलावा हाल के वर्षों में गैर-बैंकिंग वित्तपोषण बढ़ा है। कुल ऋण में बैंकों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2010-11 के 77 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2021-22 में 58 प्रतिशत हो गई। इसके साथ गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान और बॉन्ड बाजार के वित्तपोषण में भी वृद्धि हुई है।
इक्विटी-आधारित वित्तपोषण की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है। वित्त वर्ष 2012-13 और वित्त वर्ष 2023-24 के बीच आरंभिक सार्वजनिक निर्गमों (आईपीओ) की सूचीबद्धता छह गुना बढ़ गई। पिछले वित्त वर्ष में भारत आईपीओ सूचीबद्धता के लिहाज से वैश्विक स्तर पर अग्रणी रहा।
भाषा प्रेम प्रेम पाण्डेय
पाण्डेय
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)