भारत में बुजुर्गों की देखभाल के लिए एक समग्र नीति की आवश्यकता : आर्थिक समीक्षा |

भारत में बुजुर्गों की देखभाल के लिए एक समग्र नीति की आवश्यकता : आर्थिक समीक्षा

भारत में बुजुर्गों की देखभाल के लिए एक समग्र नीति की आवश्यकता : आर्थिक समीक्षा

:   Modified Date:  July 22, 2024 / 07:51 PM IST, Published Date : July 22, 2024/7:51 pm IST

नयी दिल्ली, 22 जुलाई (भाषा) संसद में सोमवार को पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत में वृद्ध होती आबादी की बढ़ती देखभाल जरूरतों के मद्देनजर एक व्यापक ‘नीति प्रारूप’ की आवश्यकता है।

समीक्षा में कहा गया है कि वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के परिप्रेक्ष्य में सुधारों को लेकर नीति आयोग द्वारा हाल ही में जारी स्थिति पत्र के अनुसार, वर्तमान में बुजुर्गों की देखभाल से संबंधित कारोबार के सात अरब अमेरिकी डॉलर (57,881 करोड़) होने का अनुमान है, फिर भी बुजुर्गों की बीमारी के प्रबंधन, निगरानी तंत्र और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणालियों के लिए बुनियादी ढांचे, शोध और जानकारी के बीच गंभीर अंतराल बरकरार है। इसलिए भारत को एक ‘संरचित बुजुर्ग देखभाल नीति’ की आवश्यकता है।

इसमे कहा गया है कि एशियाई विकास बैंक (एडीबी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वृद्ध लोगों की कार्य क्षमता एक बड़ा आर्थिक संसाधन है और 60-69 वर्ष की आयु की आबादी की अप्रयुक्त कार्य क्षमता के इस ‘सिल्वर डिविडेंड’ का उपयोग करने से एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए जीडीपी में औसतन 1.5 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। रिपोर्ट में उम्र के अनुकूल नौकरियों की वकालत भी की गई है।

समीक्षा में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के अनुसार, 2022 तक भारत की एक-चौथाई आबादी 0-14 वर्ष की (लगभग 36 करोड़) है, लेकिन 2050 तक बच्चों की हिस्सेदारी घटकर 18 प्रतिशत (30 करोड़) रह जाने का अनुमान है, जबकि बुजुर्ग व्यक्तियों का अनुपात बढ़कर 20.8 प्रतिशत (34.7 करोड़) हो जाने की उम्मीद है। इसके फलस्वरूप देश को 2050 में 64.7 करोड़ व्यक्तियों की देखभाल करने की जरूरत होगी, जबकि 2022 में यह संख्या 50.7 करोड़ थी।

इसमें कहा गया है कि समाज में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर ध्यान देना स्वास्थ्य और आर्थिक दोनों के लिए जरूरी है।

समीक्षा में कहा गया है, ‘‘मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता की कमी और इससे जुड़ी नकारात्मक सोच का मूल मुद्दा किसी भी कार्यक्रम को अव्यवहारिक बना सकता है। इसलिए, मानसिक स्वास्थ्य के विषय से निपटने में एक आदर्श बदलाव लाने और… पूरे समुदाय के दृष्टिकोण का उपयोग करने की आवश्यकता है।’’

इसमें कहा गया है कि मानसिक स्वास्थ्य के विषय व्यक्तियों के शारीरिक स्वास्थ्य के मुद्दों की तुलना में पारिस्थितिकी तंत्र में उत्पादकता को व्यापक रूप से कम करते हैं। इसलिए, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर ध्यान देना स्वास्थ्य और आर्थिक दोनों के लिए जरूरी है।

भाषा अविनाश सुरेश

सुरेश

 

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