भारत का लक्ष्य जैव विनिर्माण नीति के साथ अगली औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व करना: डीबीटी |

भारत का लक्ष्य जैव विनिर्माण नीति के साथ अगली औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व करना: डीबीटी

भारत का लक्ष्य जैव विनिर्माण नीति के साथ अगली औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व करना: डीबीटी

:   Modified Date:  August 25, 2024 / 08:37 PM IST, Published Date : August 25, 2024/8:37 pm IST

नयी दिल्ली, 25 अगस्त (भाषा) भारत खाद्य, ऊर्जा और जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार की गई अपनी नयी जैव विनिर्माण नीति के साथ अगली औद्योगिक क्रांति के लिए तैयार है। अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शनिवार को उच्च प्रदर्शन वाले बायो विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए बायोई3 नीति की मंजूरी दी, जिसका उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना है।

उच्च प्रदर्शन वाले जैव विनिर्माण में दवा से लेकर सामग्री तक का उत्पादन, खेती और खाद्य चुनौतियों का समाधान करना और उन्नत जैव-प्रौद्योगिकीय प्रक्रियाओं के एकीकरण के जरिये जैव-आधारित उत्पादों के विनिर्माण को बढ़ावा देना शामिल है।

बायोई3 नीति की नींव रखते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट में जैव विनिर्माण और बायो-फाउंड्री की एक नई योजना की घोषणा की थी।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव राजेश गोखले ने संवाददाताओं से कहा कि भारत का लक्ष्य अगली औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व करना है। उन्होंने कहा कि हमें इस अवसर का अभी लाभ उठाना चाहिए। जैव विनिर्माण मौजूदा उद्योगों को खाद्य और ईंधन की बढ़ती मांगों को पूरा करने में मदद करेगा और साथ ही नए रोजगार के अवसर भी पैदा करेगा।

उन्होंने कहा, ”दुनिया ने कई औद्योगिक क्रांतियों का अनुभव किया है – भाप शक्ति, बिजली, तेल और सूचना तथा संचार क्रांति। जिन देशों ने नई तकनीकों को अपनाया, वे अधिक तेजी से आगे बढ़े।”

उन्होंने कहा कि अगली क्रांति जैविक स्रोतों और प्रक्रियाओं के औद्योगीकरण से होगी। इसलिए बायोई3 नीति 2047 तक भारत के विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य के अनुरूप है।

डीबीटी सचिव ने कहा कि जैव विनिर्माण बायोटेक्सटाइल और बायोप्लास्टिक जैसे नवाचारों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी, अपशिष्ट उत्पादन और प्रदूषण का समाधान करेगा।

उन्होंने कहा कि दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय जेनेटिक इंजीनियरिंग एवं जैव प्रौद्योगिकी केंद्र और मोहाली में राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान जैसे केंद्रों में इस संबंध में शोध चल रहा है।

गोखले ने कहा कि भारत अपने कच्चे तेल का लगभग तीन-चौथाई आयात करता है और अगले 20 वर्षों में इस तेल के कुछ हिस्से को बायोमास, प्लास्टिक कचरे और कार्बन डाइऑक्साइड से बने उत्पादों से तैयार करने का लक्ष्य है। इसे हासिल करने के लिए उन्नत तकनीक और उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत होगी।

उन्होंने कहा, ”बायोई3 नीति इन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए बनाई गई है।”

गोखले ने एक उदाहरण देते हुए कहा कि भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन केवल 459 ग्राम दूध मिलता है।

उन्होंने कहा कि जनसंख्या बढ़ने के साथ भूमि और पानी की कमी, बढ़ती चारे की लागत, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और एंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण मवेशियों की संख्या बढ़ाना संभव नहीं होगा।

उन्होंने कहा कि जैव-विनिर्माण गैर-डेयरी दूध विकल्पों के जरिए डेयरी जरूरतों को पूरा करने में मदद कर सकता है।

भाषा पाण्डेय

पाण्डेय

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)