How did Manmohan Singh defend the historic Union Budget of 1991?

Manmohan Singh Historic Decision: भारत को दिवालियापन से बचाने मनमोहन सिंह ने रातोंरात लिया था ऐतिहासिक फैसला, करना पड़ा था अग्नि परीक्षा से सामना

Manmohan Singh defend the historic Union Budget of 1991?! भारत को दिवालियापन से बचाने मनमोहन सिंह ने रातोंरात लिया था ऐतिहासिक फैसला, करना पड़ा था अग्नि परीक्षा से सामना

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Modified Date: December 27, 2024 / 04:40 PM IST
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Published Date: December 27, 2024 2:49 pm IST

नई दिल्ली: Manmohan Singh defend the historic Union Budget of 1991? भारत के आर्थिक सुधारों के जनक मनमोहन सिंह को 1991 के अपने उस ऐतिहासिक केंद्रीय बजट की व्यापक स्वीकृति सुनिश्चित करने के लिए अग्नि परीक्षा का सामना करना पड़ा था, जिसने देश को अपने सबसे खराब वित्तीय संकट से उबारा था। पी.वी. नरसिंह राव नीत सरकार में नवनियुक्त वित्त मंत्री सिंह ने यह काम बेहद बेबाकी से किया। बजट के बाद संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों का सामना करने से लेकर संसदीय दल की बैठक में व्यापक सुधारों को पचा न पाने वाले नाराज कांग्रेस नेताओं तक….सिंह अपने फैसलों पर अडिग रहे।

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Manmohan Singh defend the historic Union Budget of 1991? सिंह के ऐतिहासिक सुधारों ने न केवल भारत को दिवालियापन से बचाया, बल्कि एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में इसकी दिशा को भी पुनर्परिभाषित किया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक ‘टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी’ में लिखा, ‘‘ केन्द्रीय बजट प्रस्तुत होने के एक दिन बाद 25 जुलाई 1991 को सिंह बिना किसी पूर्व योजना के एक संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित हुए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके बजट का संदेश अधिकारियों की उदासीनता के कारण विकृत न हो जाए।’’

इस पुस्तक में जून 1991 में राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद तेजी से आए बदलावों का जिक्र है। रमेश ने 2015 में प्रकाशित इस पुस्तक में लिखा, ‘‘ वित्त मंत्री ने अपने बजट की व्याख्या की और इसे ‘‘मानवीय बजट’’ करार दिया। उन्होंने उर्वरक, पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में वृद्धि के प्रस्तावों का बड़ी दृढ़ता से बचाव किया।’’ राव के कार्यकाल के शुरुआती महीनों में रमेश उनके सहयोगी थे। कांग्रेस में असंतोष को देखते हुए राव ने एक अगस्त 1991 को कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की बैठक बुलाई और पार्टी सांसदों को ‘‘ खुलकर अपनी बात रखने’’ का मौका देने का फैसला किया। रमेश ने लिखा, ‘‘ प्रधानमंत्री ने बैठक से दूरी बनाए रखी और मनमोहन सिंह को उनकी आलोचना का खुद ही सामना करने दिया।’’

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उन्होंने कहा कि दो-तीन अगस्त को दो और बैठकें हुईं, जिनमें राव पूरे समय मौजूद रहे। रमेश ने लिखा, ‘‘ सीपीपी की बैठकों में वित्त मंत्री अकेले नजर आए और प्रधानमंत्री ने उनका बचाव करने या उनकी परेशानी दूर करने के लिए कुछ नहीं किया।’’ केवल दो सांसदों मणिशंकर अय्यर और नाथूराम मिर्धा ने सिंह के बजट का पूरी तरह समर्थन किया। अय्यर ने बजट का समर्थन करते हुए तर्क दिया था कि यह बजट राजीव गांधी की इस धारणा के अनुरूप है कि वित्तीय संकट को टालने के लिए क्या किया जाना चाहिए। पार्टी के दबाव के आगे झुकते हुए सिंह ने उर्वरक की कीमतों में 40 प्रतिशत की वृद्धि को घटाकर 30 प्रतिशत करने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन एलपीजी तथा पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि को यथावत रखा था।

राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की चार-पांच अगस्त 1991 को दो बार बैठक हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि छह अगस्त को सिंह लोकसभा में क्या वक्तव्य देंगे। पुस्तक के मुताबिक, ‘‘ इस बयान में इस वृद्धि को वापस लेने की बात नहीं मानी गई जिसकी मांग पिछले कुछ दिनों से की जा रही थी बल्कि इसमें छोटे तथा सीमांत किसानों के हितों की रक्षा की बात की गई।’’ रमेश ने लिखा, ‘‘ दोनों पक्षों की जीत हुई। पार्टी ने पुनर्विचार के लिए मजबूर किया, लेकिन सरकार जो चाहती थी उसके मूल सिद्धांतों… यूरिया के अलावा अन्य उर्वरकों की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करना तथा यूरिया की कीमतों में वृद्धि को बरकरार रखा गया।’’ उन्होंने पुस्तक में लिखा, ‘‘ यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था का सर्वोत्तम रचनात्मक उदाहरण है। यह इस बात की मिसाल है कि किस प्रकार सरकार तथा पार्टी मिलकर दोनों के लिए बेहतर स्थिति बना सकते हैं।’’

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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

प्रश्न 1: “1991 के बजट” का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: 1991 का बजट भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इससे न केवल देश को वित्तीय संकट से उबरने में मदद मिली, बल्कि आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की दिशा में भी मार्ग प्रशस्त हुआ। यह बजट भारत को दिवालियापन से बचाने और एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने में सहायक रहा।

प्रश्न 2: क्या “मनमोहन सिंह” ने 1991 के बजट के दौरान कांग्रेस पार्टी के अंदर विरोध का सामना किया था?

उत्तर: हां, मनमोहन सिंह ने कांग्रेस के कई नेताओं के विरोध का सामना किया। पार्टी के दबाव के कारण उन्हें उर्वरक की कीमतों में वृद्धि को 40% से घटाकर 30% करना पड़ा, लेकिन एलपीजी और पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी को बनाए रखा।

प्रश्न 3: “मनमोहन सिंह के सुधारों” को किसने समर्थन दिया था?

उत्तर: कांग्रेस के केवल दो सांसद, मणिशंकर अय्यर और नाथूराम मिर्धा, ने खुले तौर पर 1991 के बजट और मनमोहन सिंह के सुधारों का समर्थन किया। अय्यर ने इसे राजीव गांधी की आर्थिक दृष्टि के अनुरूप बताया।

प्रश्न 4: “1991 के बजट” के प्रमुख सुधार कौन-कौन से थे?

उत्तर: 1991 के बजट के प्रमुख सुधारों में उर्वरकों, पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में वृद्धि, विदेशी निवेश के नियमों में ढील, और आर्थिक उदारीकरण की पहल शामिल थीं।

प्रश्न 5: क्या “पी.वी. नरसिंह राव” ने 1991 के बजट में मनमोहन सिंह का समर्थन किया था?

उत्तर: पी.वी. नरसिंह राव ने सार्वजनिक रूप से मनमोहन सिंह का बचाव नहीं किया। बजट के दौरान पार्टी के अंदर उठी नाराजगी के बीच सिंह को अकेले ही अपने फैसलों का समर्थन करना पड़ा। हालांकि, उनके सुधारों को लागू करने में राव की रणनीतिक चुप्पी और नेतृत्व महत्वपूर्ण रही।    

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