बढ़ती अर्थव्यवस्था, जनसंख्या वृद्धि से भारत में कार्बन-बहुल उत्पादों की मांग बढ़ेगीः मूडीज |

बढ़ती अर्थव्यवस्था, जनसंख्या वृद्धि से भारत में कार्बन-बहुल उत्पादों की मांग बढ़ेगीः मूडीज

बढ़ती अर्थव्यवस्था, जनसंख्या वृद्धि से भारत में कार्बन-बहुल उत्पादों की मांग बढ़ेगीः मूडीज

:   Modified Date:  October 17, 2024 / 03:03 PM IST, Published Date : October 17, 2024/3:03 pm IST

नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर (भाषा) रेटिंग एजेंसी मूडीज ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत ने अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता तेजी से बढ़ाई है लेकिन इसकी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और बढ़ती आबादी से कार्बन-बहुलता वाले उत्पादों की मांग बढ़ेगी।

इसके साथ ही मूडीज रेटिंग्स ने कहा कि भारत वर्ष 2024 में 7.2 प्रतिशत और वर्ष 2025 में 6.6 प्रतिशत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना रहेगा। देश में अगले दशक में भी इसी तरह की उच्च वृद्धि दर बने रहने की संभावना है।

मूडीज ने ‘कार्बन बदलाव- भारत’ शीर्षक से जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आबादी और औद्योगीकरण बढ़ने के साथ भारत की ऊर्जा जरूरतें भी बढ़ेंगी। इसके अलावा परिवारों की आय बढ़ने से वाहन जैसे ईंधन-बहुल उत्पादों की मांग भी बढ़ेगी।

वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) के उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी 2019 में 6.7 प्रतिशत थी जो बढ़कर 2022 में 7.5 प्रतिशत हो गई।

रिपोर्ट कहती है कि निजी निवेश को आकर्षित करने और कार्बन कटौती की वजह से विरासत उद्योगों में नौकरियां घटने जैसे नकारात्मक प्रभावों से निपटने की सरकार की क्षमता से ही यह तय होगा कि कार्बन बदलाव और सामाजिक जोखिमों के लिए भारत का ऋण जोखिम आगे बढ़ता है या नहीं।

भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई है और 2030 के अंतरिम लक्ष्य की दिशा में भी कुछ उपलब्धियां हासिल हुई हैं। लेकिन देश की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ाती रहेगी।

मूडीज ने कहा कि भारत 2022 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक था लेकिन इसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अब भी कम है।

भारत ने मजबूत नीतिगत समर्थन और निजी क्षेत्र के निवेश के दम पर अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का विस्तार किया है। लेकिन परिवहन और व्यापक अर्थव्यवस्था में कार्बन कटौती की रफ्तार धीमी रही है। इस बदलाव को तेज करने के लिए सरकार एक अनिवार्य उत्सर्जन व्यापार व्यवस्था लाने की योजना बना रही है।

मूडीज का कहना है कि भारत में बढ़ते तापमान, पानी से जुड़ी समस्या और प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय जोखिमों के लिए उच्च ऋण जोखिम है। इसके अलावा भारत आय असमानता, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा चिंताओं और बुनियादी सेवाओं तक सीमित पहुंच के कारण सामाजिक जोखिमों के प्रति भी अत्यधिक संवेदनशील है।

भाषा प्रेम प्रेम अजय

अजय

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)