नयी दिल्ली, 22 जुलाई (भाषा) दुनिया के कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के साथ ही हरित इस्पात उद्योग के भविष्य को नया आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
आर्थिक समीक्षा 2023-24 में कहा गया कि हरित इस्पात की अवधारणा हरित ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करके इस्पात के उत्पादन को बढ़ावा देती है और जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को न्यूनतम करती है।
संसद में सोमवार को पेश आर्थिक समीक्षा में कहा गया ‘‘ जैसे-जैसे दुनिया कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही है, हरित इस्पात उद्योग के भविष्य को नया आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।’’
इसमें कहा गया, ‘‘ भारत का इस्पात क्षेत्र भारत के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 12 प्रतिशत हिस्सा है, जिसकी उत्सर्जन तीव्रता प्रति टन कच्चे इस्पात पर 2.5 टन सीओ2 है, जबकि वैश्विक औसत प्रति टन कच्चे इस्पात पर 1.9 टन सीओ2 है।’’
समीक्षा में कहा गया कि भारत वित्त वर्ष 2023-24 की पहली, दूसरी और तीसरी तिमाही के दौरान इस्पात का शुद्ध आयातक बना रहा, क्योंकि तैयार इस्पात की अंतरराष्ट्रीय तथा घरेलू कीमतों के बीच मूल्य अंतर था। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कम कीमतों के कारण निर्यात के लिए लाभ मुनाफा कम हो गया और आयात अधिक सस्ता हो गया, जिससे इस्पात क्षेत्र में व्यापार संतुलन प्रभावित हुआ।
इसमें कहा गया है कि इस्पात उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल कोकिंग कोल पर आयात निर्भरता भी वित्त वर्ष 2022-23 में 5.61 करोड़ टन से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 5.81 करोड़ टन हो गई।
समीक्षा में यह भी बताया गया कि वैश्विक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लिए आवश्यक कई प्रौद्योगिकियां व्यावसायिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, जैसे हाइड्रोजन-ईंधन वाले इस्पात/सीमेंट, इस्पात और एल्युमीनियम उत्पादन (कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण) सीसीयूएस आदि।
भाषा निहारिका अजय
अजय
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
एक भी रुपया लेने से पहले कर्जदाताओं का पैसा लौटाने…
11 hours agoचीनी बाजार में लाभ के लिए जाना चाहते हैं निवेशक,…
11 hours ago