FM Sitharaman on Indian Economy: नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बृहस्पतिवार को दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता के लाभ का जिक्र करते हुए कांग्रेस को आड़े हाथ लिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी हमेशा भारत के विकास के लिए प्रगतिशील कदम उठाने से कतराती रही और उसने देश को पीछे ले जाने वाली नीतियों को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा, ‘‘दिवाला कानून बनाने की सख्त जरूरत के बावजूद कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग सरकार ने जानबूझकर बैंकों और परिचालन से जुड़े कर्ज देने वालों की कीमत पर अपने करीबियों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की। जबकि कर्जदाताओं को अपना बकाया वसूलने के लिए दर-दर भटकना पड़ता था।’’
ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला संहिता (आईबीसी) दबाव वाली संपत्तियों के मामले में बाजार से जुड़े और समयबद्ध समाधान का उपाय करती है। भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता सीतारमण ने कहा कि संकट में फंसी कंपनियों के लिए संचालन नियम बनाकर आईबीसी ने देश में कॉरपोरेट संचालन को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘यह तय है कि आईबीसी के तहत समाधान प्रक्रिया चूक करने वाली कंपनियों को मौजूदा प्रवर्तकों/प्रबंधन से दूर ले जा सकती है। इसके परिणामस्वरूप ऐसी कंपनियों में बेहतर संचालन व्यवस्था आई है।’’ सीतारमण ने कहा कि आईबीसी के लागू होने से पहले कंपनियों में संकट के समाधान को लेकर कानूनी पैबंदों का सहारा लिया जाता था। इससे समस्या सुलझने के बजाय उलझती थी।
उन्होंने कहा, ‘‘जीएसटी की तरह, कांग्रेस सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए आम सहमति बनाने को लेकर कदम उठाने को लेकर कभी उत्सुक नहीं रही। पार्टी हमेशा भारत की वृद्धि और विकास के लिए प्रगतिशील कदम उठाने से कतराती रही है और हमेशा देश को पीछे ले जाने वाली नीतियों को आगे बढ़ाया।’’ सीतारमण ने कहा कि आईबीसी कर्ज देने वाले और कर्ज लेने वालों के बीच संबंधों में एक महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आया और इसने दिवाला मामलों का हल करने के लिए एक व्यवस्थित, एक ही जगह समाधान उपलब्ध कराया है। कानून में परिसमापन पर समाधान को प्राथमिकता देने से नौकरियों को संरक्षित करने और संपत्ति के मूल्य को बनाए रखने में मदद मिली है।
उन्होंने आंकड़े देते हुए कहा कि 2016 में अस्तित्व में आने के बाद से आईबीसी के जरिये मार्च, 2024 तक समस्याओं में फंसी 3,171 कंपनियों को बचाया गया है। वहीं अव्यावहारिक कंपनियों को बंद करने में मदद की गयी। वहीं पहले के औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (बीआईएफआर) व्यवस्था के तहत 1987 में इसके गठन के बाद से लगभग 30 साल में 3,500 से कम मामलों का समाधान किया गया। वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘कुल मिलाकर, आईबीसी के जरिये कर्जदाताओं ने 3.36 लाख करोड़ रुपये की राशि वसूल की है। यह दावा की गयी कुल राशि का लगभग 32 प्रतिशत और परिसमापन मूल्य का 162 प्रतिशत है। औसतन, समाधान योजनाओं से दबावग्रस्त कंपनियों के निष्पक्ष मूल्य का लगभग 85 प्रतिशत प्राप्त किया जा रहा है।’’
FM Sitharaman on Indian Economy: उन्होंने कहा कि आईबीसी ढांचा लगातार विकसित हो रहा है और सरकार ने दिवाला एवं ऋण शोधन व्यवस्था को मजबूत करने तथा समय पर समाधान सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाये हैं। सीतारमण ने कहा, ‘‘हम खाली पदों को तेजी से भरकर देश भर में एनसीएलटी (राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण) और एनसीएलएटी (राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण) की क्षमताओं को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’’ वित्त मंत्री ने कहा कि आईबीसी ने संप्रग शासन के दौरान कांग्रेस और उसके सहयोगियों की ‘फोन बैंकिंग’ (बैंकों को फोन कर कर्ज देने को कहना) और अंधाधुंध ऋण के माध्यम से पैदा हुए एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्ति) संकट से बैंकों को उबरने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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