आर्थिक समीक्षा में वृद्धि की बाधाओं का जिक्र करते हुए तत्काल कृषि सुधार का आह्वान |

आर्थिक समीक्षा में वृद्धि की बाधाओं का जिक्र करते हुए तत्काल कृषि सुधार का आह्वान

आर्थिक समीक्षा में वृद्धि की बाधाओं का जिक्र करते हुए तत्काल कृषि सुधार का आह्वान

:   Modified Date:  July 22, 2024 / 06:36 PM IST, Published Date : July 22, 2024/6:36 pm IST

नयी दिल्ली, 22 जुलाई (भाषा) सोमवार को बजट-पूर्व आर्थिक समीक्षा में भारत के कृषि क्षेत्र में तत्काल सुधार की आवश्यकता बताई गई। समीक्षा में चेतावनी दी गई कि संरचनात्मक मुद्दे देश की समग्र आर्थिक वृद्धि की राह में बाधा बन सकते हैं।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में प्रस्तुत समीक्षा में अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारतीय कृषि क्षेत्र की गैर-प्रयुक्त क्षमता पर प्रकाश डाला।

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कृषि क्षेत्र पर राष्ट्रीय स्तर पर संवाद का आह्वान किया।

समीक्षा में इस बात पर जोर दिया गया कि भारत ने अभी तक आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन के लिए अपने कृषि क्षेत्र का पूरी तरह से लाभ नहीं उठाया है, जैसा कि पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं और पश्चिमी विकसित देशों ने किया है।

समीक्षा में कहा गया है, ‘‘भारतीय कृषि अभी संकट में नहीं है, लेकिन इसमें गंभीर संरचनात्मक परिवर्तन की आवश्यकता है क्योंकि आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन और जल संकट का खतरा मंडरा रहा है।’’

सीईए ने किसानों के लिए मौजूदा सरकारी सब्सिडी और सहायता उपायों के बावजूद मौजूदा नीतियों के पुनर्मूल्यांकन की वकालत की।

आर्थिक समीक्षा की प्रस्तावना में नागेश्वरन ने कहा, ‘‘अगर हम कृषि क्षेत्र की नीतियों में बाधा डालने वाली गांठों को खोल दें तो इसका बहुत बड़ा लाभ होगा।’’

उन्होंने कहा कि सरकार किसानों को पानी, बिजली और उर्वरकों पर सब्सिडी के साथ-साथ आयकर छूट और न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से पर्याप्त सहायता प्रदान करती है, लेकिन नीति कार्यान्वयन में सुधार की गुंजाइश है।

समीक्षा में कई प्रमुख चुनौतियों की पहचान की गई है। इनमें खाद्य मुद्रास्फीति प्रबंधन के साथ वृद्धि को संतुलित करना, मूल्य खोज में सुधार करना और भूमि विखंडन से निपटना शामिल है।

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, समीक्षा में बहुआयामी सुधारों की सिफारिश की गई है, जिसमें कृषि प्रौद्योगिकी को उन्नत करना, विपणन के अवसरों को बढ़ाना, खेती के नवाचारों को अपनाना, बर्बादी को कम करना और कृषि-उद्योग संबंधों में सुधार करना जैसे मुद्दे शामिल हैं।

समीक्षा ने सरकार को ध्यान बुनियादी खाद्य सुरक्षा से पोषण सुरक्षा पर केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया, जो कि ‘मांग-संचालित खाद्य प्रणाली’ के साथ तालमेल में हो और जो पौष्टिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ दोनों हो।

समीक्षा में सुझाव दिया गया कि नीति निर्माताओं को किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने और खाद्य कीमतों को स्वीकार्य सीमा के भीतर रखने के बीच संतुलन बनाना चाहिए। ‘‘इस दोहरे उद्देश्य के लिए सावधानीपूर्वक नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है।’’

समीक्षा ने किसानों के हित में बाजारों के कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए किसान-अनुकूल नीति ढांचे की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

आर्थिक समीक्षा ने कीमतों में उछाल के पहले संकेत पर वायदा या विकल्प (डेरिवेटिव) बाजारों पर प्रतिबंध लगाने से बचने की सिफारिश की। इसमें केवल असाधारण परिस्थितियों में प्रतिबंध लागू करने, मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण ढांचे की फिर से जांच करने, कुल शुद्ध सिंचित क्षेत्र में वृद्धि करने तथा जलवायु को ध्यान में रखकर खेती के तौर तरीकों में तालमेल बिठाने की बात कही गई है।

वर्ष 2047 को ध्यान में रखते हुए, समीक्षा ने निरंतर रोजगार सृजन के लिए कृषि और संबद्ध क्षेत्रों (बागवानी, पशुधन, मत्स्य पालन, डेयरी और खाद्य प्रसंस्करण) की क्षमता पर प्रकाश डाला।

इसने कहा, ‘‘वर्ष 2047 या उससे अधिक समय तक लगभग एक पीढ़ी तक वृद्धि को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह लोगों के जीवन को बेहतर बनाता है और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करता है, नीचे से ऊपर की ओर सुधार आवश्यक हैं।’’

इसने सुझाव दिया कि भारत को कृषि से उद्योग और सेवाओं में बदलाव के पारंपरिक विकास मॉडल पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है।

भाषा राजेश राजेश अनुराग पाण्डेय

पाण्डेय

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)