बिहार, आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने का फैसला गैर-राजनीतिक आधार पर हो: आशिमा गोयल |

बिहार, आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने का फैसला गैर-राजनीतिक आधार पर हो: आशिमा गोयल

बिहार, आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने का फैसला गैर-राजनीतिक आधार पर हो: आशिमा गोयल

:   Modified Date:  July 1, 2024 / 06:17 PM IST, Published Date : July 1, 2024/6:17 pm IST

(बिजय कुमार सिंह)

नयी दिल्ली, एक जुलाई (भाषा) बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष श्रेणी का दर्जा देने के मुद्दे पर संवैधानिक निकाय को गैर-राजनीतिक आधार पर फैसला करना चाहिए।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति की सदस्य आशिमा गोयल ने सोमवार को यह बात कही।

गोयल ने कहा कि 14वें वित्त आयोग ने पहले ही विशेष श्रेणी के दर्जे वाले राज्यों पर फैसला सुना दिया है।

आंध्र प्रदेश 2014 में अपने विभाजन के बाद से राजस्व हानि के आधार पर विशेष श्रेणी के दर्जे की मांग कर रहा है, क्योंकि हैदराबाद तेलंगाना की राजधानी बन गया है।

बिहार भी 2005 से विशेष दर्जे की मांग कर रहा है, जब नीतीश कुमार ने इसके मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। वर्ष 2000 में खनिज समृद्ध झारखंड को बिहार से अलग कर दिया गया था, जिससे उसे राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा।

गोयल ने पीटीआई-भाषा से कहा, ”विशेष श्रेणी का दर्जा के मानदंड मुख्य रूप से कम जनसंख्या घनत्व वाले पहाड़ी इलाकों और संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास के लिए हैं, जो दोनों राज्यों पर लागू नहीं होते।”

विशेष श्रेणी के दर्जे वाले राज्यों के लिए, केंद्र प्रायोजित योजना में आवश्यक निधियों का 90 प्रतिशत योगदान केंद्र सरकार करती है। दूसरी ओर सामान्य श्रेणी के राज्यों के मामले में यह 60 प्रतिशत होता है। शेष निधि राज्य सरकार को देनी होती है।

जाने-माने अर्थशास्त्री ने कहा, ”इसके अलावा, 14वें वित्त आयोग ने फैसला दिया था कि कोई और विशेष श्रेणी का राज्य नहीं बनाया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर सबसे अच्छा होगा कि संवैधानिक निकाय गैर-राजनीतिक विचारों के आधार पर फैसला करे।”

आर्थिक और सामाजिक रूप से बेहतर दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में अक्सर उत्तरी और पूर्वी राज्यों को सब्सिडी देने पर बहस होती है। इस पर गोयल ने कहा कि शुद्ध संसाधन प्रवाह ने देश को एक साथ रखा है। प्रवाह की दिशाएं अतीत में अलग-अलग रही हैं और भविष्य में फिर बदल जाएंगी।

उन्होंने कहा कि राज्यों को एक जीवंत बढ़ते साझा बाजार में कहीं अधिक लाभ होता है।

गोयल ने कहा कि तथ्य विभाजनकारी एजेंडे का समर्थन नहीं करते हैं। चार अधिक जनसंख्या वाले उत्तरी राज्यों – बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश तथा चार दक्षिणी राज्यों – आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के आंकड़ों से पता चलता है कि 2000 के बाद से दक्षिणी राज्यों के लिए करों का फार्मूला आधारित हिस्सा कम हुआ है, जबकि केंद्र से विवेकाधीन अनुदान का हिस्सा उनके लिए बढ़ा है और उत्तरी राज्यों के लिए कम हुआ है।

उन्होंने कहा कि ऐसे में दक्षिणी राज्यों को कुल हस्तांतरण का हिस्सा स्थिर रहा है।

गोयल ने कहा कि यह सही है कि कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों को वित्त आयोग के नियम आधारित हस्तांतरण का अधिक हिस्सा मिलता है, लेकिन अधिक कुशल राज्यों को सशर्त अनुदान अधिक मिलता है।

भाषा पाण्डेय रमण

रमण

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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