कृषि क्षेत्र में स्त्री-पुरुष असमानता को दूर करने को आंकड़ा आधारित नीतियों की जरूरत : सीआईडब्ल्यूए |

कृषि क्षेत्र में स्त्री-पुरुष असमानता को दूर करने को आंकड़ा आधारित नीतियों की जरूरत : सीआईडब्ल्यूए

कृषि क्षेत्र में स्त्री-पुरुष असमानता को दूर करने को आंकड़ा आधारित नीतियों की जरूरत : सीआईडब्ल्यूए

:   Modified Date:  September 25, 2024 / 07:22 PM IST, Published Date : September 25, 2024/7:22 pm IST

(लक्ष्मी देवी ऐरे)

नयी दिल्ली, 25 सितंबर (भाषा) ओडिशा स्थित केंद्रीय कृषि महिला संस्थान (सीआईडब्ल्यूए) भारत के कृषि क्षेत्र में स्त्री-पुरुष असमानता को दूर करने का प्रयास कर रहा है। सीआईडब्ल्यूए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को कहा कि देश में लैंगिक दृष्टि से संवेदनशील नीतियां बनाने और महिला किसानों के लिए समर्थन बढ़ाने की जरूरत है।

सीआईडब्ल्यूए में लैंगिक परिवार और सामुदायिक अध्ययन प्रभाग के प्रमुख अरुण कुमार पांडा ने पीटीआई-भाषा के साथ साक्षात्कार में कृषि में महिलाओं के समक्ष आने वाली असमानता से संबंधित दिक्कतों का उल्लेख किया।

पांडा ने कहा, ‘‘पुरुषों की तुलना में, महिलाएं कृषि में पिछड़ रही हैं – यह एक वास्तविकता है जिसे अक्सर स्त्री-पुरुष असमानता का मुद्दा कहा जाता है।’’

अधिकारी ने कई प्रमुख क्षेत्रों की ओर इशारा किया जहां महिला किसानों को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

भूमि अधिकारों के मामले में, केवल 13.75 प्रतिशत महिलाओं के नाम पर भूमि पंजीकृत है, जो पुरुष प्रधान पारिवारिक ढांचे का परिणाम है। यह ऋण और अन्य संसाधनों तक पहुंचने की उनकी क्षमता को प्रभावित कर रहा है।

अधिकारी ने कहा कि उनके पास संसाधनों तक पहुंच नहीं है। उन्होंने कहा कि कृषि विकास के लिए महत्वपूर्ण विस्तार सेवाएं मुख्य रूप से पुरुषों को ही मिलती हैं। इनमें से केवल 18-20 प्रतिशत ही महिला किसानों तक पहुंच पाती हैं।

उन्होंने कहा कि जहां तक ​​प्रौद्योगिकी अपनाने का सवाल है, जागरूकता की कमी और सीमित शिक्षा के कारण महिला किसान अक्सर नई तकनीकों को अपनाने में पिछड़ जाती हैं।

इन मुद्दों को हल करने के लिए पांडा ने बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत महिला किसानों को समर्पित एकमात्र संस्थान सीआईडब्ल्यूए महिलाओं के अनुकूल कृषि नवोन्मेषण को विकसित करने में सबसे आगे है।

उच्चस्तरीय कृषि भूमिकाओं में महिलाओं की कमी के मुद्दे पर पांडा ने ‘महिलाओं के विकास से’ ‘महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास’ की ओर जाने से जुड़े बदलाव का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, ‘‘समय आएगा, और निश्चित रूप से इस समस्या का भी समाधान किया जाएगा।’’

सीआईडब्ल्यूए अधिकारी ने स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ावा देने के लिए लक्षित नीतियों के महत्व पर जोर दिया और महिला-विशिष्ट प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों में सरकार के निवेश को बढ़ाने का आह्वान किया।

उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे भारत कृषि क्षेत्र में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है, स्त्री-पुरुष के बीच का भेद समावेशी विकास और महिला किसानों के सशक्तीकरण में बाधा बन रहा है।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय

 

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