नयी दिल्ली, 12 नवंबर (भाषा) भारतीय कंपनियां सक्रिय रूप से कृत्रिम मेधा (एआई) का फायदा उठाने की कोशिश कर रही हैं और इसमें उनका निवेश भी बढ़ रहा है। इसके बावजूद सिर्फ 39 प्रतिशत कंपनियां ही रैनसमवेयर हमले से निपटने के लिए तैयार हैं।
देश के साइबर सुरक्षा परिदृश्य में गंभीर संवेदनशीलता को उजागर करते हुए साइबर सुरक्षा कंपनी ‘सोफोस’ ने मंगलवार को एक रिपोर्ट ‘एशिया प्रशांत तथा जापान में भागीदारों के लिए साइबर सुरक्षा प्लेबुक’ जारी की।
रिपोर्ट में सुरक्षा उपायों को बढ़ाने की तत्काल जरूरत पर बल दिया गया है, क्योंकि संगठनों को तेजी से बढ़ते साइबर खतरों का सामना करना पड़ रहा है, खासकर कृत्रिम मेधा (एआई) से उत्पन्न खतरों का..।
इसके निष्कर्षों में पाया गया सर्वेक्षण में शामिल 70 प्रतिशत भारतीय संगठनों ने ‘क्लाउड’ सुरक्षा रणनीतियों को लागू किया है और आधे से अधिक एआई-संचालित सुरक्षा उपायों में निवेश कर रहे हैं। फिर भी समग्र तैयारियों में एक महत्वपूर्ण अंतर बना हुआ है।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘ केवल 49 प्रतिशत ने सुरक्षा परिपक्वता ढांचे स्थापित किए हैं और 44 प्रतिशत ने सुरक्षा मानकों को पूरा करने की जानकारी दी। इसके अलावा केवल 39 प्रतिशत ही रैनसमवेयर हमले का सामना करने के लिए तैयार हैं, जो मजबूत साइबर सुरक्षा प्रगति की निरंतर आवश्यकता को रेखांकित करता है।’’
इसमें कहा गया है कि भारतीय कारोबार क्षेत्र जहां परिचालन बढ़ाने के लिए एआई को अपना रहे हैं, वहीं वे इसकी दोहरी प्रकृति को भी पहचानते हैं। पहला परिसंपत्ति के रूप में और दूसरी संभावित सुरक्षा जोखिम के तौर पर…।
‘रैनसमवेयर’ एक सॉफ्टवेयर जिसके जरिये किसी भी कंप्यूटर प्रणाली की फाइल को ‘एन्क्रिप्ट’ (सूचना को कोड में परिवर्तित करना) कर दिया जाता है और ‘डिक्रिप्ट’ करने (कोड हटाने) के लिए पैसे मांगे जाते हैं।
रिपोर्ट जुलाई 2024 में भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, मलेशिया, फिलिपीन और सिंगापुर की 900 कंपनियों में किए सर्वेक्षण पर आधारित है। इनमें से 200 भारत की कंपनियां थीं।
साइबर सुरक्षा में एआई की दोहरी प्रकृति पर भारत में सोफोस के बिक्री उपाध्यक्ष सुनील शर्मा ने कहा कि उद्यम एआई को एक शक्तिशाली सहयोगी तथा एक संभावित खतरे के रूप में गंभीरता से ले रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ यह तथ्य कि संगठन अपने साइबर सुरक्षा बजट को काफी बढ़ा रहे हैं…यह एक अच्छा संकेत है कि देश अपने डिजिटल बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। खतरे का पता लगाने, घटना से निपटने, डेटा सुरक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में बढ़ता निवेश न केवल भारतीय व्यवसायों के सक्रिय रुख को दर्शाता है, बल्कि एआई-संचालित साइबर जोखिमों से उत्पन्न जटिल चुनौतियों से निपटने के लिए उनकी तत्परता को भी उजागर करता है।’’
सर्वेक्षण से यह तथ्य भी सामने आया कि केवल पांच प्रतिशत भारतीय कंपनियां एक ही सुरक्षा विक्रेता पर निर्भर हैं, जबकि 71 प्रतिशत अपनी साइबर सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तीन या उससे अधिक विक्रेताओं का इस्तेमाल करती हैं। व्यवसायों के विशेष, अनुकूलनीय समाधानों की तलाश करने के मद्देनजर बहु-विक्रेता प्रणाली की मांग बढ़ने की उम्मीद है।
भाषा निहारिका अजय
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