नयी दिल्ली, 26 दिसंबर (भाषा) कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने बृहस्पतिवार को वर्षा आधारित क्षेत्रों में कृषि और बागवानी फसलों की पारंपरिक बीज किस्मों को बढ़ावा देने का आह्वान किया, ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रति सहिष्णुता को बढाया जा सके।
‘जलवायु परिवर्तन के प्रति सहिष्णुता बढ़ाने के लिए वर्षा आधारित क्षेत्रों में पारंपरिक किस्मों के माध्यम से कृषि जैव विविधता को पुनर्जीवित करना’ विषय पर एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पारंपरिक किस्मों को समूहों में उगाया जा सकता है और प्रीमियम कीमतों पर बेचा जा सकता है।
सचिव ने कहा, ‘‘मंत्रालय कृषि और बागवानी से संबंधित विभिन्न योजनाओं के माध्यम से विभिन्न किस्मों को बढ़ावा देने का इच्छुक है…।’’
उन्होंने कहा कि ये किस्में बेहतर स्वाद, सुगंध, रंग, खाना पकाने की गुणवत्ता और पोषण मूल्य सहित अनूठी विशेषताएं प्रदान करती हैं।
एक सरकारी बयान के अनुसार, विशेषज्ञों ने इन किस्मों को संरक्षित करने के लिए मजबूत सरकारी नीतिगत समर्थन की वकालत की। इन किस्मों को बाजारों से जोड़ा जा सकता है और प्राकृतिक खेती योजनाओं के माध्यम से बढ़ावा दिया जा सकता है।
देश की 50 प्रतिशत भूमि पर लगभग 61 प्रतिशत भारतीय किसान वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर हैं। इन क्षेत्रों की मिट्टी की उर्वरता कम है और ये जलवायु परिवर्तन की शिकार हैं। किसान, एक्सचेंज और सामुदायिक बीज बैंकों जैसी अनौपचारिक बीज प्रणालियों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
भारत की लगभग आधी बीज आवश्यकताएं ऐसी प्रणालियों के माध्यम से पूरी की जाती हैं, जो संरक्षण आवश्यकताओं को उजागर करती हैं।
इस कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय वर्षा आधारित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) द्वारा रिवाइटलाइजिंग रेनफेड एग्रीकल्चर नेटवर्क (आरआरएएन) और वॉटरशेड सपोर्ट सर्विसेज एंड एक्टिविटीज नेटवर्क के सहयोग से किया गया था।
भाषा राजेश राजेश अजय
अजय
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