नयी दिल्ली, 22 अगस्त (भाषा) हिमाचल प्रदेश में 25 जुलाई से अचानक आई बाढ़ के कारण कम से कम 14 पनबिजली (जलविद्युत) परियोजनाएं क्षतिग्रस्त हुई हैं। इनमें से कुछ पिछले 10 वर्षों में कई बार प्रभावित हुई हैं। एक विश्लेषण में यह जानकारी दी गई।
अचानक आई बाढ़ और बादल फटने से जलविद्युत परियोजनाओं को होने वाला नुकसान की निरंतर पुनरावृत्ति हो रही है, जिसका असर लोगों और बिजली उत्पादन दोनों पर पड़ता है। विशेषज्ञ ऐसी परियोजनाओं को शुरू करने से पहले आपदा जोखिम विश्लेषण किए जाने का मुद्दा उठा रहे हैं।
विशेषज्ञों ने बेहतर आपदा प्रबंधन योजनाएं तैयार करने और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और बाढ़ पूर्वानुमान स्टेशनों की स्थापना की भी सिफारिश की हैं।
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) के विश्लेषण के अनुसार, 25-26 जुलाई की रात को कुल्लू जिले के पलचन क्षेत्र में ‘बादल फटने से आई अचानक आई बाढ़’ के कारण दो जलविद्युत परियोजनाओं (एचईपी) को काफी नुकसान हुआ।
दोनों ही जलविद्युत परियोजनाएं – सेराई नदी पर दो मेगावाट की पिनेकल जलविद्युत परियोजना और ब्यास नदी पर नौ मेगावाट की ब्यास कुंड जलविद्युत परियोजना निजी कंपनियों के स्वामित्व में हैं और इनका परिचालन निजी कंपनियां ही कर रही हैं।
ब्यास कुंड परियोजना के प्रबंधक वियानी परमा ने एसएएनडीआरपी को बताया, ‘‘वहां सिर्फ बिजलीघर की इमारत बची है।’’
एसएएनडीआरपी के भीम रावत ने कहा कि गूगल अर्थ की तस्वीर से पता चलता है कि दोनों ही जलविद्युत परियोजनाओं के बिजलीघर सेराई और ब्यास नदियों के सक्रिय बाढ़ क्षेत्रों में बनाए गए थे।
उन्होंने कहा कि 29 जुलाई से एक अगस्त के बीच, कई बार अचानक आई बाढ़ ने राज्य के कुल्लू और शिमला जिलों में 12 जलविद्युत परियोजनाओं को नुकसान पहुंचाया।
कुल्लू जिले में ब्यास नदी बेसिन में छह परियोजनाएं क्षतिग्रस्त हुईं, जिनमें चार मेगावाट की जिराह जलविद्युत परियोजना, 800 किलोवाट की रक्सत मिनी जलविद्युत परियोजना, पांच मेगावाट की ब्रह्मगंगा जलविद्युत परियोजना, 100 मेगावाट की मलाना-2 जलविद्युत परियोजना और 86 मेगावाट की मलाना-1 जलविद्युत परियोजना शामिल हैं।
शिमला जिले की रामपुर तहसील में सतलुज नदी बेसिन के घनवी खड्ड और समेज खड्ड में सात जलविद्युत परियोजनाएं भी अचानक आई बाढ़ से प्रभावित हुईं।
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