बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक
हिमाचल चुनावों का इतिहास भले ही यह कह रहा है कि वहां कोई रिपीट नहीं होता, लेकिन यह सदा हो ऐसा नहीं है। आज यहां वोटिंग का दिन है। दो बड़े दलों ने अपनी एड़ी-चोड़ी की ताकत लगा रखी है। माना जा रहा है कि 1985 के बाद से यहां कभी कोई सरकार रिपीट नहीं हुई। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ही भाजपा ने कहा, राज नहीं रिवाज बदलो। देखेंगे क्या बदलता है। तीसरी पार्टी आप भी शुरुआती दौर में चर्चा में आई थी, लेकिन गुजरात की घोषणा के बाद वह शिफ्ट होकर गांधीनगर फोकस्ड हो गई। हिमाचल से गायब।
पहाड़ की मुख्य दो पार्टियों में शामिल भाजपा-कांग्रेस के घोषणा पत्र को देखें तो समझ आता है यहां पर किसने कितनी ताकत लगा रखी है। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र को स्थानीयता पर फोकस रखा है तो भाजपा ने राष्ट्रीयता का पुट दिया है। कांग्रेस के वायदों में लोक लुभावनता का भारी समावेष है जबकि भाजपा के घोषणा पत्र में फिलवक्त से ज्यादा आने वाले दिनों में और क्या बेहतर कर सकेंगे की छाया है। आज जब मतदाता जा रहे हैं तो संभव है कि वे इस बारे में कुछ सोच रहे होंगे।
himachal assembly election: राजनीतिक दलों का काम यह नहीं कि वे ऐसे वादे करें जिन्हें पूरा करने के लिए राज्य की आर्थिक, सामाजिक शक्ति को दांव पर लगाना पड़े। ऐसे वादों में कांग्रेस के वादे भी हैं और भाजपा के भी। भाजपा ने सीधे फायदे वाला कोई वादा नहीं किया, लेकिन कांग्रेस ने ऐसे वादों की झड़ी लगा रखी है। भाजपा ने बख्फ की संपत्तियों के सर्वे की बात कहकर जरूर पहाड़ में चल रही गैरहिंदू एक्टिविटी को टटोलने और उसके प्रति हिमाचल के मानस में चल रही प्रतिक्रिया को भांपने की कोशिश की है। 8 दिसंबर को नतीजे बताएंगे हिमाचल लोक लुभावन मतदाताओं का राज्य है या कि आत्मनिर्भर मतदाताओं का।
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