सनातन पर चोट.. नीयत में खोट! क्या ऐसे मिलेगा वोट ? |

सनातन पर चोट.. नीयत में खोट! क्या ऐसे मिलेगा वोट ?

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Edited By :   Modified Date:  September 8, 2023 / 07:49 PM IST, Published Date : September 8, 2023/7:49 pm IST

हिंदू राष्ट्र की मांग को लेकर संतों और राजनेताओं के कई बयान सामने आने के बाद अचानक देश का नाम भारत करने को लेकर कयासों का बाजार गर्म हुआ और इसी बीच सनातन धर्म निशाने पर आ गया। तमिलनाडु के एक नेता के बयान से शुरू हुआ विवाद राष्ट्रव्यापी चर्चा का विषय बन चुका है। ये बयान क्यों दिया गया और इस पर हो रहे विवाद के क्या मायने हैं, क्या इसका चुनाव से भी कोई लेना-देना है, ऐसे कई सवाल कौंध रहे हैं, जिसके जवाब को तलाशने की जरूरत है।

सनातन का मतलब है, जिसका कोई आदि और अंत नहीं है। इस पर शुरू हुए विवाद के अंत का भी पता नहीं चल रहा है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और खेल मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को लेकर कुछ ऐसी आग उगली, जिसकी चपेट में लगभग पूरा देश आ गया है। भारत विविध संस्कृतियों और धर्मों का देश है और यही इसकी खूबसूरती भी है लेकिन गाहेबगाहे इसकी खूबसूरती पर आंच लाने की नाकाम कोशिशें होती रही हैं। ये भी गौर करने लायक है कि स्टालिन का ये बयान ऐसे समय में आया है, जब ईसाई बहुल अमेरिका के जार्जिया स्टेट ने अक्टूबर महीने को हिंदू विरासत माह घोषित किया है। अभी हाल ही में कृष्णा जन्माष्टमी भारत समेत कई देशों में बड़े धूमधाम से मनाया गया।

सनातन पर किसने उठाए सवाल

चेन्नई में एक सितंबर को मार्क्सवादी पार्टी से जुड़े संगठन तमिलनाडु प्रगतिशील लेखक और कलाकार संघ ने सनातन उन्मूलन सम्मेलन का आयोजन किया था। इस सम्मेलन में पहुंचे डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोना से कर दी। उन्होंने कहा कि मच्छर, डेंगू, फीवर, मलेरिया और कोरोना ये कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनका केवल विरोध नहीं किया जा सकता बल्कि उन्हें खत्म करना जरूरी होता है। सोशल मीडिया के जमाने में उनका ये बयान अगले ही दिन वायरल हो गया। इसके बाद आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया।

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ये विवाद अभी थमा भी नहीं था कि कर्नाटक के खेल मंत्री ने हिंदूओं के अस्तित्व पर सवाल खड़े कर दिए। जी परमेश्वर ने कहा कि इस ब्रह्मांड के इतिहास में कई धर्मों का उदय हुआ है। हिंदू धर्म का उदय कैसे हुआ ? किसने किया ? इस पर आज तक सवालिया निशान ही बना हुआ है। बौद्ध धर्म का जन्म इस देश में हुआ है। जैन धर्म का जन्म इस देश में हुआ है। इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म बाहर से यहां आए हैं। इन सब धर्मों का उद्देश्य एक ही है मानव जाति का कल्याण। इसके बाद रही सही कसर डीएमके सांसद ए राजा ने पूरी कर दी। आग में घी डालते हुए ए राजा ने कहा कि सनातन धर्म पर उदयनिधि का रुख नरम था।

सनातन की तुलना एचआईवी और कुष्ठ जैसी बीमारियों से की जानी चाहिए। तमिलनाडु से बयानों की आग भड़की तो बिहार तक तपिश महसूस हुई। राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा कि टीका लगाकर घूमने वालों ने भारत को गुलाम बनवाया था और भारत को फिर गुलाम बनाने के रास्ते पर ले जाने का प्रयास कर रहे ऐसे लोग। मंदिर बनाओ और मस्जिद तोड़ो से देश नहीं चलेगा।

विवादित बयान पर क्या जवाब मिला

इन नफरती बयानों पर देश भर में प्रतिक्रिया हो रही है। हिंदूवादी संगठन सड़कों पर उतर आए। अयोध्या के संत परमहंस आचार्य ने ये तक कह दिया कि उदयनिधि का सिर कलम करने वाले को 10 करोड़ रुपए इनाम दिया जाएगा। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने स्टालिन को उदयनिधि हिटलर करार दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मंत्रियों के साथ बैठक में सनातन धर्म पर चल रहे विवाद पर चर्चा की और विवादित बयानों का सही से जवाब देने का इशारा किया। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की ओर से कई बयान सामने आए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी उदयनिधि के भाषण की निंदा की।

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इसके साथ ही देशभर 262 शख्सियतों ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्‌ठी लिखकर इस मामले में दखल देने की मांग की है। चिट्ठी लिखने वालों में 14 जज, 130 ब्यूरोक्रेट्स और सेना के 118 रिटायर्ड अफसर शामिल हैं। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को नफरत फैलाने वाले बयान पर तुरंत एक्शन लेने का ऑर्डर दिया था। इस फैसले का हवाला देते हुए तमिलनाडु सरकार के एक्शन में देरी को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना से जोड़ा गया है। बिहार के मुजफ्फरपुर कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिस पर इस पर 14 सितंबर को सुनवाई होगी। वहीं दिल्ली के एक वकील ने चार धाराओं के तहत थाने में शिकायत दर्ज कराई है।

तमिलनाडु में बीजेपी के सचिव ए अश्वत्थामन ने राज्यपाल आरएन रवि से उदयनिधि के खिलाफ केस की अनुमति मांगी है। इसके साथ ही बीजेपी आईटी सेल हेड अमित मालवीय के खिलाफ तमिलनाडु में एफआईआर दर्ज की गई है, आरोप है कि उन्होंने उदयनिधि स्टालिन के बयान को गलत तरीके से पेश किया।

नफरती बयान से किसे फायदा

अब तक आपने विवाद की भूमिका और इसके बाद हुए घटनाक्रम को समझ लिया होगा। अब इस विवाद के मायने तलाशने पर आपको अपने सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
तमिलनाडु में लंबे समय से सनातन विरोधी राजनीति होती रही है। द्रविड़ कषगम के संस्थापक पेरियार जीवन भर हिंदू धर्म और मंदिरों के विरोध में लिखते रहे हैं। पेरियार के अनुसार हिंदूवादी विचारधारा लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। पेरियार को द्रविड़ आंदोलन का जनक माना जाता है। उन्होंने जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविड़ कषगम कर दिया, जिसका एक धड़ा द्रविड़ मुनेत्र कषगम यानी डीएमके है। जाहिर है उदयनिधि स्टालिन पेरियार के विचारों को ही आगे बढ़ा रहे हैं। दक्षिण के पेरियार की को समझने के लिए आप उत्तर के डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के विचार पर गौर कर सकते हैं, जिनका कहना था कि वेद बेकार ग्रंथ हैं।

फिलहाल, मुद्दे को पकड़ते हैं.. स्टालिन के बयान से उन्हें स्थानीय तौर पर फायदा मिल सकता है लेकिन बड़े कैनवास पर इससे भाजपा को ज्यादा फायदा हो सकता है। यही वजह है कि भाजपा नफरती बयानों का मायलेज लेना चाहती है। मेरी ये राय कैसे बनी, इसे समझने के लिए कुछ बयानों पर गौर फरमाइए। कांग्रेस सांसद कार्तिक चिदंबरम कहते हैं कि उदयनिधि ने जो कहा, उसमें कुछ भी गलत नहीं है। कर्नाटक के राज्य मंत्री और कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे प्रियांक खड़गे का भी मानना है कि जो धर्म समानता को बढ़ावा नहीं देता है, वो एक बीमारी की तरह ही है। वहीं कांग्रेस पार्टी ने इस पर अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिक्रिया दी है। पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि हम सभी धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हैं, हम सभी की आस्थाओं का सम्मान करते हैं। यानी कांग्रेस पार्टी में ही उत्तर और दक्षिण का विभाजन दिखने लगा है।

इस विवाद से संयुक्त विपक्ष यानी ‘इंडिया’ गठबंधन को नुकसान हो सकता है। गठबंधन में शामिल पार्टियां इससे कन्नी काटती नजर आ रही हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि भारत की मूल भावना अनेकता में एकता है। हमें ऐसे किसी भी मामले में शामिल नहीं होना चाहिए, जिससे एक समुदाय के लोगों को ठेस पहुंचे। शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के सांसद संजय राउत ने कहा कि उदयनिधि एक मंत्री हैं और कोई भी उनके बयान का समर्थन नहीं करेगा और किसी को ऐसे बयान देने से बचना चाहिए। इस देश में लगभग 90 करोड़ हिंदू रहते हैं, उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती।

हिंदुत्व भाजपा की फेवरेट पिच रही है। लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा की जीत के साथ हिंदुत्व को सत्ता की चाबी के तौर पर देखा जा रहा है। इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को इस फॉर्मूले पर सफलता मिली है। इसी साल मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। साथी ही अगले ही साल लोकसभा चुनाव भी हैं। ऐसे में इस विवाद से ध्रुवीकरण बढ़ेगा, जिसका सीधा फायदा भाजपा को हो सकता है। कांग्रेस को चुनावी राज्य में सनातन के खिलाफ हो रही बयानबाजी से होने वाले डैमेज का भान है, इसलिए कमलनाथ ने उन सबसे पहले ही उदयनिधि के बयान से अपनी पार्टी का किनारा करते तनिक भी देर नहीं लगाई।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों ही राज्यों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल धर्म रथ पर सवार होकर चुनावी विजय की आस लगाए बैठे हैं। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान महाकाल लोक के लोकार्पण के बाद श्री रामराजा लोक का भूमिपूजन कर चुके हैं तो कांग्रेस प्रमुख कमलनाथ खुद को सबसे बड़ा हनुमान भक्त बताने के साथ कथा-पंडालों में जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस माता कौशल्या, भांचा राम और राम वन गमन पथ के जरिए राम की राजनीति जोर-शोर से कर रही है। लिहाजा इन दोनों ही राज्यों में संयुक्त गठबंधन में शामिल स्टालिन के बयान से कांग्रेस ने पल्ला झाड़ लिया है और भाजपा इसे भुनाने में लगी हुई है।

ये बात भी दीगर है कि पीएम मोदी और शाह की जोड़ी ब्रांड मैनेजमेंट में बेजोड़ है। असल राजनीतिक मुद्दों से भटकाने के लिए उन्हें तो बस एक मौका चाहिए और स्टालिन एंड कंपनी ने भाजपा को ये मौका तोहफे में दे दिया है। अब भाजपा एक तीर से चुनाव, विपक्षी गठबंधन और ब्रांडिंग तीनों पर निशाना साध रही है।

सनातन को दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। धर्म क्या है, इसका जवाब सनातन से जुड़े शास्त्रों में लिखा है- धारयेति धर्मः अर्थात जो धारण किया जाए, वही धर्म है। बौद्ध, जैन और सिख इसी धर्म की शाखाएं हैं। भारत में करीब 79 फीसदी यानी 97 करोड़ हिंदू रहते हैं। इसके साथ ही लगभग 15 फीसदी जनसंख्या के साथ ये दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। ऐसे में सनातन धर्म पर सवाल उठाने वाले और इसको समाप्त करने वाले बयान अज्ञानता के अलावा कुछ नहीं। दूसरी ओर इस पर हो रही राजनीति से सियासी दलों के अपने नफा-नुकसान जुड़े हुए हैं, इसलिए समझदारी इसी में है कि विवाद पर ना अपना आपा खोइए और ना नाहक चिंता ही करिए।