Connection of Nitish-Pradhan meeting with PK’s padyatra: आगामी जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों को लेकर अंदरखाने बड़े राजनीतिक समीकरणों की उठापटक चल रही है। एक तरफ जहां भाजपा ऐसा चेहरा देख रही है, जिसका प्रभाव भारत के मतदाता गणित पर भी हो और राजनीति विज्ञान पर भी। साथ ही उपराष्ट्रपति के चुनाव को लेकर भी पार्टी में तैयारियां चल रही हैं। विभिन्न स्रोतों से आ रहे तमाम इनपुट को प्रोसेस करें तो यह समझा जा सकता है कि देश के राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के समीकरणों में राजनीति प्रभाव का ध्यान रखा जाना अनिवार्य है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव से प्रशांत किशोर का हाल ही में उठाया गया स्टेप भी शामिल है। यह सुनकर हैरानी जरूर होगी, लेकिन इनके इंटरलिंक्स हैं।
साल 2020 में राजद व अन्य को रोकने के लिए भाजपा ने जेडीयू का सीएम रखा है। जबकि बिहार में जदयू से अधिक सीटें भाजपा की हैं। इसकी वजह साफ है कि जदयू अपना एजेंडा नहीं चला पा रही। भाजपा का सरकार में और सरकार के फैसलों में वर्चस्व है। ऐसे में नीतीश अपने आपको उपेक्षित महसूस करते हैं। भाजपा नीतीश को बिहार छोड़ना का प्रसाद दे सकती है। इसीलिए धर्मेंद्र प्रधान नीतीश से मिलने पहुंचे हैं। नीतीश बिहार के भाजपा प्रभारी भूपेंद्र यादव से नाराज चल रहे हैं। धर्मेंद्र प्रधान से उनके रिश्ते जेटली की तरह व्यक्तिगत हैं। भाजपा ने नीतीश से मिलने भेजा है, ताकि उठापटक को ठीक किया जा सके।
भाजपा 2025 में बिहार में अपने दम पर चुनाव में जाना चाहती है। पार्टी जानती है, जितनी भी जदयू की ताकत है वह नीतीश कुमार से है। इसलिए भाजपा नीतीश को बिहार से हटाने का रास्ता खोज रही है। इसके लिए भाजपा नीतीश को उपराष्ट्रपति बनाने का भी ऑफर दे सकती है। जबकि नीतीश राष्ट्रपति के लिए तैयार हैं। नीतीश चाहते हैं वे पार्टी को भाजपा की बी-टीम बनाकर बिहार से निकल सकते हैं, लेकिन उन्हेें भाजपा सम्मान बड़ा दे। यह सम्मान राष्ट्रपति पद हो सकता है। वहीं जेडीयू के बाकी बड़े नेताओं को भाजपा कहीं न कहीं अकोमोडेट करे।
बिहार में कहने को तो अनेक पार्टियां हैं, लेकिन मजबूत जनाधार वाली सिर्फ तीन ही पार्टियां हैं। जदयू का जनाधार गिर रहा है, भाजपा का बढ़ रहा है और राजद का बीच में अटका हुआ है। राजनीतिक रणनीतीकार प्रशांत किशोर इस वैक्यूम को समझते हैं। वे जानते हैं कि बिहार राजद को विकल्प के रूप में मजबूरी में देख रहा है। बिहार को एक स्वच्छ विचार और छवि वाली पार्टी की जरूरत है, जिसे जनता जदयू, भाजपा के विकल्प के रूप में चुनने में हिचकिचाए नहीं। प्रशांत किशोर इसी सोच के साथ अपनी पदयात्रा, लोगों से संवाद जैसी पहल करते दिख रहे हैं। वे चाहते हैं पहले वे अपना मौलिक जनाधार जुटा लें, फिर सियासत में आएंगे तो वोट में बदलने में उन्हे कठिनाई नहीं होगी।