Bageshwardham pandit dhirendra krishna shastri padyatra

#NindakNiyre_बुझती हुई लौ के भवके और हिंदू राष्ट्र की पदयात्रा पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री

Bageshwardham pandit dhirendra krishna shastri padyatra: पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उस पैटर्न से हिंदू जागरण कर रहे हैं जिससे कभी इस्लाम की स्थापना करने के दुस्साहस किए गए हैं। दुनियाभर में ईसाइयत को थोपा गया है या फिर एकआयामी बुद्ध बनाया गया है।

Edited By :   Modified Date:  November 21, 2024 / 11:22 PM IST, Published Date : November 21, 2024/11:20 pm IST

बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक

पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अपनी मौलिकता को आखिर क्यों छोड़ रहे हैं? क्या वजह है कि उन्हें अचानक से हिंदुत्व के उभार में सहभागी बनने की सूझी? क्या वजह है 3 दशकों की उम्र का यह निश्छल बालक राजनीतिक लहर पर सवार हो रहा है?

ये कुछ ऐसे बुनियादी सवाल हैं जिनके जवाब खोजना बहुत आवश्यक है। बागेश्वर नाम से प्रसिद्ध पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की ख्याति लोगों के मन पढ़ने के लिए हुई। हिंदू धर्म शास्त्र कहते हैं, 8 तरह की सिद्धियों में एक सिद्धि ऐसे भी होती है जो हमे इस तरह की शक्ति देती है। इन 8 सिद्धियों के अपने यूजर, मैनुअल्स होते हैं और अवधि भी। यह प्रामाणिक तथ्य है। सनानत में पूरा शोध है। विज्ञानपरक शोध है। इसमें कुछ भी गफलत, गलत या गल्प नहीं है। यह मनोविज्ञान इसे अपनी तरह से, धर्म इसे अपनी तरह से, लोक-विश्वास इसे अपनी तरह से और विज्ञान इसे अपनी तरह से परिभाषित करता है। विषय यह नहीं, कौन कैसे परिभाषित करता है। विषय यह है कि धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री वास्तव में हिंदुओं में जागरण ला पाएंगे? या कि वे अपने किसी व्यक्तिगत एजेंडे में संलग्न हैं!

पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उस लहर पर सवार हैं, जो दूर से दिखती ऊंची है, किंतु किनारे तक आते-आते ठहर जाती है। इसे आप जैसे भी समझें, लेकिन किसी भी समुदाय का अपना मौलिक सोचने का ढंग और व्यवहार होता है। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उस पैटर्न से हिंदू जागरण कर रहे हैं जिससे कभी इस्लाम की स्थापना करने के दुस्साहस किए गए हैं। दुनियाभर में ईसाइयत को थोपा गया है या फिर एकआयामी बुद्ध बनाया गया है।

अष्टसिद्ध के सिंद्धांत के मुताबिक यूजर, मैन्युअल का उल्लंघन होते ही यह सिद्धियां अपना असर छोड़ने लगती हैं। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री संभवतः इस समस्या की ओर अग्रसर हैं। मैं सिद्धिविद नहीं हूं इसलिए इसमें अथॉरिटी के साथ नहीं कहूंगा कि ऐसा ही हो रहा है, किंतु जो हो रहा है वह वैसा ही है।

हनुमान स्वरूप बागेश्वर गांव में विराजमान बागेश्वर महाराज जी आध्यात्मिक स्वरूप में हनुमान जी के प्रभाव वाले हैं। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उनके कृपा पात्र हैं। उनके आशीर्वाद से उनके पास वह सिद्धि आई। उन्होंने इसके बदले में अपना नाम पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के स्थान पर बागेश्वर कर दिया। यही समर्पण चाहिए होता है जब हम सिद्धियों के जागरण की ओर बढ़ते हैं। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की सिद्धियां उड़ता हुआ इत्र हैं। ये सिद्धियां होती ही ऐसी हैं। इन्हें सिद्ध किया जाता है या पाया जाता है और एक समय के बाद इनका असर कम होने लगता है।

पंडोखर सरकार नाम से मशहूर हुए दतिया के पास एक गांव के गुरुशरण शर्मा ने जो गलती की वह पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री नहीं करना चाहते। जाहिर है ये अपडेट वर्जन हैं। पंडोखर अपनी शक्तियों, सिद्धियों को मनोविज्ञान के जरिए चला रहे हैं। मनविज्ञान से अगर लंबा चलता होता कुछ तो महाविद्यालयों के मनोविज्ञान विभाग के प्राध्यापक दुनिया को अपने वश में किए होते। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने चतुराई की है। वे अब एक ऐसी लहर पर सवार हैं, जो कहीं जाए या न जाए, लेकिन उन्हें अपनी सिद्धि के अतिरिक्त ऊंचाई जरूर दे देगी। कहना साफ चाहिए कि हिंदू राष्ट्र बनना उतना ही जटिल और कठिन है जितना दुनिया में एक रंग पोत देना। दरअसल हिंदू न तो मुस्लिम है न ईसाई न बुद्ध की तरह एक आयामी। यह बहुआयामी होता है। इसमें परिवर्तन की प्रक्रिया बहुत तेज है। इसमें अंदर ही अंदर बहुत तेजी से नयापन आता है। इसमें सड़ांध नहीं होती। यह थमता नहीं। यह गतिमान है। इसकी अपनी सीमाएं क्षितिज के समान हैं, हमे दिखाई देती हैं जैसे वे हैं, लेकिन उन तक पहुंचना संभव नहीं।

हिंदू राष्ट्र की दलील सनातन रोकती है, टोकती है, बांधती है, इस्लामीकरण की ओर धकेलती है। मैं हिंदू राष्ट्र के उस सिद्धांत के सर्वथा विपरीत हूं जो राजनीतिक दायरे में किया और कराया जा रहा है। हिंदू अगर एक होकर किसी राष्ट्र में दूसरों को अवरुद्ध करने के मिजाज वाले होते तो आज यह नौबत क्यों आती। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उस हिंदुत्व की ढाल लेकर आगे बढ़ रहे हैं। हिंदुत्व में आक्रामकता ऐसी नहीं है। न किसी रैली से, न किसी तहरीर से हिंदू जागता है, हिंदू जागता है अपन संस्कार से। वीरों का वीर होता है, ज्ञानियों का ज्ञानी, यह वितंडावादी नहीं होता। इसलिए यह पैटर्न हिंदुओं का नहीं है।

अब बात हिंदुओं के जागरण की जरूरत की। हिंदुओं को जागना तो जरूरी है। जो चालाकी पिछले कुछ सौ सालों से भारत के साथ हुई है उससे निपटने के लिए हर हिंदू को शास्त्रों, संस्कारों, व्यवहारों, शोधों, विमर्शों, मीमांशाओं को गहराई से पढ़ना, समझना, देखना चाहिए। वे जरूर देखेंगे। वे श्रेष्ठ हैं, इसलिए नहीं कि किसी रैली के हिस्से बने हैं, वे श्रेष्ठ हैं इसलिए नहीं कि वे कोई राजनीतिक दल के हिमायती हैं, वे श्रेष्ठ हैं और श्रेष्ठ रहेंगे। अपने संस्कारों में रहेंगे। पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इस लहर में स्वयं को ट्रांफॉर्म कर रहे हैं, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं।

अगली कड़ी में पढ़िए पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री से किसे घबराने की जरूरत है….

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