#NindakNiyre: नड्डा नहीं तो कौन बनेगा भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष, ये चल रहे हैं नाम

#NindakNiyre: जेपी नड्डा की छुट्टी हुई तो कौन बन सकता है भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष, जानिए नाम और उनका ट्रैक रिकॉर्ड

Edited By :   Modified Date:  December 22, 2022 / 02:35 PM IST, Published Date : December 22, 2022/2:35 pm IST

बरुण सखाजी, सह-कार्यकारी संपादक, IBC24

भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल जनवरी में खत्म हो रहा है। पार्टी में इसे लेकर आगामी महीने में होने वाली बैठक में फैसला लिया जाएगा। भाजपा की यह गतिविधि बहुत गोपनीय होती है। चर्चाएं जो हों, परंतु होता वही है जो पार्टी के लिए कालांतर में ठीक सिद्ध हो। यूं तो जेपी नड्डा पार्टी के परफॉर्मर अध्यक्ष हैं, लेकिन पार्टी अध्यक्ष बने रहने के लिए सिर्फ यही काफी नहीं होता। चूंकि अबकी जो अध्यक्ष बनेगा उसके हाथ में 2023 के 9 राज्यों के चुनावों के साथ ही साथ 2024 को जिताने की जिम्मेदारी भी होगी। ऐसे में पार्टी अपना अध्यक्ष बहुत सोच-समझकर ही बनाएगी। हाल ही के विधानसभा चुनाव कहते हैं, पार्टी के पास क्षेत्रीय जिताऊ चेहरों की बड़ी कमी है। इसलिए मुख्यमंत्रियों के बूते कोई चुनाव जीतना पार्टी को संभव नहीं लग रहा। जाहिर है पार्टी हारना तो नहीं चाहेगी, इसलिए वह मोदी और समकक्ष एक चेहरा बड़ा रखकर ही मैदान में जाएगी। ऐसी स्थिति में दूसरा बड़ा चेहरा पार्टी अध्यक्ष ही हो सकता है। 2019 के बाद यह पहला चुनाव होगा जब मोदी तो मैदान में सीधे होंगे लेकिन उनके खास सिपहसालार पार्टी अध्यक्ष के रूप में सीधे साथ में नहीं होंगे। हालांकि हाथ में उनके बहुत कुछ रहेगा, लेकिन जो ताकत प्रोफाइल वर्किंग में है वह विदआउट प्रोफाइल में नहीं रह पाती। आइए समझते हैं, क्या नड्डा उतने बड़े चेहरा बन सकते हैं या कि पार्टी ऐसे बड़े चेहरे की तलाश कर रही है।

नड्डा का रिकॉर्ड उज्जवल, मगर…

नड्डा के ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो उनके कार्यकाल में देश में 14 राज्यों में चुनाव हुए हैं। इनमें से पार्टी 7 में जीती है। जबकि एमपी और महाराष्ट्र की पलटी और जोड़ ली जाए तो यह संख्या 9 हो जाती है। लेकिन बिहार की उल्टी-पल्टी घटा दी जाए तो यह संख्या घटकर 8 रह जाती है। ऐसे ही उनके प्रदर्शन को राज्यसभा की कसौटी पर कसें तो इन दो वर्षों में 81 सीटों पर निर्वाचन हुआ है, जिसमें से 32 भाजपा की अपनी थी। लेकिन भाजपा इनमें से 30 पर ही वापसी कर पाई। लोकसभा के उपचुनावों की संख्या 8 रही है, जिनमें से भाजपा ने 3 पर जीत दर्ज की है, जबकि आसनसोल जैसी सीट नहीं बचा पाई और 2 नई सीटें हासिल कर पाई। इन 8 में से भाजपा के पास 2 सीटें थी। सबसे अच्छा प्रदर्शन यूपी में रहा है, लेकिन वहां का क्रेडिट योगी को जाता है। नड्डा के कार्यकाल में 122 विधानसभा के उपचुनाव हुए हैं, इनमें से पार्टी ने करीब 60 से अधिक सीटों में जीत दर्ज की है। ऐसे में नड्डा कार्यकाल विस्तार के प्रबल दावेदार हैं। लेकिन पार्टी अगर दूसरे चेहरों पर दांव खेले तो वे कौन हो सकते हैं?

ऐसा चेहरा जो चमकता हुआ हो

नड्डा नहीं तो कौन के जवाब में पार्टी के पास अनेक चेहरे हैं। हाल ही में गुजरात नतीजों के बाद मोदी ने वहां के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल की तारीफ की। इसे भी राजनीतिक पंडितों ने पार्टी अध्यक्ष जैसी अहम जिम्मेदारी के रूप में देखा है। पाटिल शाह के बेहद करीब हैं। गैर गुजराती होकर भी गुजरात में अहम भूमिका हैं। 2014 के चुनावों के वक्त पाटिल मोदी की ए टीम में शामिल थे, जो पीके जैसे अन्य लोगों के काम-काज और वर्किंग पैटर्न पर नजर रखती थी। पाटिल के अलावा पार्टी में बड़े चेहरे के रूप में ओम माथुर, बीएल संतोष भी हैं। ओम माथुर रणनीति के जादूगर हैं। उनकी कार्यशैली शाह के समान डाटा बेस है। संतोष दक्षिण भारत के होने के नाते पार्टी का अच्छा चेहरा हो सकते हैं। कांग्रेस के वर्किंग पैटर्न को देखें तो वह दक्षिण भारत की तरफ ताकत लगा रही है। ऐसे में भाजपा चाहेगी कि वह हिंदी हार्ट लैंड और पूर्वोत्तर में मोदी की लोकप्रियता और सरकार के काम-काज का फायदा उठाए और दक्षिण भारत में कांग्रेस के प्रसार को रोकने के लिए दक्षिण भारतीय चेहरे के जरिए संगठन की ताकत का इस्तेमाल करे। यह रणनीति कारगर हो सकती है। ओम माथुर, बीएल संतोष और सीआर पाटिल के अलावा एक थ्योरी शिवराज सिंह चौहान को यह जिम्मेदारी देने की भी बन रही है। चौहान का मोदी-शाह से तालमेल उतना अच्छा नहीं है, लेकिन वे चुनावों की रणनीति बनाना भी जानते हैं और लोगों के बीच में लोकप्रियता में भी ठीक हैं। ऐसे में वे एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं। चौहान के होने से मध्यप्रदेश में पार्टी की पकड़ बनी रहेगी, जहां लोकसभा से ठीक पहले चुनाव होने हैं।

निष्कर्ष

वैसे तो नड्डा के कार्यकाल विस्तार को लगभग अंतिम माना जा रहा है, लेकिन भाजपा खासकर मोदी की भाजपा चौकाने के लिए जानी जाती है। ऐसे में यह चयन सिर्फ अध्यक्ष का नहीं बल्कि ऐसे चेहरे का भी है जो जरूरत पड़ने पर मोदी की जगह चिपकाया जा सके। क्योंकि मोदी 2025 में 75 साल के हो रहे हैं और यह उन्हीं की खींची गई लाइन है। ऐसे में पार्टी मोदी को 2025 से आगे का विस्तार इस आधार पर दे भी दे कि उन्हें जनता ने 2029 तक के लिए चुना है तब भी पार्टी इस दौरान विकल्पों पर शिद्दत से काम कर रही है। ऐसे में जो भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेगा वह लंबी छलांग लगा सकता है।