2023 में अनापेक्षित बहुमत से आई विष्णुदेव साय सरकार का मूल्यांकन जरूरी है। 11 दिसंबर से 11 जुलाई तक कुल 7 महीने यानि 214 दिन सरकार ने क्या किया और क्या कहा था की नापतौल जरूरी है। 16 मार्च से 5 जून तक आचार संहिता के 80 दिन हटा दिए जाएं तो काम करने का वक्त लगभग 134 दिन यानि 4 महीना 14 दिन है। इन 134 दिनों में सरकार ने जो काम किए हैं, उनमें जमीन पर क्या माहौल बना है यह फिलहाल नापने का मीटर तो नहीं है, किंतु परसेप्शन और ऑब्जर्वेशन से इसे समझा जा सकता है।
चुनावी मुद्दों में कोर स्तर पर महिलाओं को एक हजार रुपए मासिक, किसान को धान के दाम व बोनस मिलाकर 3100 रुपए, पुराना बकाया बोनस एकमुश्त देने की बात शामिल थी। कुछ महत्वपूर्ण दीगर मसलों मे बीरनपुर हिंसा, पीएससी गड़बड़ी की जांच सीबीआई को रेफर करना जैसी बातें भी शामिल थी। इन कोर बातों को देखें तो सभी को सरकार ने इन 134 दिनों में कर दिया है।
कहा क्या था और कर क्या रहे हैं, इन सबका आंकलन साधारण व्यक्ति भी आंकड़ों की आंखों से साफ देख लेता है। चूंकि यह सब चुनावी वादों के रूप में सबकी जानकारी में होते हैं। इनके इतर बहुत सारी चीजें होती हैं जिन्हें अपेक्षाओं के रूप में समझा जा सकता है, किंतु नंबर या निर्णयों में नापा नहीं जा सकता। यह एक सामान्य परसेप्शन के रूप में प्रकट होता है। इस क्राइटेरिया पर अगर सरकार को कसते हैं तो कुछ प्वाइंट समझे जा सकते हैं।
इसमें कोई शक नहीं। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के रूप में विष्णुदेव साय ईमानदार माने जाते हैं। हाउस से जुड़े गैर प्रशासनिक लोगों से जुड़ी नकारात्मक कानाफूसियों को अगर परे रख दें तो अभी तक कहीं ऐसी खबरें नहीं हैं, जिनमें उनकी निष्ठा पर कोई प्रश्न किया जा सके।
फिलहाल विष्णुदेव सरकार आपसी आंशिक संवादहीनता के साथ निर्णायक है। फैसलों में देरी उतनी नहीं जिसे देरी कहा जा सके। लचर या ढुलमुल सरकार कहना अभी जल्दबाजी है।
सरकार की जिला टीमों के कामकाज में और स्पष्टता की आवश्यकता है। प्रशासनिक मशीनरी की निष्ठाएं बिखरी हुई होने से एकीकृत शक्ति कम है। कलेक्टर्स और एसपीज सशंकित नहीं हैं, यह अच्छी बात है किंतु इतने कम दिनों में ही वे बेफिक्र होने लगे हैं यह चिंता की बात है। सरकार में भाई-भतीजावाद प्रचारित नहीं हो रहा यह अच्छा है, किंतु यह नहीं है कहना ठीक नहीं। इस सरकार का सबसे मजबूत पक्ष जनसंपर्क की रणनीति, रीति और सतत कम्युनिकेशन है। हाउस से जुड़े अखिल भारतीय सेवा के अफसर अभी तक दागमुक्त हैं। इनके अलावा बाकियों को लेकर आ रही सूचनाएं ज्यादा पुष्ट नहीं हैं।
इस मामले में विष्णुदेव सरकार पूरी तरह से परिपक्व है। मंत्रियों के बीच आपसी सियासी स्पर्धा होकर भी अभी ओवरसीटिंग नहीं है। हालांकि मोदी सरकार की तरह साय-साय का रटंत नहीं है, किंतु हाउस की तरफ सबकी अपनी निगाहें और निर्देश के लिए कान लगे रहते हैं। जवाबदेही के स्तर पर मंत्रियों में दोनों ही उपमुख्यमंत्री पर्याप्त सक्रिय और ज़िम्मेदार हैं।
प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कुछ दशकों से दल और सरकार के समानांतर एक नायक भी उभरता रहता है। यह नायक सरकारों को नए रंग, रूप में पेश करता है। कई अवसरों पर सियासी भंवरों से भी निकालता है। इस पैमाने पर विष्णुदेव साय सरकार कम सफल दिख रही है। यहां मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, मंत्री या पार्टी प्रदेश अध्यक्ष हर स्तर पर नायकत्व बंटा हुआ है। यह केंद्रीकृत नहीं दिख रहा। किन्तु अरुण साव भविष्य के बड़े नेता दिखाई देते हैं। हालांकि एक नायक कहना मुश्किल है। अरुण साव, ओपी चौधरी, विजय शर्मा ऐसे नायकों में शुमार जरूर हैं जो जरा भी समय गंवाए बिना मीडिया के जरिए लोगों से इंट्रैक्ट होते रहते हैं।
यह तो बहुत ही बड़ा सवाल है। सभी तरह के क्राइटेरिया पर किसी सरकार का आंकलन करना किसी चुनावी विश्लेषक के बूते की बात नहीं होती। क्योंकि प्रजातंत्र में पब्लिक के मन की बात समझना अत्यधिक कठिन है। 2024 लोकसभा चुनावों में 400 पार का 240 पर आ गिरना, इसका बेस्ट एग्जांपल है। इसलिए विष्णुदेव साय सरकार की असली छैमाही परीक्षा का नतीजा तो रायपुर दक्षिण विधानसभा उपचुनाव और निकाय चुनावों के नतीजे ही बताएंगे।