NindakNiyre: Will Modi really fight from Tamil in the next elections?

#NindakNiyre: क्या मोदी सच में तमिल से लड़ेंगे अगला चुनाव? क्या उन्हें अब गंगा नहीं मरघट नटराज बुला रहे हैं, जानिए पूरा गणित-विज्ञान मोदी और तमिल का

#NindakNiyre: क्या मोदी सच में तमिल से लड़ेंगे अगला चुनाव? क्या उन्हें अब गंगा नहीं मरघट नटराज बुला रहे हैं

Edited By :   Modified Date:  February 17, 2023 / 12:13 PM IST, Published Date : February 17, 2023/12:13 pm IST

बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक, आईबीसी-24

मोदी अगला चुनाव तमिलनाडु की किसी सीट से लड़ सकते हैं। यूं तो यह बात मीडिया में आम है, लेकिन सवाल ये है कि ऐसा करने से क्या हिंदी बेल्ट उनके साथ खड़ी रहेगी? आज हम मोदी तमिल जुड़ाव, तमिल में भाजपा के प्रदर्शन और संभावनाओं के साथ ही साथ उत्तर-दक्षिण के बीच के सामाजिक, राजनीतिक रिश्ते पर बात करेंगे।

2014 और 2019 में मोदी ने अपनी सीट बनारस रखी। वजह बहुत साफ है कि मोदी का डंका हिंदी बेल्ट में जमकर बज रहा है। इस रणनीति का भाजपा ने फायदा भी भरपूर उठाया। 2014 में भाजपा अकेले यूपी में 71 और गठबंधन के साथ 73 सीटें जीतने में कामयाब रही तो 2019 में भी 65 सीटों तक पहुंच गई। अब उसका मकसद 2024 में 75 सीटों पर काबिज होना है। चूंकि अब लोगों ने यूपी की योगी सरकार को भी दूसरी बार कमान दे दी है। भाजपा का मोदी को बनारस लाने का फॉर्मूला सफल कहा जा सकता है।

अब पार्टी चाहती है, वह दक्खन के किले भी जीते। कहने को कह सकते हैं भाजपा महाराष्ट्र में वर्षों से है, कर्नाटक में भी 16 सालों से पैर जमाए है, गोवा में भी। लेकिन असली दक्खन है केरल और तमिलनाडु। ऐसे में मोदी को अगर भाजपा 2024 में तमिल नाडु लेकर जाती है तो क्या वास्तव मे फायदे हो सकते हैं। यह जानने के लिए परत दर परत इस पूरे विश्लेषण को देखते रहिए।

नंबर एकः क्यों जाना चाहिए मोदी को दक्खन

साफ बात है हिंदी हार्टलैंड में अच्छी पैठ के बाद दक्षिणी राज्यों में पैठ बनाना जरूरी है। पैन इंडिया प्रदर्शन करना है तो जाना ही होगा। अगर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है तो भारत की भी सबसे बड़ी और अखिल भारतीय पैठ वाली पार्टी होना चाहिए।

नंबर दोः क्या इससे हिंदी लैंड नाराज तो नहीं होगा

यह रिस्क तो लेना ही होगी। हालांकि जिस तरह से राजनीतिक नक्काशी करके काशी-तमिल संगम कराया गया उससे लगता है हिंदी बेल्ट नाराज नहीं होगी। चूंकि पौराणिक आख्यान कहते हैं तमिल और काशी का रिश्ता बहुत करीब का है। बीच में कथित वामपंथी इतिहासकारों ने द्रविड़-आर्यन विभाजन के जरिए इनमें दूरी बनाई है। साथ ही भारत के क्षेत्रीय दलों ने भी भावनात्मक ट्विस्ट करके चीजों को कमजोर किया है। इसलिए यह कहना जरा जल्दबाजी होगी कि हिंदी वोटर्स नाराज होंगे, लेकिन यह तो कहना ही पड़ेगा कि यह रिस्क है। फिर भी खतरा कम ही कहा जाए।

नंबर तीनः क्या फायदा होगा भाजपा को

भाजपा हिंदी बेल्ट में अच्छा कर रही है। लेकिन कर्नाटक, तमिल, केरल, आंध्र, तेलंगाना की 100 से अधिक सीटों को यूं नहीं छोड़ सकती। यहां सिर्फ वह कर्नाटक में ही ठीक करती है, बाकी कहीं नहीं। ऐसे में तमिल से अगर मोदी फाइट करेंगे तो उसके लिए एक तो उत्तर—दक्षिण की सामाजिक दूरी कम करने में मदद मिलेगी, दूसरी पार्टी का दक्षिण में भी जनाधार बढ़ेगा।

नंबर चारः तो तमिल ही क्यों केरल क्यों नहीं या आंध्र

तमिल में इस समय एआईडीएमके में चल रही खींचतान, डीएमके में पारिवारिक कलह और करुणानिधि की गैरमौजूदगी के साथ ही भाजपा का बीते वर्षों में बढ़ा जनाधार बड़ी वजह है। जबकि केरल में ऐसा नहीं हो पाया है। वहां अब भी यूडीएफ और एलडीएफ के बीच सीधा मुकाबला है। आंध्र में जगन रेड्डी को अभी भाजपा नहीं छेड़ना चाहती। तेलंगाना में वह कोशिश कर ही रही है। ऐसे में तेलंगाना महज 17 सीटों वाला है जबकि तमिक 39 सीटों वाला। इसलिए तमिल ज्यादा जरूरी है। इसका राजनीतिक मैसेज तो है ही सामाजिक मैसज बड़ा है। तमिल में भाजपा अभी विधानसभा में 19 फीसद वोट हासिल कर रही है।

नंबर पांचः तमिल में कहां से लड़ेंगे मोदी
तमिलनाडु के रामेश्वरम के नजदीक बढ़ते मुस्लिम डोमिनेंस वाली सीट रामनाथपुरम मुफीद हो सकती है। यहां 6 विधानसभा सीटों आती हैं। भाजपा 2009 से लगातार तीसरे नंबर से 2014 में दूसरे नंबर पर आ रही है। वोट परसेंट 2009 में 16 और 2014 में 17 परसेंट था वह 2019 में एकदम से बढ़कर 32 फीसद पर जा पहुंचा है। इस शहर का राम से भी सीधा नाता है। साथ ही मरघट नटराज का एक बड़ा मंदिर यहां है। यहां अच्छी खासी मुस्लिम आबादी है। निजामों के अधीन रही इस सीट पर बढ़ती मुस्लिम आबादी के बीच हिंदुत्व का नारा जल्दी सब्सक्राइब हो सकता है। यहां मुस्लिमों का एक बड़ा त्योहार इरावाडी मनाया जाता है। वर्तमान में मुस्लिम लीग के सांसद हैं। भाजपा अगर यहां मोदी को उतारती है तो यह सीट आसान तो नहीं होगी, लेकिन संदेशपूर्ण जरूर होगी। यहां से हिंदू वोटर्स का ध्रुवीकरण किया जा सकता है।