बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक
हरियाणा के नतीजो भाजपा को उत्साहित कर रहे हैं, क्योंकि यहां जीती है। किसी भी सरकार की हरियाणा में यह तीसरी लगातार जीत बहुत बड़ी कामयाबी है। भाजपा को उत्साहित होने का पूरा हक है और यह मौका भी है। पर क्या कांग्रेस को खुश नहीं होना चाहिए, क्योंकि वह भी जम्मू-कश्मीर में जीती है। एनसी के साथ अपने गठबंधन में पार्टी ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। परंतु कांग्रेस हरियाणा से निराश है। कुछेक नेता जो कि हर बार करते हैं, हर हार पर करते हैं वह कांग्रेसी भी कर रहे हैं। ईवीएम को दोषी ठहरा रहे हैं। ठहराते ही हैं।
जो ऊपर लिखा है मैं वैसा नहीं मानता। मैं मानता हूं जम्मू कश्मीर के नतीजों से भाजपा को ज्यादा उत्साहित और खुश होना चाहिए। जम्मू को छोड़ दें तो कश्मीर इलाके में 98 फीसद से भी ज्यादा आबादी मुस्लिम है। जम्मू में हिंदू हैं, किंतु मुस्लिम भी हैं। जितनी मैक्स सीटें भाजपा सिर्फ जम्मू इलाके से जीत सकती थी, जीत ली गईं। हालांकि पिछले चुनावों से कम हैं, पर हैं पर्याप्त। जम्मू-कश्मीर के चुनावों के रिजल्ट सिद्ध कर रहे हैं, मुस्लिम समग्र रूप से भाजपा को नापसंद करते हैं।
2021 में बंगाल के चुनावों ने ऐसा नरेशन सेट किया था कि मुस्लिम एक हो जाएं तो भाजपा चुनाव जीत नहीं सकती। ऐसा ही हुआ। 2021 से 2024 अक्टूबर तक लोकसभा और विधानसभा मिलाकर 26 विधानसभा और 1 लोकसभा चुनाव हुए हैं। इनमें से भाजपा ने 15 विधानसभा और 1 लोकसभा चुनाव जीते हैं। कांग्रेस 4 विधानसभा अपने दम पर और 2 विधानसभा में सहयोगी के रूप में सरकार बनाने में कामयाब रही है। अन्य क्षेत्रीय दलों ने जैसे आप, टीएमसी, डीएमके ने अपने बूते चुनाव जीते हैं, यहां कांग्रेस शामिल नहीं थी।
2021 में माना गया कि मुस्लिम एक होकर भाजपा के खिलाफ आ गए। इसमें स्ट्रेटजिस्ट प्रशांत किशोर का भी गेम था। उन्होंने अपना एक ऑडियो लीक करवाया जिसमें वे कह रहे थे, भाजपा जीत रही है। इस ऑडियो क्लिप ने मुस्लिमों को और ज्यादा एकजुट होने के लिए प्रेरित किया। बंगाल में उस समय की रिपोर्टिंग करने गए मेरे वरिष्ठ सहयोगी राजेश लाहोटी ने बताया था, मस्जिदों, सभाओं, समाज की बैठकों में आंतरिक चर्चा गरम हो गई थी। बंगाल में मुस्लमानों को एक होना होगा, ऐसे संदेश सोशल मीडिया पर चल निकले थे। हुआ भी यही। एक प्रभावशाली मजार के अगुवा रहे आईएसएफ यानि इस्लामिक सेकुलर फ्रंट को भी मुसलमानों ने तमाम प्रभाव और प्रयास के बावजूद नकार दिया था। क्योंकि मुस्लमानों के जेहन में यह बिठाया गया कि भाजपा को जो हरा सके वोट उसीको देना है।
इससे पहले 2020 में बिहार में भी यह प्रयोग हुआ, लेकिन यह सफल नहीं हो पाया। वहां औवेसी की पार्टी एमआईएम ने शोर मचाया, मुस्लमानों को अपने पाले में खींचा, सब किया, लेकिन फेल हो गई। मुसलमानों ने राजद के साथ जाना पसंद किया। नतीजे में राजद प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बन निकली। भाजपा ने सरकार बना ली। ज्यादा सीटें होते हुए भी महाराष्ट्र की तरह अपने साथी जदयू का सीएम बनाया। चूंकि वादा जो था।
फिर से जम्मू-कश्मीर पर लौटते हैं। यहां मुसलमान इकट्ठा हुए। पीडीपी को अछूत बताया। नतीजों में समझ आता है, मुसलमानों के मन में भाजपा के प्रति कितनी गहरी घृणा है। पीडीपी ने एक बार भाजपा के साथ सरकार क्या बनाई 2024 के नतीजों में मुसलमानों ने उसे बुरी तरह से नकार दिया। महबूबा को और जहरीला होना पड़ेगा। यूं वे अब भी पर्याप्त जहरीली हैं। परंतु उनका वोटर इतने जहर से संतुष्ट नहीं हो पा रहा। भारत के विरुद्ध अब्दुला की तरह बात करना होगी।
अब जब जम्मू-कश्मीर में मुसलमान इकट्ठा होकर भाजपा को हराने के लिए खड़ा हो गया तो महाराष्ट्र और झारखंड में हिंदू भी ऐसा खड़ा होगा क्या? यह सवाल जवाब का मोहताज नहीं है। क्योंकि हिंदू कभी हिंदू होने के नाते वोट नहीं देता। मुसलमान कभी मुसलमान होने के अलावा किसी और मुद्दे पर वोट नहीं देता। जाहिर है ऐसे में हिंदू रिटेलिएट करेगा, ऐसा कहना जल्दबाजी है। एक राजनीतिक विश्लेषक के रूप में मैं यह दावे से कह सकता हूं, पोलराइजेशन महाराष्ट्र में भी होगा। महाराष्ट्र झारखंड की तुलना में अधिक राष्ट्रवादी है। ऐसे में महाराष्ट्र में भाजपा इस तथ्य को लेकर पब्लिक में जाएगी ही जाएगी।
मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूं चयन का आधार कौम नहीं होना चाहिए, लेकिन जब कौम चयन का आधार हो तो फिर दूसरी कौमों को इसे नहीं अपनाना चाहिए। परंतु जब जीवन-मरण के प्रश्न तक यह बात आ जाए तो फिर दूसरी कौमों को भी अपना चयन कौम के आधार पर ही करना चाहिए, अन्यथा वे सर्वाइव नहीं कर पाएंगी। जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों की इकतरफा और भाजपा के विरुद्ध वोटिंग का असर महाराष्ट्र चुनावों पर तो पड़ना तय है, झारखंड पर भले ही इसका असर कम दिखाई दे।
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