Munawwar Rana Memory: खामोश हुआ उर्दू शायरी का अजीम फनकार.. मानों माँ, मोहब्बत और मुनव्वर से आज रूठ गई सांसे.. | Munawwar Rana all shayri

Munawwar Rana Memory: खामोश हुआ उर्दू शायरी का अजीम फनकार.. मानों माँ, मोहब्बत और मुनव्वर से आज रूठ गई सांसे..

Edited By :   Modified Date:  January 15, 2024 / 10:50 AM IST, Published Date : January 15, 2024/10:50 am IST

रायपुर: किसी शायर की ख्वाहिश क्या रहती होगी ? कि उसके बाद उसे, उसके नाम से नहीं बल्कि उसकी शायरी और गज़लों से याद किया जाए। जवां नस्लों को रिश्तों की अहमियत, वक़्त की मजबूरी और पलायन यानी माइग्रेशन के बारे में अगर किसी शायर ने बखूबी समझाया है तो वो हैं मुन्नवर राणा साहब..

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मुनव्वर राणा अब इस दुनिया से रुख्सत हो चुके हैं. रविवार देर रात मुनव्वर राणा का कार्डियेक अरेस्ट की वजह से देहांत हो गया है. हालांकि वो एक लंबे समय से बीमार चल रहे थे.

मां के साथ रिश्तों का जिक्र हो या फिर किसी की मजबूरी को हू ब हू जज़्बातों के साथ लिख देना…मुन्नवर राणा की खासियत थी….उन्होंने मां पर न जाने कितने शेर लिखे और लगभग हर शेर लोगों की जुबान पर है

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई

उनकी शायरी से गांव कभी नहीं छूटा, गांव का रहन सहन वहां की सहजता, गांव का खुदरंग मिज़ाज उनकी शायरी को अलग मुकाम तक ले जाता था

झुक के मिलते हैं बुजुर्गों से हमारे बच्चे
फूल पर बाग की मिट्टी का असर होता है

मुमकिन है हमें गाँव भी पहचान न पाए
बचपन में ही हम घर से कमाने निकल आए

देश के बंटवारे के वक्त उनके कई करीबी उनसे दूर हो गए और उन्हें भी अपना घर छोड़ना पड़ा…इसका दर्द उनकी शायरी में उनकी बातों में अक्सर देखा जा सकता था…उनकी एक किताब मुहाजिरनामा भी छपी…जिसकी एक एक लाइन को आज वो लोग समझ पाएंगे जो नौकरी और करियर के चलते अपनों से दूर हैं

मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं

कहानी का ये हिस्सा आजतक सब से छुपाया है
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं

मुन्नवर ने मोहब्बत पर लिखा तो ऐसा लिखा कि हर वैलेंटाइन डे पर ये शेर फॉरवर्ड होता दिख जाता है और इसके जरिये वो नौकरी पेशा प्रेमी जोड़ों के लिए sunday वीक ऑफ की अहमियत भी बता गए

अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए

जुदाई पर लिखा तो ऐसा लिखा कि अरसों बाद भी उसका चेहरा सामने झूल जाए

भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है

जम्हूरियत के लिए लिखा तो कहा कि

एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना

सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते

बुढ़ापे और मौत का जिक्र आखिरी दिनों में उनके मुशायरे में कुछ ज्यादा ही दिखा। मानों मुन्नवर बेबसी और मौत से पहले के वक्त को कुछ ज्यादा अच्छे से समझ गए हों

थकान को ओढ़ के बिस्तर में जा के लेट गए,
हम अपनी क़ब्र-ए-मुक़र्रर में जा के लेट गए.

तमाम उम्र एक दूसरे से लड़ते रहे,
मर गए तो बराबर में जाके लेट गए !

हिंदुस्तानी जबां और अदब का एक बड़ा नुमाइंदा आज दुनिया से रुखसत कर गया लेकिन पूरा मुल्क उन्हें उनकी बेबाकी और रिश्तों पर कहे गए शेर से हमेशा याद करता रहेगा

अलविदा मुन्नवर राणा

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