Facts About Deputy CM

डिप्टी सीएमः बिना संवैधानिक हैसियत वाला शक्ति संतुलनकारी पद

Edited By :   Modified Date:  June 29, 2023 / 06:23 PM IST, Published Date : June 29, 2023/4:39 pm IST

सौरभ तिवारी, डिप्टी एडिटर, IBC24

सौरभ तिवारी, डिप्टी एडिटर, IBC24

छत्तीसगढ़ में भी उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति हो गई है। टीएस सिंहदेव छत्तीसगढ़ के पहले उपमुख्यमंत्री बने हैं। ऐसे में लोगों में ये जानने की उत्सुकता है कि आखिर उपमुख्यमंत्री पद की क्या संवैधानिक हैसियत है और इसका सरकारी कामकाज में कितना महत्व है? तो जवाब ये है कि भारत में उपप्रधानमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों तकनीकी रूप से संवैधानिक पद नहीं है। इन दोनों पदों का संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। लिहाजा इन पदों की ना कोई विधाई शक्ति परिभाषित है और ना ही उपप्रधानमंत्री और उपमुख्यमंत्री नियुक्ति की कोई संवैधानिक बाध्यता है। (Facts About Deputy CM) सवाल उठता है कि जब इन दोनों पदों का कोई संवैधानिक अस्तित्व नहीं है तो आखिर इनकी नियुक्ति किस आधार पर होती है? दरअसल इस पद पर नियुक्ति के पीछे राजनीतिक व्यवस्था से ज्यादा विवशता उत्तरदायी है। इन दोनों पदों का सृजन राजनीतिक दलों ने अपनी अंदरुनी सियासी खींचतान या गठबंधन दलों के बीच शक्ति संतुलन साधने के लिए अपनी सियासी जरूरतों के लिहाज से कर लिया है।

डिप्टी सीएम को कोई अतिरिक्त अधिकार नहीं

सियासी समीकरण बनाए रखने के लिए किसी राज्य में उप-मुख्यमंत्री का पद तो सृजित कर लिया जाता है लेकिन उसके पास कोई अतिरिक्त अधिकार नहीं होते। उसके अधिकार केवल मंत्रिमंडल के दूसरे सदस्यों को मिले मंत्रीय अधिकार तक ही सीमित होते हैं। उप मुख्यमंत्री को दूसरे मंत्रियों से अलग कोई भत्ता या सुविधा भी नहीं मिलती। किसी सरकारी फाइल की उपमुख्यमंत्री से होकर मुख्यमंत्री तक जाने की कोई बाध्यता नहीं है। ये भी कोई बाध्यता नहीं है कि मुख्यमंत्री की गैरमौजूदगी में उपमुख्यमंत्री मंत्रिमंडल का नेतृत्व करेगा। मुख्यमंत्री अपनी गैरमौजूदगी में जरूरी राजकीय कामों को पूरा करने के लिए अपने मंत्रिमंडल के किसी भी वरिष्ठ मंत्री को कुछ पावर दे सकते हैं। यही सारी बात उपप्रधानमंत्री पद पर भी लागू होती है।

सुप्रीम कोर्ट जा चुका है मामला

उपप्रधानमंत्री और उपमुख्यमंत्री पदों की कोई संवैधानिक मान्यता नहीं होने की वजह से इन्हें शपथ भी नहीं दिलाई जाती। डिप्टी पीएम या डिप्टी सीएम पद धारक अपने इस पद की कोई अलग से शपथ नहीं लेता। कोई नेता भले डिप्टी पीएम या सीएम नियुक्त होता हो लेकिन वो केवल मंत्री पद की ही शपथ लेता है। शपथ ग्रहण को लेकर एक दिलचस्प वाकया उपप्रधानमंत्री देवीलाल चौधरी के साथ जुड़ा है। ये बात साल 1989 की वीपी सिंह सरकार के शपथ ग्रहण समारोह की है, जिसका जिक्र तात्कालीन राष्ट्रपति वेंकटरमण ने अपनी किताब ‘कमिशन फॉर ऑमिशन ऑफ इंडियन प्रेजिडेंट’ में किया है। वेंकटरमण ने लिखा है कि जब वो देवीलाल चौधरी को शपथ दिला रहे थे तो देवीलाल अपनी शपथ में मंत्री की बजाए उप-प्रधानमंत्री बोल रहे थे। राष्ट्रपति ने उन्हें ऐसा करने से रोका लेकिन देवीलाल ने उप प्रधानमंत्री बोलना जारी रखा। दरअसल देवी लाल को लगा होगा कि अगर शपथ के दौरान उन्होंने उप प्रधानमंत्री शब्द नहीं बोला तो उनकी हैसियत एक मंत्री की होकर रह जाएगी। आखिरकार हारकर वेंकटरमण ने उन्हें टोकना छोड़ दिया। बाद में ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। कोर्ट ने कहा कि भले देवीलाल खुद को उप-प्रधानमंत्री मानें लेकिन उनके अधिकार केंद्रीय मंत्री जैसे ही रहेंगे क्योंकि संविधान में ये टर्म ही नहीं है। यही बात डिप्टी सीएम पद पर भी लागू होती है।

अब तक 7 उपप्रधानमंत्री नियुक्त

सरदार वल्लभ भाई पटेल उपप्रधानमंत्री पद को धारण करने वाले नेता रहे। वे पंडित जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में गृहमंत्री थे। वे 15 अगस्त 1947 से 15 दिसंबर 1949 तक इस पद पर रहे। (Facts About Deputy CM) खास बात ये है कि सरदार पटेल की ये नियुक्ति संविधान के लागू होने यानी 1950 से पहले हुई थी। तब से लेकर अब तक मोरारजी देसाई, चरण सिंह, जगजीवन राम, यशवंतराव बलवंतराव चव्हाण, चौधरी देवीलाल और लालकृष्ण आडवाणी के रूप में कुल 7 उपप्रधानमंत्री रहे। आडवाणी 20 मई 2004 तक उपप्रधानमंत्री रहे, जिसके बाद उपप्रधानमंत्री पद पर नियक्ति की कोई सियासी जरूरत नहीं पड़ी।

उपमुख्यमंत्री पद का इतिहास

उपमुख्यमंत्री पद का इतिहास भी काफी पुराना है। डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा किसी राज्य में नियुक्त होने वाले पहले उपमुख्यमंत्री थे। वे साल 1946 से 1957 तक बिहार के डिप्टी सीएम रहे। इसके अलावा देश के राष्ट्रपति रह चुके नीलम संजीव रेड्डी भी पचास के दशक में आंध्रप्रदेश के डिप्टी सीएम रह चुके हैं। जब आंध्र प्रांत मद्रास से अलग हुआ और टी. प्रकाशम मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने नीलम संजीव रेड्डी को अपनी डिप्टी सीएम नियुक्त किया। बाद में नीलम संजीव रेड्डी सीएम भी बने लेकिन उन्होंने डिप्टी सीएम को गैरजरूरी पद बताकर किसी को भी डिप्टी सीएम बनाने से इंकार कर दिया। तब से लेकर अब तक राज्यों में डिप्टी सीएम नियुक्त करने का सिलसिला जारी है। चूंकि डिप्टी सीएम पद की नियुक्तियों के मूल में राजनीतिक कारण ही रहा है, इसी वजह से कुछ प्रदेशों में दो-दो डिप्टी सीएम भी नियुक्त हुए हैं। नीतिश कुमार की अगुवाई वाली भाजपा-जदयू गठबंधन सरकार में भाजपा ने दो डिप्टी सीएम नियुक्त किए थे। वहीं उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत हासिल होने के बावजूद अंदरुनी सियासी संतुलन बनाए रखने के लिए भाजपा ने दो उप-मुख्यमंत्रियों को शपथ दिलाई थी। गोवा में भी दो डिप्टी सीएम रहे। कर्नाटक में तीन डिप्टी सीएम रह चुके हैं। डिप्टी सीएम से जुड़ी दिलचस्प बात ये है कि आंध्रप्रदेश में कोई सियासी मजबूरी नहीं होने के बावजूद सीएम जगमोहन रेड्डी ने एक-दो नहीं बल्कि पांच डिप्टी सीएम बनाए हैं। जगमोहन रेड्डी के मुताबिक उन्होंने राज्य के हर वर्ग को प्रतिनिधित्व देने के लिए पांच डिप्टी सीएम की नियुक्ति की है।

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