कांग्रेस का फैसला – प्राण प्रतिष्ठा समारोह में राम मंदिर नहीं जाएंगे। चर्चा हो रही है कि यह फैसला सही है या फिर गलत। कांग्रेस पर इसके साथ ही वोट बैंक की राजनीति का आरोप भी लग रहा है। अब कांग्रेस की मुसीबत ये है कि मुस्लिम वोट दूसरी पार्टियों की तरफ जा रहे हैं, यह कुछ सालों का ट्रेंड है, इसलिए यह फैसला उसकी नजर में ठीक है। कांग्रेस के फैसला लेने वालों को लगता होगा कि जो मुस्लिम वोट खिसक गए हैं यदि इस फैसले मात्र से वह वोट वापस आए तो कुछ सीटें बढ़ सकती हैं। पार्टी के पास यही एक मौका है जब वह मुस्लिम समाज के बीच अन्य साथी दलों के मुकाबले ज्यादा विश्वसनीय बनने का प्रयास करे। यही उसने किया है। कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम का बयान है कि पार्टी का यह दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है। कई और नेता इसके पक्ष में नहीं दिख रहे हैं। कुछ राज्यों में तो कांग्रेस नेताओं ने रामभक्ति दिखाने का प्रयास भी किया है। ये पूछा जा रहा है कि क्या राम मंदिर नहीं जाकर क्या कांग्रेस को सचमुच फायदा होगा ?
ज्यादातर विश्लेषक मानते हैं कि कांग्रेस को कोई फायदा नहीं होगा, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इस फैसले से एक विशेष समाज में उसकी विश्वसनीयता बढ़ेगी। यह निश्चित रूप से अभी के आने वाले चुनाव में कांग्रेस के फायदे की बात है और उसके अपने गठबंधन सहयोगियों के लिए चिंता का कारण है। सिर्फ यही वजह है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाकर खड़े I.N.D.I.A. वाले दलों को भी राम मंदिर से दूरी बनानी पड़ रही है। यही दल कुछ समय पहले तक मंदिर जाने की बात करते दिख रहे थे पर अब नहीं जाने की बात करने लगे हैं। जाहिर है गए तो वोट बैंक खिसक सकता है और दूसरी तरफ से वोट आएंगे इसकी कोई गारंटी फिलहाल नहीं है।
इधर कांग्रेस को भी लग रहा होगा कि उसे हर हाल में हिन्दू वोट 15-20 फीसदी तो मिलते ही हैं। वह फिर से मिल ही जाएंगे, लेकिन मंदिर जाकर एक- दो फीसदी भी वोट बढ़ेंगे गारंटी नहीं। अब मंदिर नहीं जाने को लेकर कांग्रेस पार्टी का बहाना है कि यह आरएसएस, बीजेपी और वीएचपी का मंदिर है। यह अभी अधूरा है और यह भी वह कह रही है कि मंदिर को लेकर राजनीति हो रही है, इसलिए नहीं जाना है। तो क्या यह सवाल नहीं उठेगा कि राम लला के प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जाकर क्या कांग्रेस भी राजनीति नहीं कर रही है ? जाहिर है अगर बीजेपी इसमें कांग्रेस नेताओं को बुलाकर राजनीति कर रही है, तो नहीं जाकर कांग्रेस नेता भी राजनीति ही कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में राहुल गांधी और प्रियंका ने मंदिर- मंदिर भटककर जो पूजा की, अभिषेक किया, गंगा स्नान किया, त्रिपुंड लगाया और कोट के ऊपर जनेऊ तक पहना उसका क्या होगा ? कांग्रेस के राम मंदिर पर एक फैसले ने राहुल- प्रियंका की मंदिर वाली सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है।
इन सबसे परे कुछ ऐसी बातें भी हैं जिन पर अभी चर्चा करना प्रासंगिक ही होगा। कांग्रेस ने यह फैसला तात्कालिक लाभ के लिए तो लिया है पर दूरगामी परिणाम उसके हित में नहीं आएंगे। पहली बात तो यह है कि कांग्रेस के लाखों हिन्दू कार्यकर्ता पार्टी के इस फैसले से निराश होंगे। इनमें वैसे कार्यकर्ता ज्यादा होंगे जो सत्ता से कुछ हासिल नहीं करते बल्कि सिर्फ राजनीतिक दल से जुड़े होने को ही अपने लिए उपलब्धि मानते हैं, वे तो पार्टी से दूरी बना ही लेंगे। वहीं बड़े नेता जो चुनाव में ‘राम’ की आंधी को देख पा रहे हैं वे कांग्रेस छोड़ने लगें तो आश्चर्य नहीं होगा। लगता है कांग्रेस में चुनाव के पहले भगदड़ जैसी स्थिति बनेगी और बड़े -बड़े नेता अपना भविष्य बचाने के लिए बीजेपी में जाना चाहेंगे। ये अलग बात है कि बीजेपी उनको स्वीकार कितना करेगी। बीजेपी ने इस सीन की कल्पना पहले से ही कर रखी थी इसलिए दूसरे दलों से आने वाले नेताओं के लिए दरवाजे खुले रखे हैं। वैसे बताया जाता है कि बीजेपी ने अपने वरिष्ठ पदाधिकारियों को दूसरे दलों से आने वाले नेताओं से बातचीत करने के लिए जिम्मेदारी बांट दी है। उन्हें दलबदल करके आने वाले नेताओं का कहां-कहां क्या उपयोग किया जाएगा, इसका खाका बनाने कहा गया है।
अब बात विपक्ष के बाकी दलों की करते हैं। कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल बाकी दल भी जानते हैं कि कांग्रेस यदि नहीं गई तो मुस्लिम वोटों को खासकर आकर्षित करेगी और यह उन दलों की सेहत के लिए भी ठीक नहीं है। इसलिए समाजवादी और भगवान कृष्ण के यादव समाज से आने वाले अखिलेश यादव ने भी जो बयान दिया है उससे लगता है कि वे भी मंदिर नहीं जाएंगे। अपनी पार्टी के एक बड़े पद पर बैठे नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को उन्होंने कई महीने से राम और सनातन की मान्यताओं का अपमान करने की छूट दे रखी है…. अखिलेश सोचते हैं कि वे राम का समर्थन करेंगे पर सिर्फ बातों तक सीमित रहेंगे…और किसी विशेष वर्ग को खुश करने के लिए मौर्य को सनातन पर हमले की छूट देंगे तो बात बन जाएगी। लालू यादव की पार्टी आरजेडी मंदिर को गुलामी का रास्ता बता रही है। उसके नेता भी सनातन का विरोध करते दिख रहे हैं। ठीक वही राजनीति इन दलों के दिमाग में भी है जो कांग्रेस के है। मुस्लिम छिटक न जाएं। यही हाल ममता बनर्जी का दिख रहा है। वामपंथी तो पहले ही साफ कर चुके हैं और बाकी दल भी परख रहे हैं कि उनको क्या करना चाहिए। पर मुस्लिम वोटों की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी हो, आरजेडी हो या तृणमूल सबका रूख एक जैसा ही दिख रहा है। जाहिर है सभी यही मानकर चल रहे हैं कि हिन्दुओं के जो वोट उनको हमेशा मिलते हैं वह तो मिल ही जाएंगे पर मुस्लिम कांग्रेस की तरफ न चले जाएं। इसलिए वे खुद को सनातन का समर्थक भी दिखाते हैं और उनके नेता इसके विरोधी भी दिखते हैं। बस कन्फ्यूज करके वोट पाने की राजनीति चल रही है। अब तो आश्चर्य नहीं होगा यदि मंदिर उद्घाटन और प्राण प्रतिष्ठा का दिन करीब आते- आते यह नेतागण सीधे राम का भी अपमान करें और गाली गलौच वाली भाषा का उपयोग करें।
मजे की बात है कि मुस्लिमों को खुश करने की राजनीति के अंदर ही हिन्दू समाज से दलित वर्ग को अलग करने के लिए कई चालें चली जा रही है। इन दलों के दिमाग में है कि दलित, मुस्लिम, इसाई और कुछ हिन्दू वोट मिल जाएं तो उनका काम हो जाएगा। पर राम का विरोधी दिखकर क्या वे अब तक जिन हिन्दुओं का वोट लेते रहे हैं वह वोट ले पाएंगे ? यह बड़ा सवाल है, और इसका उत्तर तो फिलहाल यही है कि हिन्दू उनसे और दूर ही होंगे। कांग्रेस सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी है इसलिए उसकी ही जिम्मेदारी बड़ी है। उसका व्यवहार बाकी दलों के व्यवहार को प्रभावित ही करेगा।
कभी कभी तो ऐसा लगता है कि क्या सारे विपक्ष को किसी एक जगह से इशारा मिल रहा है…? सभी एक ही राह पर क्यों चल रहे हैं ? जबकि वे भारत के मानस और जनभावना को अच्छी तरह से समझ रहे हैं। इसके बाद भी उनकी राजनीति देख लगता है कि सारे विपक्ष को कोई अदृश्य शक्ति निर्देश दे रही है और वे अपनी राजनीति, अपना भविष्य और अपनी प्रतिष्ठा सब दांव पर लगाने को तैयार हो गए हैं। लगता है कि किसी अदृश्य शक्ति ने इनको आश्वासन दे दिया है कि सनातन धर्म का अपमान करके और उसके बारे में अंड-बंड बोलकर हिन्दू समाज को तोड़ा जा सकता है। विपक्ष को शायद यह भी बताया गया है कि सनातन के कुछ वर्गों की छवि खराब करने से हिन्दू समाज बिखर जाएगा पर यह बड़ी गलती है। उस अदृश्य शक्ति को भले ही सनातन धर्म का ठीक से पता न हो पर विपक्ष सब जानते हुए भी गलती कर रहा है। जहां पर हिन्दू समाज का जुड़ाव विपक्ष देख रहा है, और सोच रहा है कि इस जगह पर चोट करके सनातन को तोड़ा जा सकता है, दरअसल समाज उस जगह से जुड़ा ही नहीं है। सनातन को जो ठीक से नहीं समझ रहे उनको भले ही लगता है कि इस या उस जगह चोट करो और समाज टूट जाएगा और जातियों के बीच झगड़े शुरू हो जाएंगे…लेकिन यह संभव ही नहीं है। कुछ धर्माचार्य भी जो इस या उस दल से करीब हैं इस मामले में तटस्थ नहीं हैं उनको भी यह भ्रम हो गया है कि वे जो कहेंगे हिन्दू समाज उसे मानने के लिए बाध्य हो जाएगा। ऐसे धर्माचार्य खुद ही नहीं समझ पा रहे हैं कि हिन्दू समाज स्वतंत्र इच्छा शक्ति से संचालित समाज है। कहा गया है यहां जितने सिर उतने मत हैं। ऐसे में पूरे समाज को कम से कम किसी एक विचारधारा या मान्यता के पीछे नहीं लगाया जा सकता है। ऐसे में धर्माचार्य यह कोशिश न ही करें तो अच्छा होगा। उनको राजनीतिक दलों के हिसाब से बात करने से बचना चाहिए, बल्कि जन भावना के साथ रहना चाहिए। धर्माचार्यों को यह जान ही लेना चाहिए कि जनता भी उनको कुछ सिखा सकती है।
खैर कुल मिलाकर राम मंदिर पर कांग्रेस और विपक्षियों के व्यवहार और राजनीति को देखकर तो यही लग रहा है कि भारत के प्राण जिनमें बसते हैं, उनको इन दलों ने समझा ही नहीं है। शायद वोटों के आगे नहीं देख पाने से इनकी नजर धुंधली हो गई है। राम यहां कण- कण में हैं। भारत की हवाओं में, नदियों में, पहाड़ों में, मैदानों में और मरूस्थलों में राम ही बसते हैं। राम का विरोध भारत का ही विरोध होगा। अगल कुछ ही महीनों में भारत के राजनीतिक दलों को यह साफ समझ आ जाएगा कि सनातन को ‘साफ’ करने की बात करना खुद को समाप्त करने जैसा ही है। लगता है राम मंदिर और प्राण प्रतिष्ठा से दूरी- कांग्रेस के ही प्राण ले लेगी…।
read more: यूपीआई, पेनाउ गठजोड़ से अब सिंगापुर से सीधे अपने खातों में धन प्राप्त कर सकते हैं भारतीय