-सौरभ तिवारी
लोकसभा चुनाव के बाद देश की राजनीतिक मिजाज में आई तब्दीली के मद्देनजर हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनावों को भविष्यगत राजनीति के लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है। इन दोनों राज्यों के नतीजों में झारखंड, महाराष्ट्र और दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों में सियासी दलों की ओर से चले जाने वाले सियासी कदमों की आहट सुनी जा सकती है। खासकर हरियाणा के चुनावी नतीजे अगले माहों में होने वाले चुनावी समीकरणों की दिशा और दशा को तय करने वाले साबित होंगे।
अबकि बार 400 पार का नारा लगाने वाली भाजपा के 240 पर सिमट जाने से भाजपा की काफी फजीहत हुई है। बैशाखी के सहारे चल रही सरकार की छवि यू टर्न वाली गवर्नमेंट बन गई है। 56 इंची सीना वाली सरकार की छवि को पहुंचे नुकसान के चलते भाजपा के लिए हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव असली सियासी कसौटी वाले थे। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर वो पहले राज्य हैं जहां लोकसभा चुनाव के बाद मतदान हुआ है। भाजपा और खासकर नरेंद्र मोदी की साख पर लगे डेंट की भरपाई के लिए इन दोनों राज्यों में भाजपा पर अपने परफारमेंस को बरकरार रखने का मनोवैज्ञानिक दबाव था। दोनों राज्यों के नतीजे बताते हैं कि भाजपा अपने परफारमेंस के जरिए विरोधी दलों की ओर से गढ़े जा रहे नैरेटिव और परसेप्शन के जाल को काटने में सफल हुई है। खासकर हरियाणा में जहां एग्जिट पोल में भाजपा की हार सुनिश्चित बताई जा रही थी, वहां उसने हैट्रिक लगाकर ‘निकट भविष्य’ की राजनीति की दिशा और दशा दोनों बदल दी है। निकट भविष्य में ही महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लिहाजा हरियाणा के नतीजों ने भाजपा के कॉन्फिडेंस को जो बूस्ट दिया है उसका असर इन राज्यों की सियासत में पड़ना तय है।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजे अगले कुछ माह में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान बनने वाले गठबंधनीय सियासी समीकरणों को बहुत हद तक प्रभावित करेंगे। नरेंद्र मोदी को तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए बनाए गए गठबंधन ‘इंडिया’ के भावी स्वरूप के लिए इन दोनों राज्यों के चुनावी नतीजे काफी अहम साबित होंगे। हरियाणा के नतीजों ने गठबंधन दलों के सहयोगियों खासकर कांग्रेस की बारगेनिंग पावर को काफी हद तक प्रभावित किया है। अगर कांग्रेस हरियाणा की सत्ता भाजपा के हाथों से छीनने में सफल हो जाती तो ‘इंडिया’ गठबंधन में उसकी भूमिका बिग ब्रदर से आगे बढ़कर बिग बॉस की हो जाती। लेकिन हरियाणा में मिली मात ने महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में होने वाले चुनाव में उसकी बारगेनिंग पावर को कमजोर किया है। इंडिया गठबंधन महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी के बैनर तले चुनाव मैदान में है। हरियाणा में मिली मात के बाद कांग्रेस अब शरद पवार और उद्दव ठाकरे के साथ सीट शेयरिंग की सौदेबाजी में वो दबदबा नहीं दिखा पाएगी जो वो हरियाणा को कब्जे में करने के बाद कर पाती।
दिल्ली में कुछ यही हाल आम आदमी पार्टी के साथ होने वाला है। यूं कहने को तो आप और कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं लेकिन राज्यों के चुनाव में दोनों अपनी-अपनी सुविधा अनुसार रास्ता अख्तियार कर लेते हैं। लोकसभा चुनाव में हरियाणा में दोनों दल साथ में चुनाव लड़े जहां आप के हिस्से में चंडीगढ़ सीट आई लेकिन उसे वो जीत नहीं सकी। हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने अपनी हैसियत से बढ़कर सीटें मांगी जो कांग्रेस को कबूल नहीं हुई लिहाजा दोनों दलों के बीच सहमति नहीं बन सकी और आम आदमी पार्टी ने सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। दरअसल आम आदमी पार्टी ने अपने तिहाड़ रिटर्न नेता केजरीवाल के ‘हरियाणा के लाल’ होने की वजह से जीत का मुगालता पाल लिया था, लेकिन हरियाणवी मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी को उसकी सियासी औकात दिखा दी है। लोकसभा चुनाव के दौरान आप ने दिल्ली को लेकर भी कुछ यही मुगालता पाल लिया था लेकिन तब भी उसकी कुछ ऐसी ही दुर्गति हुई थी। दिल्ली के बाद हरियाणा में भी मिली करारी हार के बाद अब आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव में सीट सौदेबाजी में अपर हैंड रख पाना मुमकिन नहीं रहेगा।
झारखंड में मुख्य मुकाबला झारखंड मुक्ति मोर्चा और भाजपा के बीच रहने वाला है। यहां भी मुकाबला ‘एनडीए’ वर्सेस ‘इंडिया’ का ही होना है। इंडिया गठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई में कांग्रेस और दीगर दल होंगे जबकि एनडीए की ओर से भाजपा सेनापति की भूमिका में रहेगी। हरियाणा में भाजपा ने जाट प्रभुत्व वाली राजनीति को गैरजाट जातियों के समीकरणों के जरिए साध कर जो संगठनात्मक और रणनीतिक कुशलता दिखाई है उसने विरोधी दलों के साथ ही सियासी पंडितों को भी हैरानी में डाल दिया है। भाजपा की मातृसंस्था RSS ने भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा की ओर की गई अपमानजनक टिप्पणी के बावजूद इस मुश्किल घड़ी में मैदान संभाला जिसका नतीजा भाजपा की चमत्कारिक हैट्रिक के रूप में सामने आया। RSS की झारखंड के आदिवासी इलाकों में काफी मैदानी पकड़ है और अगर उसने भाजपा के पक्ष में मोर्चा संभालने की यही भलमनसाहत दिखाई तो झारखंड में भी RSS भाजपा की राह आसान बना सकती है।
– लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।
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