बरुण सखाजी
Muzaffarnagar School Video: मुजफ्फरनगर की घटना ने दिल दहला दिया। एक मासूम को शिक्षिका अपनी मौजूदगी में कम्युनल कमेंट करते हुए पिटवाती है। बच्चा चुप खड़ा दर्द से कराहता है। बच्चा तो बच्चा है। कर ही क्या सकता था। वीडियो बन रहा था। मैडम को परवाह नहीं थी। कौन होगा जो इससे आंखें मूंद लेगा। मैं इसके राजनीतिक अर्थों, निहतार्थों में नहीं जाना चाहता। जो है वह अच्छा नहीं है। ऐसा नहीं होना चाहिए।
करीब 28-29 साल पहले की बात है। मैं एक स्कूल में पढ़ाता था। सभी धर्मों के बच्चे पढ़ते थे। विभिन्न आयोजनों में मुस्लिम बच्चे तिलक नहीं लगवाते थे। सरस्वती पूजा में शामिल नहीं होते थे। प्रार्थना में हाथ नहीं जोड़ते थे। गुरुजनों के पैर पड़ने की परंपरा का निर्वहन नहीं करते थे। इसके ठीक उलट हिंदू बच्चों में यह सब चीजें स्वाभाविक रूप से थी। करीब 3 साल मैंने वहां काम किया। मुझे किसी एक दिन भी कोई हिंदू बच्चा यह कहता नहीं दिखा, ये बच्चे ऐसा क्यों करते हैं। न उस हिंदी बच्चे ने इसे लेकर कोई जिज्ञासा जताई। यूं जैसे स्वाभाविक है। होना चाहिए। होने दीजिए, हम कट्टर नहीं। मुस्लिम बच्चों में जरूर यह प्रश्न होते रहे, आखिर क्यों सरस्वती पूजा करवाते हैं। कई बार तो बच्चे ऐसा भी कह दिया करते थे, सर एक दिन पहले बता दिया कीजिए आज यह होगा तो हम स्कूल आएंगे नहीं। जब मैं पूछता, ऐसा क्यों? वह बोलते घर पर डांट पड़ती है। मौलाना के पास ले जाकर डांट खिलवाई जाती है। हमें डांट नहीं खाना।
बच्चे तो बच्चे हैं, लेकिन इनके दिमाग में यह सब भर कौन रहा है। कौन है जो इनके मन में जहर बो रहा है। कौन है जो इन्हें मजहबी आधार पर बंट जाने की शिक्षा दे रहा है। कौन है जो इन्हें छुटपन से ही बरगला देता है। यही शिक्षिकाएं या मदरसों के कथित धर्म के ठेकेदार ही इन्हें ऐसी तालीम दे रहे हैं। मुजफ्फरनगरF की घटना ऐसे ही रुलाती है। आखिर उस मासूम बच्चे का दोष क्या था? कैसी शिक्षिका थी आप। थी इसलिए, क्योंकि अब आपको हटा दिया गया है। कैसे स्कूल वाले हैं आप?