परमेन्द्र मोहन
Amit Shah electoral equation visit in Seemanchal bihar : बिहार के सीमांचल में केंद्रीय गृहमंत्री का दो दिवसीय दौरा बीजेपी ने नहीं निर्धारित किया बल्कि खुद अमित शाह ने ही अपनी योजना पर अमल किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये बात खुद गृहमंत्री शाह ने कही। बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह का एक और बयान सीमांचल से ही आया कि वो बिहार की दिशा और दशा तय करने आए हैं। ऐसे में ये समझना दिलचस्प हो जाता है कि बिहार की दशा-दिशा तय करने वाले दौरे का केंद्र सीमांचल ही क्यों चुना गया?
सीमांचल बिहार का वो इलाका है, जो नेपाल से भी लगा है और बंगाल से भी जहां की 4 लोकसभा सीटें किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया हैं। किशनगंज पूरे बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से एकमात्र ऐसी सीट है, जहां एनडीए को जीत नहीं मिली थी। यहां से कांग्रेस के मोहम्मद जावेद ने एनडीए के जदयू उम्मीदवार को हराया था। अररिया सीट एनडीए घटक बीजेपी के खाते में गई, जबकि कटिहार और पूर्णिया जदयू ने जीती। अब इन चारों सीटों पर मुस्लिम आबादी के आंकड़े देखिए। किशनगंज में मुसलमान वोटर्स क़रीब 67 फीसदी हैं, कटिहार में 38 फीसदी, अररिया में 32 फीसदी और पूर्णिया में 30 फ़ीसदी के करीब।
सीमांचल में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की बढ़ती संख्या एक बड़ा मुद्दा है, जिसे लेकर बीजेपी पहले से बेहद मुखर है। इसी ज़मीनी हालात का फ़ायदा उठाते हुए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सीमांचल की 5 सीटें जीतने में कामयाबी भी हासिल की थी, हालांकि बाद में इसके 4 विधायक राजद में शामिल हो गए। ख़ास बात ये है कि राजद के माय समीकरण, भाजपा के हिंदुत्व और जदयू के पसमांदा मुसलमान के समीकरण को भेदकर 5 सीटें जीतने वाली ओवैसी की पार्टी ने विधानसभा स्पीकर चुनाव में बीजेपी को समर्थन दिया था। अब एनडीए से जदयू के अलग होने और राजद के साथ नीतीश कुमार के सरकार बनाने से बिहार के सियासी समीकरण भी बदल चुके हैं। ऐसे में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों का मुद्दा बीजेपी के लिए सीमांचल समेत पूरे बिहार में हिंदू वोटर्स की लामबंदी में मददगार साबित हो सकती है। अमित शाह ने अपनी छवि और आक्रामक राजनीति को समझते हुए सीमांचल को मिशन 2024 के आगाज़ के लिए अभी से चुना है तो इसके पीछे यही आधार है। बिहार में घुसपैठी संघर्ष समिति बनाने और पटना में इसका प्रदेश स्तरीय कार्यालय खोलने का निर्देश इसी रणनीति का पहला कदम माना जा रहा है।
सीमांचल के ज़मीनी मुद्दों की बात करें तो यहां भी पलायन, बेरोज़गारी, गरीबी, किसानों की बदहाली, महंगाई अहम हैं। बिहार देश के पिछड़े राज्यों में भी सबसे निचले पायदान पर है और सीमांचल पिछड़े बिहार के भी पिछड़े इलाकों में शुमार है। ऐसे में यहां की जनता को उम्मीद थी कि बिहार की दशा और दिशा बदलने के लिए अमित शाह कुछ ठोस योजनाओं, कदमों की घोषणा करेंगे, लेकिन शाह अपने दो दिन के दौरे में महंगाई, रोजगार जैसे मुद्दों पर मौन दिखे। उन्हें मखाना की माला पहनाई गई, लेकिन मखाना उत्पादक किसानों समेत यूरिया की किल्लत, MSP पर बिहार में अनाज खरीदी नहीं होने जैसे किसानों के मुद्दों पर भी उन्होंने कुछ नहीं कहा। बिहार के लिए जिस पैकेज की घोषणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की थी, उसे लेकर विपक्ष की ओर से अक्सर सवाल उठाए जाते रहे हैं, शाह ने उसका भी हिसाब सीमांचल के अपने दौरे में बताया, लेकिन बिहार की एनडीए सरकार में डेढ़ दशक तक बीजेपी के भागीदार रहने के बावजूद राज्य के धीमे विकास और पलायन को लेकर भी वो मौन दिखे। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे बुनियादी समस्याओं पर भी शाह ने कुछ नहीं कहा।
Bihar | Union Home Minster Amit Shah holds a meeting with the state core committee in Kishanganj pic.twitter.com/Opkfx19afH
— ANI (@ANI) September 24, 2022
दूसरी ओर, अपने पूर्व गठबंधन साथी जदयू और विशेष रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर अमित शाह जमकर बरसे। नीतीश कुमार के बाद जदयू के कद्दावर नेता ललन सिंह उनके सबसे ज़्यादा निशाना पर रहे। बिहार में रातों-रात सरकार बदलने की रणनीति के पीछे ललन सिंह का ही नाम आया था। जदयू के सहयोगी दल राजद ख़ासकर लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव तो स्वाभाविक रूप से शाह के निशाने पर थे ही। शाह ने 2024 के बाद 2025 विधानसभा चुनावों की भी बात की। सीमांचल में विधानसभा की 24 सीटें हैं और राजद-जदयू गठबंधन अगर बना रहता है तो ये चुनाव भी बेहद दिलचस्प होंगे।
अमित शाह का ये दौरा बिहार की दिशा और दशा किस हद तक तय कर पाएगा ये बता पाना तो अभी जल्दबाज़ी होगी, लेकिन बिहार बीजेपी को ज़रूर राज्य की राजनीति में किस दिशा में बढ़ना है, ये ज़रूर तय कर दिया है।