बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक
भाजपा जोड़ियों से चलती है। क्योंकि जोड़ियां तिजोड़ियां नहीं भर पाती। एक से भले दो भी कहलाते हैं और फैसलों में अधिनायकवाद भी नहीं चल पाता। जाहिर है जोड़ी का फॉर्मूला पक्का है। अब प्रश्न ये है कि मोदी-शाह की मौजूदा जोड़ी को भाजपा में कौन सी जोड़ी रिप्लेस करेगी, जैसा कि अटल-आडवाणी की जोड़ी को शाह और मोदी ने किया था। देश में एक हवा है। भाजपा में एक मजबूत मत है मोदी के बाद योगी, लेकिन यह तो एक के बदले एक हुए। दूसरे यानि शाह के बदले कौन होगा। योगी ने अब तक ऐसा कोई पॉश्चर नहीं दिया है कि उनका जोड़ीदार कौन है? योगी अगर खुद से अपना जोड़ीदार नहीं बनाएंगे तो संघ उन्हें कोई ऐसा जोड़ीदार दे सकता है जो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले। फिलहाल योगी मुख्यमंत्री हैं और अब वे महत्वाकांक्षाओं से भर चुके हैं। सोशल मीडिया पर उनके फैंस और समर्थकों के बढ़ती रफ्तार बता रही है कि उन्हें इस कामयाबी को किसी के साथ शेयर करने की फिलहाल जरूरत नहीं है। लेकिन संघ या भाजपा की अपनी मौलिक नेता निर्माण फैक्ट्री में एक के भरोसे रहने का न कभी रिवाज रहा है न रहेगा। इसलिए देर-सवेर योगी को एक जोड़ीदार खोजना होगा।
अब बात एक और जोड़ी की, जिसकी नर्चरिंग जारी है। हाल के झारखंड विधानसभा चुनाव में एक जोड़ी दिखाई दी। इस जोड़ी में एक शिवराज सिंह चौहान हैं तो दूसरे हेमंता बिस्वसरमा। नतीजों ने जरूर इस जोड़ी के जुड़ाव को परवान नहीं चढ़ने दिया, लेकिन संघ की फैक्ट्री ने दो जोड़े तैयार जरूर कर लिए। अब और भी ऐसे मौके आएंगे जिन पर यह जोड़ी नजर आ सकती है। शिवराज सिंह चौहान के पास सियासत में सीधे तौर पर 40 सालों का विराट अनुभव है। संघ से लेकर भाजपा तक में हर अनुशासन में काम करने का तजुर्बा है। ऐसे में शिवराज सिंह चौहान स्वतः ही इस जोड़ी में मोदी, अटल की तरह बड़े भाई हो जाते हैं। रही बात हेमंता की तो वे एक कामयाब नेता हैं। असम जैसे राज्य में भगवा लहरा रहे हैं। अपनी हिंदुत्ववादी छवि के चलते असम से बाहर देश में भी अपने समर्थक बढ़ा रहे हैं। बस इस जोड़ी के साथ एक ही निगेटिव है कि ये दोनों ही भरेपूरे परिवार वाले हैं।
भाजपा के सामने इन दिनों यह एक बड़ा संकट है। उसके पास जितने भी नेता देशभर में दिखाई दे रहे हैं, उनमें से लगभग सभी घर-परिवार वाले हैं। इसलिए योगी एक बेस्ट च्वाइस बने हुए हैं। फडनवीस, पुष्कर धामी, हेमंता ऐसे तेजतर्रार नेता हैं, जिन्हें पार्टी बड़े दायित्व जरूर देगी, लेकिन दुविधा ये है कि पार्टी के पास सर्वोच्च दायित्व के लिए बड़ा गैप है।
मोदी ने अपनी छवि, काम, सियासत, विचार, अंतरराष्ट्रीय औरा के क्षेत्र में इतना बड़ा पहाड़ खड़ा कर दिया है कि उनके सामने उनके बराबर कोई नहीं लगता। किंतु विचारों में जुटा धड़ा ये मानता है, मोदी उस युग के महानायक हैं जब भारत में नायक होते ही नहीं थे, लेकिन जब नायकों की कतार होगी तो उसमें सर्वश्रेष्ठ नायक चुनने के जनता के मापदंड वे नहीं होंगे जिनकी वजह से मोदी को लोगों ने सरआंखों पर बिठाया है। जाहिर है नेताओं को उभारना संघ का दायित्व है तो वह वैसा कर रहा है।
वर्तमान में भाजपा दक्षिण से भी नेतृत्व को निखार रही है, नॉर्थईस्ट में भी उसने रिजिजू, बीरेन सिंह के रूप में नेता खड़े कर लिए हैं। मध्यभारत में कुछ अच्छे नेता हैं और कुछ अच्छे नेताओं की तलाश जारी है। उत्तर भारत में योगी ऐसा चेहरा हैं ही जिनका फिलहाल कोई सानी नहीं है। जोड़ियों की सियासत में भाजपा योगी के साथ किसे जोड़े अभी यह उधेड़बुन चल रही है।
संघ को भाजपा में ऐसे चेहरे नजर नहीं आ रहे जिन्हें संलग्न किया जा सके तो वह संघ के भीतर भी खोज में जुट गया है। अच्छे स्ट्रैटजिस्ट की तलाश है। समाज, संसार और संघ के विचार को समझने वाले प्रचारक को भी भाजपा में एंट्री दिलाई जा सकती है। ऐसे व्यक्ति के साथ आगे बढ़ा जा सकता है जो योगी को माने, संघ को जाने और चुनावों में गहरा जुड़ाव रखता हो। यह खोज छत्तीसगढ़ तक भी आ सकती है।
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