पटना: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रसिद्ध समाजवादी नेता दिवंगत कर्पूरी ठाकुर को उनकी जयंती से एक दिन पहले देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘‘भारत रत्न’’ के लिए मनोनीत किया गया। कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति के वास्तविक ‘‘जन नायक’’ या लोगों के नायक रहे हैं, जिनकी विरासत पर विचारधाराओं से परे सभी पार्टियां दावा करती रही हैं। केंद्र की घोषणा पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आभार व्यक्त किया। जनता दल यूनाइटेड (जदयू) बुधवार को ठाकुर की जयंती मनाने के लिए एक बड़ी रैली आयोजित करने जा रही है। जदयू के शीर्ष नेता नीतीश ने कहा कि दिवंगत कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी 100वीं जयंती पर दिया जाने वाला ये सर्वोच्च सम्मान दलितों, वंचितों और उपेक्षित तबकों के बीच सकारात्मक भाव पैदा करेगा।
उन्होंने कहा कि वो हमेशा से दिवंगत कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न देने की मांग करते रहे हैं। आज कर्पूरी ठाकुर जी को दिए जाने वाले इस सम्मान से उन्हें खुशी मिली है और जदयू की वर्षो पुरानी मांग पूरी हुई है। वर्ष 1924 में समस्तीपुर जिले के एक गांव में जन्मे ठाकुर अल्पकालिक कार्यकाल के लिए दो बार मुख्यमंत्री रहे और उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक युवा छात्र के रूप में अपनी राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। इस आंदोलन के कारण उन्हें कई महीने जेल में बिताने पड़े थे। समाजवादी नेता एवं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी के दिवंगत पिता रामानंद तिवारी ठाकुर के सहयोगियों में से एक थे। तिवानी ने कहा, “सत्ता में उनका कार्यकाल लंबे समय तक नहीं चल सका। लेकिन, उन दिनों एक गरीब परिवार और अत्यंत पिछड़ी जाति ‘‘नाई’ से ताल्लकु रखने वाले व्यक्ति के लिए सत्ता की सर्वोच्च सीट तक पहुंचना कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी।’’
हालांकि ठाकुर ने शुरुआत में एक गांव के स्कूल में शिक्षक की नौकरी की, लेकिन उनकी रुचि हमेशा से राजनीति में आने की थी और 1952 में हुए पहले राज्य विधानसभा चुनाव में ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में वह विजयी हुए। यह समय कांग्रेस के आधिपत्य वाला था । तिवारी ने कहा, ‘‘कर्पूरी ठाकुर लोक नायक जयप्रकाश नारायण के करीबी थे, हालांकि बाद में वह राम मनोहर लोहिया के भी करीब हो गये। उनमें नेतृत्व के गुण ऐसे थे कि तथाकथित निचली जाति से होने के बावजूद ऊंची जाति के लोग उनका सम्मान करते थे।’’
समाजवादी नेता ठाकुर 1967 में प्रमुखता से उस समय उभरे, जब राज्य में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। उपमुख्यमंत्री बने ठाकुर के पास शिक्षा विभाग भी रहा और उन्हें अक्सर स्कूलों में अनिवार्य विषय के रूप में अंग्रेजी को हटाने के लिए याद किया जाता है। तिवारी ने कहा, “यह एक बहुत ही साहसिक कदम था। बिहार जैसे राज्य में अधिकांश छात्रों के लिए अंग्रेजी में दक्षता हासिल करना आसान नहीं था, खासकर वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों के लिए। ठाकुर जी ने ऐसा कदम उठाने की हिम्मत दिखाई। अब देश के विभिन्न हिस्सों में अन्य लोग अनुकरण करेंगे।’’
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मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ठाकुर को अपना मार्गदर्शक कहते हैं। ठाकुर ने पहली बार 1970 में सत्ता की सर्वोच्च सीट (मुख्यमंत्री) हासिल की जिसपर वे एक साल से भी कम समय तक आसीन रहे। पांच साल बाद जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद वह फिर से मुख्यमंत्री बने। तिवारी ने कहा, “यह सच है कि ठाकुर ने कभी भी सत्ता में पूरे पांच साल का कार्यकाल नहीं बिताया। मुख्यमंत्री के रूप में उनके दो कार्यकालों की कुल अवधि तीन वर्ष से कम रही होगी। लेकिन उनकी उपलब्धियां सांख्यिकीय आंकड़ों से कहीं अधिक बड़ी हैं।’’
तिवारी ने कहा कि ठाकुर के कार्यकाल के दौरान ही पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण शुरू करते हुए मुंगेरीलाल आयोग की सिफारिशें लागू की गईं। राजनीतिक शब्दावली में ‘अति-पिछड़ा’ के नाम से लोकप्रिय सबसे पिछड़ा वर्ग को उनके समय में एक अलग श्रेणी के रूप में मान्यता दी गई थी। राजद नेता तिवारी पूर्व में नीतीश कुमार की जदयू में भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिस शराबबंदी को वर्तमान मुख्यमंत्री अपनी प्रमुख उपलब्धियों में से एक मानते हैं, यह प्रयोग पहली बार बिहार में कर्पूरी ठाकुर के कार्यकाल के दौरान किया गया था।
नीतीश कुमार ठाकुर को भारत रत्न दिये जाने के लिए लंबे से मांग करते आ रहे है। वर्ष 1988 में ठाकुर ने अंतिम सांस ली और हालांकि उनके बेटे राम नाथ ठाकुर नीतीश की पार्टी जदयू से राज्यसभा सांसद हैं, लेकिन दिवंगत नेता को हमेशा उस व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है जो भाई-भतीजावाद से दूर रहते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर लिखा, ‘मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। वह भी ऐसे समय में जब हम उनकी जन्मशती मना रहे हैं। दलितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी है। यह पुरस्कार न केवल उनके उल्लेखनीय योगदान का सम्मान है, बल्कि हमें अधिक न्यायसंगत समाज बनाने के उनके मिशन को जारी रखने के लिए भी प्रेरित करता है।’
मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने समाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। उनकी जन्म-शताब्दी के अवसर पर यह निर्णय देशवासियों को गौरवान्वित करने वाला है। पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी… pic.twitter.com/hRkhAjfNH3
— Narendra Modi (@narendramodi) January 23, 2024