Basant Panchami Pujan Vidhi 2024: हिन्दुओं का सबसे पवित्र त्यौहार यानि बसंत पंचमी हर साल माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि देवी सरस्वती की पूजा के लिए समर्पित है। इस वर्ष यानि 2024 में 14 फरवरी को बसंत पंचमी मनाएंगे। बसंत पंचमी के दौरान देवी सरस्वती की पूजा और बीज मंत्रों का जाप करने से बुद्धि, विवेक, अच्छी सेहत, मधुर वाणी और गुणों की प्राप्ति होती है।
बसंत पंचमी सरस्वती पूजा मुहूर्त- 14 फरवरी 2024 बुधवार के दिन प्रातः 07:01 से दोपहर 12:35 के मध्य ।
अमृत काल मुहूर्त : प्रातः 08:30 से प्रातः 09:59 तक।
गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:08 से 06:33 तक।
रवि योग : प्रातः 10:43 से अगले दिन प्रातः 07:00 तक।
Basant Panchami Pujan Vidhi 2024: सर्वप्रथम बसंत पंचमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद पीले या सफेद रंग के कपड़े पहनें। इसके बाद सरस्वती पूजा की तयारी करें।
पूजा स्थान पर चौकी पर पीले रंग के वस्त्र को बिछाकर मां सरस्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मां सरस्वती को गंगाजल से स्नान कराएं यदि गंगा जल न हो तो स्वच्छ और ताजा जल का उपयोग करे। फिर उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं।
इसके बाद आप पीले फूल, अक्षत, सफेद चंदन या पीले रंग की रोली, पीला गुलाल, धूप, दीप और अगरबत्ती अर्पित करें
इस दिन मां सरस्वती को गेंदे के फूल या पीले फूल की माला पहनाएं। साथ ही पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं.
इसके बाद सरस्वती वंदना और मंत्र के साथ देवी सरस्वती की पूजा करें।
आप चाहें तो पूजा के दौरान सरस्वती कवच का पाठ भी कर सकते हैं।
आखिर में हवन के लिए एक हवन कुंड बनाए फिर हवन सामग्री तैयार कर लें और ‘ओम श्री सरस्वत्यै नमः: स्वहा” मंत्र का जाप करते हुए हवन करें।
फिर अंतिम में,सभी के साथ खड़े होकर मां सरस्वती की आरती करें।
Shri Sarasvati Kavacham Ka Path Karne Ki Vidhi: श्री सरस्वती कवचम् का पाठ से भाग्य का उदय होता है जिसे विधि पूर्वक करना चाहिए। सबसे पहले प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा के लिये हो सके तो पीले वस्त्र धारण करें या फिर श्वेत रंग के वस्त्र धारण करना भी शुभ माना जाता हैं।
पूजा स्थान पर चौकी बनाकर पीले रंग के वस्त्र को बिछाकर देवी सरस्वती और भगवान गणेश जी की प्रतिमा या फोटो के समक्ष दीपक जलायें।
पहले श्री गणेश जी पूजा करें। तत्प्श्चात् देवी सरस्वती की पूजा करें, भोग लगायें।
फिर पूर्व दिशा की ओर मुख करके जमीन पर आसन पर बैठकर श्री सरस्वती कवचम् का पाठ करें।
Shri Sarasvati Kavacham
भैरव उवाच –
श्रृणु देवि! प्रवक्ष्यामि वाणीकवचमुत्तमम् ।
त्रैलोक्यमोहनं नाम दिव्यं भोगापवर्गदम् ॥ १॥
मूलमन्त्रमयं साध्यमष्टसिद्धिप्रदायकम् ।
सर्वैश्वर्यप्रदं लोके सर्वाङ्गमविनिश्चितम् ॥ २॥
पठनाच्छ्रवणात् देवि! महापातकनाशनम् ।
महोत्पातप्रशमनं मूलविद्यामनोहरम् ॥ ३॥
यद्धृत्वा कवचं ब्रह्मा विष्णुरीशः शचीपतिः ।
यमोऽपि वरुणश्चैव कुबेरोऽपि दिगीश्वराः ॥ ४॥
ब्रह्मा सृजति विश्वं च विष्णुर्दैत्यनिसूदनः ।
शिवः संहरते विश्व जिष्णुः सुमनसां पतिः ॥ ५॥
दिगीश्वराश्च दिक्पाला यथावदनुभूतये ।
त्रैलोक्यमोहनं वक्ष्ये भोगमोक्षैकसाधनम् ॥ ६॥
सर्वविद्यामयं ब्रह्मविद्यानिधिमनुत्तमम् ।
त्रैलोक्यमोहनस्यास्य कवचस्य प्रकीर्तितः ॥ ७॥
विनियोगः –
ऋषिः कण्वो विराट् छन्दो देवी सरस्वती शुभा ।
अस्य श्रीसरस्वती देवता, ह्रीं बीजं, ॐ शक्तिः, ऐं कीलकं,
त्रिवर्गफलसाधने विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः –
कण्वऋषये नमः शिरसि । विराट् छन्दसे नमः मुखे ।
देवीसरस्वत्यै नमः हृदि । ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये ।
ॐ शक्तये नमः नाभौ । ऐं कीलकाय नमः पादयोः ।
त्रिवर्गफलसाधने विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे॥
ॐ ऐं ह्रीं ह्रीं पातु वाणी शिरो मे सर्वदा सती ।
ॐ ह्रीं सरस्वती देवी भालं पातु सदा मम ॥ ८॥
ॐ ह्रीं भ्रुवौ पातु दुर्गा दैत्यानां भयदायिनी ।
ॐ ऐं ह्रीं पातु नेत्रे सर्वमङ्गलमङ्गला ॥ ९॥
ॐ ह्रीं पातु श्रोत्रयुग्मं जगदभयकारिणी ।
ॐ ऐं नासा पातु नित्यं विद्या विद्यावरप्रदा ॥ १०॥
ॐ ह्रीं ऐं पातु वक्त्रं वाग्देवी भयनाशिनी ।
अं आं इं ईं पातु दन्तान् त्रिदन्तेश्वर पूजिताः ॥ ११॥
उं ऊं ऋं ॠं ऌं ॡं एं ऐं पातु ओष्ठौ च भारती ।
ओं औं अं अः पातु कण्ठं नीलकण्ठाङ्कवासिनी ॥ १२॥
कं खं गं घं ङं पायान्मे चांसौ देवेशपूजिता ।
चं छं जं झं ञं मे पातु वक्षो वक्षःस्थलाश्रया ॥ १३॥
टं ठं डं ढं णं पायान्मे पार्श्वौ पार्श्वनिवासिनी ।
तं थं दं धं नं मे पातु मध्ये लोकेशपूजिता ॥ १४॥
पं फं बं भं मं पायान्मे नाभिं ब्रह्मेशसेविता ।
यं रं लं वं पातु गुह्य नितम्बप्रियवादिनी ॥ १५॥
शं षं सं हं कटिं पातु देवी श्रीवगलामुखी ।
ऊरू ळं क्षं सदा पातु सर्वाविद्याप्रदा शिवा ॥ १६॥
सरस्वती पातु जङ्घे रमेश्वरप्रपूजिता ।
ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं पातु पादौ पादपीठनिवासिनी ॥ १७॥
विस्मारितं च यत् स्थानं यद्देशो नाम वर्जितः ।
तत्सर्वं पातु वागेशी मूलविद्यामयी परा ॥ १८॥
पूर्वे मां पातु वाग्देवी वागेशी वह्निके च माम् ।
सरस्वती दक्षिणे च नैऋत्ये चानलप्रिया ॥ १९॥
पश्चिमे पातु वागीशा वायौ वेणामुखी तथा ।
उत्तरे पातु विद्या चैशान्यां विद्याधरी तथा ॥ २०॥
असिताङ्गो जलात् पातु पयसो रुरुभैरवः ।
चण्डश्च पातु वातान्मे क्रोधेशः पातु धावतः ॥ २१॥
उन्मत्तस्तिष्ठतः पातु भीषणश्चाग्रतोऽवतु ।
कपाली मार्गमध्ये च संहारश्च प्रवेशतः ॥ २२॥
पादादिमूर्धपर्यन्तं वपुः सर्वत्र मेऽवतु ।
शिरसः पादपर्यन्तं देवी सरस्वती मम ॥ २३॥
इतीदं कवचं वाणी मन्त्रगर्भं जयावहम् ।
त्रैलोक्यमोहनं नाम दारिद्र्यभयनाशनम् ॥ २४॥
सर्वरोगहरं साक्षात् सिद्धिदं पापनाशनम् ।
विद्याप्रदं साधकानां मूलविद्यामयं परम् ॥ २५॥
परमार्थप्रदं नित्यं भोगमोक्षैककारणम् ।
यः पठेत् कवचं देवि! विवादे शत्रुसङ्कटे ॥ २६॥
वादिमुखं स्तम्भयित्वा विजयी गृहमेष्यति ।
पठनात् कवचस्यास्य राज्यकोपः प्रशाम्यति ॥ २७॥
त्रिवारं यः पठेद् रात्रो श्मशाने सिद्धिमाप्नुयात् ।
रसैर्भूजे लिखेद् वर्म रविवारे महेश्वरि! ॥ २८॥
अष्टगन्धेर्लाक्षया च धूपदीपादितर्पणैः ।
सुवर्णगुटिकां तत्स्थां पूजयेत् यन्त्रराजवत् ॥ २९॥
गुटिकैषा महारूपा शुभा सरस्वतीप्रदा ।
सर्वार्थसाधनी लोके यथाऽभीष्टफलप्रदा ॥ ३०॥
गुटिकेयं शुभा देव्या न देया यस्य कस्यचित् ।
इदं कवचमीशानि मूलविद्यामयं ध्रुवम् ॥ ३१॥
विद्याप्रदं श्रीपदं च पुत्रपौत्रविवर्धनम् ।
आयुष्यकरं पुष्टिकरं श्रीकरं च यशः प्रदम् ॥ ३२॥
इतीदं कवचं देवि! त्रैलोक्यमोहनाभिधम ।
कवचं मन्त्रगर्भं तु त्रैलोक्य मोहनाभिधम् ॥ ३३॥
॥ इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे दशविद्यारहस्ये सरस्वती कवचम् ॥
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