रायपुर: आज हम छग के उस विधानसभा सीट की करेंगे जहां भाजपा को आजादी के बाद से जीत का इंतजार है। जीत को तरस रही भाजपा ने यहां से सेना के जवान को मैदान में उतारा है और उनके सामने है चार बार के राजनीति के माहिर खिलाड़ी। क्या सेना का जवान खिला पायेगा कमल या फिर हाथ होगा एक बार फिर मजबूत।
छत्तीसगढ़ में भले ही 15 सालों तक भाजपा की सरकार रही हो और भाजपा ने कांग्रेस को मात देकर सत्ता की चाबी अपने नाम की हो मगर छत्तीसगढ़ की एक ऐसी सीट है जिस पर भाजपा को अब तक जीत नहीं मिल सकी है।
जी हां वह सीट है सरगुजा जिले की सीतापुर विधानसभा की सीट जहां से बीजेपी अब तक जीत को तरसती रही है। सीतापुर विधानसभा क्षेत्र में 1951 में पहला चुनाव हुआ जिसमें हरिभजन सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे और उन्होंने जीत दर्ज की बाद में हरिभजन सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए। 1951 में निर्दलीय के जीतने के बाद 1957,1962,1967, 1972,1977,1980 और 1985 तक यानी करीब 35 सालों तक यहां कांग्रेस का कब्जा रहा मगर 1990 में यहाँ फिर एक बार निर्दलीय प्रत्याशी रामखेलावन ने भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों को शिकस्त देते हुए जीत अपने नाम दर्ज की।
1998 में हुए चुनाव में प्रोफेसर गोपाल राम ने यहां फिर निर्दलीय विधायक के रूप में कब्जा जमाया और बाद में गोपाल राम भाजपा में शामिल हो गए। सीतापुर विधानसभा सीट से सुखीराम जो कि कांग्रेस पार्टी से थे वे चार बार विधायक बने तो वहीं वर्तमान विधायक अमरजीत भगत ने भी यहां 2003 से लेकर अब तक यानी चार बार चुनाव में जीत दर्ज की है यही कारण है कि सीतापुर विधानसभा को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है और इस गढ़ पर फतह पाने में अब तक भाजपा नाकाम ही साबित हुई है।
इस बार फिर कांग्रेस की तरफ से अमरजीत भगत मैदान में है तो वहीं भाजपा ने यहां एक बड़ा दांव खेलते हुए सेना के जवान रामकुमार टोप्पो को अपना प्रत्याशी बनाया है। बीते चार चुनाव की बात करें तो यहां से 2003 में अमरजीत भगत कांग्रेस की तरफ से मैदान में थे तो वहीं भाजपा ने राजाराम भगत को मैदान में उतारा था, जिन्हें शिकस्त देते हुए अमरजीत भगत ने जीत दर्ज की 2008 के चुनाव में अमरजीत को हराने के लिए भाजपा ने अपने मंत्री गणेश राम भगत को मैदान में उतारा था। बेहद करीबी मुकाबले में अमरजीत भगत ने गणेश राम भगत को भी पटकनी दे दी। 2013 के चुनाव में भाजपा ने फिर अपने पुराने उम्मीदवार राजा राम भगत को ही मैदान में उतर मगर वह भी अमरजीत को हरा पाने में नाकाम साबित रहे।
2018 के चुनाव में निर्दलीय विधायक रहे और बाद में भाजपा में शामिल हुए प्रोफेसर गोपाल राम को मैदान में उतारा लेकिन गोपाल राम भी भाजपा को जीत ना दिला सके। यही कारण है कि अमरजीत भगत का कद बढ़ता गया और लगातार चार चुनाव जीतने वाले अमरजीत भगत अब भूपेश सरकार में खाद्य मंत्री की भूमिका भी संभाल रहे थे।
सीतापुर विधानसभा क्षेत्र में उरांव समाज का बड़ा दखल है इसके अलावा इस इलाके में कंवर, गोंड पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के वोटरों की गिनती आती है यही कारण है कि अमरजीत भगत उरांव समाज के होने के कारण यहां जीत दर्ज करते आ रहे हैं।
2023 के चुनाव के लिए भाजपा ने यहां बड़ा दांव खेला है। भाजपा ने यहां सेना की नौकरी से त्यागपत्र देकर लौटे रामकुमार टोप्पो को अपना प्रत्याशी बनाया है. रामकुमार टोप्पो ने करीब तीन महीने पहले ही अपने नौकरी से इस्तीफा दिया और राजनीति मैदान में उतरे रामकुमार टोप्पो को क्षेत्र के युवाओं ने खत लिखकर राजनीति में उतरने के लिए प्रेरित किया और जैसे ही रामकुमार टोप्पो मैदान में उतरे भाजपा ने उन्हें न सिर्फ अपना सदस्य बनाया बल्कि अब रामकुमार टोप्पो ही भाजपा की तरफ से विधायक प्रत्याशी हैं। रामकुमार टोप्पो वैसे तो लैलूंगा के रहने वाले हैं लेकिन उनकी शिक्षा दीक्षा सीतापुर विधानसभा क्षेत्र में हुई है।
सेना में रहते हुए टोप्पो ने 2021 में रामकुमार टोप्पो को राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार भी मिल चुका है ऐसे में आजादी के बाद से अपने जीत को तरस रही भाजपा ने सेना के जवान को कमल खिलाने की जिम्मेदारी सौंपी है। हालांकि जिस तरह से भाजपा के पुराने नेताओं के टिकट के दौड़ में होने के बाद भी नए प्रत्याशी को भाजपा ने मौका दिया है इसे भाजपा के स्थानीय और पुराने जनप्रतिनिधि पचा नहीं पा रहे हैं और गाहे बगाहे भाजपा के प्रत्याशी का विरोध बीजेपी की तरफ से ही किया जा रहा है। मगर यह माना जा रहा है कि भाजपा के बड़े नेता रामकुमार टोप्पो के समर्थन में है यही कारण है कि रामकुमार टोप्पो को सदस्यता के साथ विधायक का टिकट भी मिल गया है।
अब ऐसे में भाजपा को उम्मीद है कि जिस विधानसभा को अब तक बीजेपी जीत नहीं सकी है वहां से सेना के जवान भाजपा को जीत दिला पाएंगे। सीतापुर से अमरजीत भगत का लगातार कद बढा है और अमरजीत भगत सीतापुर विधानसभा क्षेत्र से एकमात्र उम्मीदवार के रूप में सामने आए हैं और यही कारण है कि कांग्रेस की तरफ से कोई बगावती तेवर देखने को नहीं मिल रहे जबकि भाजपा में मामला उल्टा है। यहां भाजपा के प्रत्याशी का विरोध बीजेपी के नेता ही करते देखे जा रहे हैं इस विधानसभा में एक खास बात यह भी है कि अमरजीत भगत को सरगुजा के ही एक बड़े नेता टीएस सिंह देव का प्रतिस्पर्धी माना जाता है और दोनों के बीच सामंजस्य बेहतर नहीं, यही कारण है कि यह माना जा रहा है कि टीएस सिंह देव के समर्थक अमरजीत भगत के लिए काम करेंगे इसे लेकर असमंजस की स्थिति है।
1951 से लेकर 2018 तक जीत को तरस रही भाजपा के लिए सेना का जवान कितना बड़ा तारणहार होता है। यह तो 2023 के चुनाव परिणाम यानी 3 दिसंबर को ही पता चल सकेगा लेकिन एक तरफ अमरजीत भगत अपने जीत को लेकर पूरे आस्वस्त नजर आ रहे हैं, तो दूसरी तरफ भाजपा के प्रत्याशी ने भी अपने जीत को लेकर उम्मीद ही नहीं दावा किया है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि एक तरफ राजनेता और दूसरी तरफ सेना के जवान में जीत किसकी होती है। क्योंकि इस लड़ाई की चर्चा न सिर्फ सीतापुर बल्कि पूरे प्रदेश में ही हो रही है।
IBC24 की अन्य बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करें