नई दिल्ली। Electric Shock: घर में कुछ भी काम करते समय एक न एक बार ऐसा आपको साथ जरुर हुआ होगा कि करंट लगा हो। करंट लगते ही इंसान सहम हो जाता है, लेकिन आपके लिए ये जानना बेहद जरुरी है कि क्या हर प्रकार के करंट से व्यक्ति की मौत हो जाती है। आपको ये जानकर हैरानी होगी की आपका शरीर एक हद तक करंट झेल सकती है। करंट के भी प्रकार होते है जो इंसान को एक हद तक करंट झेलने और जान से हाथ धोने तक की लेवल के होते हैं। करंट के 5 प्रकार होते हैं, जिनका हमारे शरीर पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।
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Electric Shock: पहला करंट 1 mA का होता है। करंट की यह मात्रा सहन करने योग्य होती है। हालांकि यही करंट अगर शरीर में ज्यादा देर तक रहे तो पीड़ित को नुकसान भी हो सकता है। दूसरे प्रकार का करंट 5 mA का होता है। इसमें पीड़ित को करंट लगने पर हल्का झटका लगता है और इसके साथ ही बिजली उसे छोड़ देती है। इस क्षमता का करंट लगने से इंसान को शरीर में कुछ समय के लिए झनझनाहट होने लगती है। हालांकि यह करंट लगने पर वह कुछ समय तक सुन्न हो जाता है।
Electric Shock: तीसरी श्रेणी में 6 -16 mA का करंट किसी इलेक्ट्रिक उपकरण में बह रहा होता है। उस उपकरण से बॉडी का कोई हिस्सा टच हो जाने पर इंसान वहीं चिपककर खड़ा हो जाता है और अपनी सुध-बुध खोने लगते है। इस स्थिति को लेट गो स्थिति कहा जाता है। अगर तुरंत ही कोई बिजली स्विच ऑफ कर दे तो पीड़ित की जान बचाई जा सकती है। साथ ही प्लास्टिक या सूखे डंडे से पीड़ित को अलग कर देने पर भी उसे बचाया जा सकता है।
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Electric Shock: 17 -99 mA का करंट सबसे खतरनाक होता है। इस प्रकार के करंट की चपेट में आने से इंसान वहीं पर चिपककर खड़ा हो जाता है। करंट लगने से पीड़ित के शरीर के अंग और अंदरुनी कोशिकाएं धीरे-धीरे सिकुड़नी शुरू हो जाता है। उसके खून का प्रवाह रुकने लगता है और सांस अटकने लगती है। उसका दिमाग और शरीर का कोई हिस्सा काम नहीं करता और कुछ ही मिनटों में वह धीरे-धीरे मौत के मुंह में समा जाता है। अगर वक्त रहते बिजली बंद कर दी जाए या पीड़ित को किसी सेफ चीज से मारकर बिजली के उपकरण से बचा लिया जाए तो उसकी जान बचने के चांस होते हैं।
सबसे खतरनाक करंट
Electric Shock: 100-2000 mA का करंट सबसे खतरनाक होता है। अगर गलती से इंसान इस करंट की चपेट में आ जाए तो उसका सीधा अटैक हार्ट पर होता है और वह सिकुड़ने लगता है। जिससे शरीर के बाकी अंगों को खून और ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं होती है, इससे वे अंग भी सिकुड़ने लगते हैं। कुछ ही सेकंडों में पीड़ित का ब्रेन भी काम करना बंद कर देता है और हार्ट अटैक से उसकी मौत हो जाती है।