हवा में उड़ते रंग-बिरंगे गुलाल, जोर-शोरों से डीजे में बजते गाने, भांग की मस्ती में मग्न लोग, शोरगुल कर पिचकारियों से खेलते बच्चे और गुजिया-पकवानों का आनंद लेते बुजुर्ग। कुछ ऐसा ही देश भर में माहौल होता है होली के दिन। पूरा देश जब गुलाल के रंग और भांग की मस्ती में मग्न रहता है। तब बैतूल के डहुआ गांव में सन्नाटा पसरा रहता है।
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डहुआ गांव एक ऐसा गांव हैं जहां पिछले 100 सालों से ग्रामीणों ने होली ही नहीं खेली है। वहीं जब कभी ग्रामीणों ने होली खेलने की कोशिश भी की तो किसी-न-किसी अनहोनी ने आकर रोड़ा डाल ही दिया। डहुआ गांव के ग्रामीण बताते हैं कि 100 साल पहले गांव के प्रधान नड़भया मगरदे की होली के दिन रंग गुलाल खेलते वक्त गांव की ही एक बावड़ी में डूबने से मौत हो गई थी। जिसके बाद एक-दो साल तक तो होली नहीं मनाई गई, लेकिन जैसे एक बार होली मनाने की कोशिश की गई तो गांव के ही एक परिवार में फिर किसी का देहांत हो गया।
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होली के दिवस यहां की सड़कें वीरान हो जाती हैं। गांव में बहु बनकर आई महिलाएं भी बुजुर्गों की इस परंपरा को निभा रही हैं। महिलाओं का कहना है कि उनके मायके में रंग-गुलाल से होली मनाते है और खेलते आ रही हैं। यहां स्थित ससुराल में जबसे शादी हुई है, उन्होंने होली नहीं मनाई है। वहीं जब होली न मनाने का कारण सुना तो इस माहौल में खुद ही ढल गईं। भले ही इस गांव में 100 सालों से होली के दिन होली नहीं मनाई गई हो लेकिन रंग पंचमी पर ग्रामीण पूरे हर्षोल्लास के साथ रंग का यह पर्व मनाते हैं।
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