Lateral Entry Vacancy Cancelled: UPSC में लेटरल एंट्री को लेकर बहस छिड़ने के बीच मंगलवार को केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री के विज्ञापन पर रोक लगा दी है। इस संबंध में कार्मिक मंत्री ने जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी की चेयरमैन प्रीति सुदन को पत्र लिखा है और यह भर्ती रद्द करने को कहा है। इस पत्र में जितेंद्र सिंह ने कहा कि पीएम नरेंद्र का दृढ़ निश्चय है कि संविधान में दिए गए समानता के अधिकार के तहत ही लेटरल एंट्री वाली भर्ती भी होनी चाहिए। खासतौर पर देश में आरक्षण से कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। बता दें कि विपक्ष की ओर से इस भर्ती पर सवाल उठाए गए थे और इसे आरक्षण खत्म करने की कोशिश बताया था।
कार्मिक मंत्री ने UPSC की चेयरमैन को लिखा पत्र
कार्मिक मंत्री ने कहा कि पीएम मोदी का मानना है कि, सार्वजनिक नौकरियों में सामाजिक न्याय सरकार के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता होनी चाहिए। इस आरक्षण का उद्देश्य इतिहास में हुए अन्याय का उन्मूलन और समाज में समावेश और समरसता को बढ़ावा देना है। केंद्रीय मंत्री ने अपने पत्र में यह भी कहा कि लेटरल एंट्री वाले पदों को विशेषज्ञता वाला माना जाता है। ये सिंगल काडर पोस्ट होती हैं, इसलिए अब तक इनमें आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था। इसलिए इसकी समीक्षा किए जाने की जरूरत है और फिर सुधार किया जाए। इसलिए मैं यूपीएससी से कहूंगा कि वह 17 अगस्त को जारी लेटरल एंट्री वाले विज्ञापन को रद्द कर दे। ऐसा करना सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण के लिहाज से बेहतर होगा।
17 अगस्त को जारी हुआ था विज्ञापन
बता दें कि UPSC ने 17 अगस्त को एक विज्ञापन जारी किया था, जिसमें लेटरल एंट्री के जरिए 45 जॉइंट सेक्रेटरी, डिप्टी सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल की भर्तियां निकाली गई थी। लेटरल भर्ती में कैंडिडेट्स बिना UPSC की परीक्षा दिए रिक्रूट किए जाते हैं, इसमें आरक्षण के नियमों का भी फायदा नहीं मिलता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती कर खुलेआम SC, ST और OBC वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है।
विपक्ष पर साधा निशाना
केंद्रीय मंत्री ने अपने पत्र में विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट ही 2005 में यूपीए सरकार में आया था। यह सभी जानते हैं कि सैद्धांतिक तौर पर 2005 में लेटरल एंट्री का प्रस्ताव आया था। तब वीरप्पा मोइली के नेतृत्व में एक प्रशासनिक सुधार आयोग बना था, जिसमें ऐसी सिफारिशें की गई थीं। इसके बाद 2013 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें भी इसी दिशा में थीं। हालांकि, उससे पहले और बाद में भी लेटरल एंट्री के कई मामले सामने आए थे।
UPA सरकार के राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में रखे गए लोगों का भी उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि 2014 से पहले लेटरल एंट्री के जरिए अपने पसंदीदा लोगों को रखा जाता था। हमारी सरकार ने इसे संस्थागत और पारदर्शी तरीके से करने का फैसला लिया है। गौरतलब है कि यूपीए सरकार में सलाहकार परिषद की मुखिया खुद सोनिया गांधी थीं और उसमें हर्ष मंदर, फराह नकवी जैसे कई लोग सदस्य के तौर पर शामिल थे।