(ओलाफ लिपिंस्की, साउथम्पटन विश्वविद्यालय)
साउथम्पटन (ब्रिटेन), नौ नवंबर (द कन्वरसेशन) वर्ष 2016 की साइंस फिक्शन फिल्म ‘अराइवल’ में एक भाषाविद् को पैलिंड्रोमिक वाक्यांशों से बनी एक एलियन (परग्रही) भाषा को समझने के चुनौतीपूर्ण कार्य का सामना करना पड़ता है।
यह एलियन भाषा गोलाकार प्रतीकों के साथ लिखी गई है और आगे की तरह पीछे की ओर से भी उसी तरह पढ़ी जाती है।
जैसे-जैसे भाषाविद् विभिन्न सुराग खोजती है, दुनिया भर के विभिन्न देश एलियन भाषा के वाक्यांशों की अलग-अलग व्याख्या करते हैं – कुछ लोग यह मान लेते हैं कि यह किसी खतरे का संदेश दे रहे हैं।
यदि मानवता आज ऐसी स्थिति में पहुंच जाए, तो हमारे लिए सबसे अच्छा विकल्प यह होगा कि हम इस बात पर शोध करें कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) किस प्रकार भाषाओं का विकास करती है।
लेकिन भाषा की परिभाषा क्या है? हममें से ज़्यादातर लोग अपने आस-पास के लोगों से संवाद करने के लिए कम से कम एक भाषा का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन यह कैसे अस्तित्व में आई? भाषाविद् दशकों से इस प्रश्न पर विचार कर रहे हैं, फिर भी यह जानने का कोई आसान तरीका नहीं है कि भाषा का विकास कैसे हुआ।
भाषा क्षणभंगुर है, यह जीवाश्म अभिलेखों में कोई जांच योग्य निशान नहीं छोड़ती है। हड्डियों के विपरीत, हम प्राचीन भाषाओं के बारे में यह अध्ययन नहीं कर सकते कि वे समय के साथ कैसे विकसित हुईं।
यद्यपि हम मानव भाषा के वास्तविक विकास का अध्ययन करने में असमर्थ हैं, फिर भी शायद सिमुलेशन (सतत अनुकरण) कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।
यहीं पर एआई की भूमिका आती है – यह अनुसंधान का एक आकर्षक क्षेत्र है जिसे आकस्मिक संचार कहा जाता है, और इसका अध्ययन करने में मैंने पिछले तीन वर्ष बिताए हैं।
भाषा किस प्रकार विकसित हो सकती है, इसका अनुकरण करने के लिए हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता के एजेंटों को सरल कार्य देते हैं, जिनमें संचार की आवश्यकता होती है, जैसे कि एक खेल जिसमें एक रोबोट को दूसरे रोबोट को मानचित्र दिखाए बिना ग्रिड पर एक विशिष्ट स्थान पर मार्गदर्शन करना होता है।
हम इस बात पर लगभग कोई प्रतिबंध नहीं लगाते कि वे (एजेंट) क्या कह सकते हैं या कैसे कह सकते हैं – हम बस उन्हें कार्य देते हैं और उन्हें इसे अपनी इच्छानुसार हल करने देते हैं।
क्योंकि इन कार्यों को हल करने के लिए एजेंटों को एक-दूसरे के साथ संवाद करने की आवश्यकता होती है, इसलिए हम यह अध्ययन कर सकते हैं कि समय के साथ उनका संचार किस प्रकार विकसित होता है, ताकि यह अंदाजा लगाया जा सके कि भाषा किस प्रकार विकसित हो सकती है।
इसी तरह के प्रयोग इंसानों के साथ भी किए गए हैं। कल्पना कीजिए कि आप, जो अंग्रेजी बोलते हैं, किसी गैर-अंग्रेजी बोलने वाले व्यक्ति के साथ जोड़े गए हैं। आपका कार्य अपने साथी को मेज पर रखी वस्तुओं में से एक हरा घन चुनने का निर्देश देना है।
आप अपने हाथों से घन की आकृति बनाने की कोशिश कर सकते हैं और खिड़की के बाहर घास की ओर इशारा करके हरे रंग का संकेत दे सकते हैं। समय के साथ आप दोनों मिलकर एक तरह की प्रोटो-भाषा विकसित कर लेंगे। हो सकता है कि आप ‘घन’ और ‘हरे’ के लिए विशिष्ट इशारे या प्रतीक बनाएं।
बार-बार बातचीत के माध्यम से, ये सुधारित संकेत अधिक परिष्कृत और सुसंगत हो जाएंगे, जिससे एक बुनियादी संचार प्रणाली बन जाएगी।
यह एआई के लिए भी इसी तरह काम करता है। परीक्षण और त्रुटि के माध्यम से, वे उन वस्तुओं के बारे में संवाद करना सीखते हैं जिन्हें वे देखते हैं, और उनके बातचीत करने वाले साथी उन्हें समझना सीखते हैं।
लेकिन हम कैसे जान सकते हैं कि वे किस बारे में बात कर रहे हैं? अगर वे इस भाषा को केवल अपनी कृत्रिम बातचीत करने वाले साथी के साथ ही विकसित करते हैं और हमारे साथ नहीं, तो हम कैसे जान सकते हैं कि प्रत्येक शब्द का क्या अर्थ है? आखिरकार, एक विशिष्ट शब्द का अर्थ “हरा”, “घन” या इससे भी बदतर – दोनों हो सकता है। व्याख्या की यह चुनौती मेरे शोध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
कोड का पता लगाना——–
एआई भाषा को समझने का कार्य पहली नजर में लगभग असंभव लग सकता है। यदि मैं किसी ऐसे सहयोगी से पोलिश (मेरी मातृभाषा) में बात करने की कोशिश करता जो केवल अंग्रेजी बोलता हो, तो हम एक-दूसरे को समझ नहीं पाते, यहां तक कि यह भी नहीं जान पाते कि प्रत्येक शब्द कहां से शुरू और कहां समाप्त होता है।
एआई भाषाओं के साथ चुनौती और भी बड़ी है, क्योंकि वे सूचना को मानव भाषायी पैटर्न से पूरी तरह से अलग तरीके से व्यवस्थित कर सकती हैं।
सौभाग्य से, भाषाविदों ने अज्ञात भाषाओं की व्याख्या करने के लिए सूचना सिद्धांत का उपयोग करके परिष्कृत उपकरण विकसित कर लिए हैं।
जिस प्रकार पुरातत्ववेत्ता प्राचीन भाषाओं की जानकारियों को जोड़कर उन्हें एकत्रित करते हैं, उसी प्रकार हम उनकी भाषायी संरचना को समझने के लिए कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) वार्तालाप में पैटर्न का उपयोग करते हैं।
कभी-कभी हमें मानवीय भाषाओं से आश्चर्यजनक समानताएं मिलती हैं, और कभी-कभी हम संचार के बिलकुल नए तरीके खोज लेते हैं।
(द कन्वरसेशन) रवि कांत नेत्रपाल
नेत्रपाल