नेतन्याहू ने शांति के बजाय युद्ध को क्यों चुना?

नेतन्याहू ने शांति के बजाय युद्ध को क्यों चुना?

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  • Publish Date - September 12, 2024 / 05:54 PM IST,
    Updated On - September 12, 2024 / 05:54 PM IST

(मार्टिन केयर, सिडनी विश्वविद्यालय)

सिडनी, 12 सितंबर (360इन्फो) विरोध प्रदर्शन जैसे-जैसे बढ़ रहे हैं बेंजामिन नेतन्याहू सत्ता पर काबिज होने की कोशिश कर रहे हैं और यह नुकसान की परवाह किए बिना अपने राजनीतिक और कानूनी भविष्य को आकार देने की एक चाल प्रतीत होती है।

युद्ध से थके और क्रोधित हजारों इजराइली सप्ताह दर सप्ताह सड़कों पर उतर रहे हैं और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से समझौता करने तथा सात अक्टूबर को हमास के हमले के बाद बंधक बनाए गए बंधकों (बचे हुए) को वापस लाने की मांग कर रहे हैं।

उनकी मांगों पर कोई जवाब नहीं मिला है।

इन विशाल सार्वजनिक प्रदर्शनों में 18 महीनों में सबसे बड़ी राष्ट्रव्यापी हड़ताल भी शामिल है। हमास के साथ किसी भी समझौते के लिए नयी शर्तें तथा युद्ध को दूसरे वर्ष में भी जारी रखने की प्रतिबद्धताएं सामने आई हैं।

750,000 से अधिक प्रदर्शनकारियों द्वारा इस्तीफे और युद्ध की समाप्ति की मांग के बावजूद भविष्य के लिए नेतन्याहू की एकमात्र योजना सत्ता पर काबिज रहना और हमास के खिलाफ लड़ाई जारी रखना ही प्रतीत होती है।

विरोध प्रदर्शन की शुरुआत कैसे हुई?

सितंबर की शुरुआत में गाजा में छह और इजरायली बंधकों के मृत पाए जाने के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हुए।

प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांग यह है कि नेतन्याहू, हमास के साथ युद्ध विराम पर हस्ताक्षर करें जिससे सात अक्टूबर 2023 के हमलों के बाद से बंदी बनाए गए शेष इजराइली नागरिकों की रिहाई हो सके।

बढ़ते सार्वजनिक असंतोष के बावजूद नेतन्याहू ने किसी भी युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है तथा किसी भी संभावित समझौते में नई शर्तें जोड़ना जारी रखा है।

नवीनतम विवाद इजरायल की इस जिद पर है कि वह फिलाडेल्फी कॉरिडोर में अपनी स्थायी सैन्य उपस्थिति बनाए रखे। फिलाडेल्फी कॉरिडोर गाजा पट्टी और मिस्र के बीच की सीमा पर स्थित भूमि की एक पट्टी है।

हमास ऐसी किसी भी शर्त को मानने से इनकार करता है तथा मांग करता है कि सभी इजराइली सैनिकों को गाजा पट्टी खाली कर देनी चाहिए।

मिस्र ने भी अपनी सीमा पर इजराइली सैनिकों की तैनाती की संभावना पर चिंता व्यक्त की है।

नेतन्याहू पर जनता के दबाव के अलावा उनके सत्तारूढ़ गठबंधन के अंदर और बाहर से भी राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है।

नेतन्याहू के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी उन पर इजराइली जनता से झूठ बोलने और बंधकों को वापस लाने के किसी भी समझौते से पहले अपने राजनीतिक अस्तित्व को प्राथमिकता देने का आरोप लगा रहे हैं।

उनके गठबंधन के अंदर हमास का नामोनिशान मिटाने तक युद्ध जारी रखने का दबाव अधिक है।

नेतन्याहू की मौजूदा दुविधा की जड़ में 2016 में लगे भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं। इसके बाद पुलिस जांच में नेतन्याहू पर 2019 में विश्वासघात, रिश्वत लेने और धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए।

आरोप सार्वजनिक होने के बाद से नेतन्याहू ने अदालत के सामने आने, दोषी ठहराए जाने और जेल की सजा से बचने के लिए विभिन्न राजनीतिक चालें चलीं।

शुरुआत में इसमें न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने के लिए संसदीय प्रक्रियाओं का उपयोग करना शामिल था।

जब ये प्रयास विफल हो गए तो मई 2020 में नेतन्याहू पर मुकदमा शुरू हुआ। इसके बाद मार्च 2021 में नेतन्याहू चुनाव हार गए, जिससे उन्हें कोई संस्थागत संरक्षण नहीं मिला।

राजनीतिक सौदेबाजी से कोई रास्ता नहीं निकलता

इजराइल में सिर्फ एक संसदीय सदन है इसलिए उच्चतम न्यायालय, नेसेट की शक्ति पर नियंत्रण और संतुलन का काम करता है। सरकार की मंशा यह सुनिश्चित करना है कि जजों की नियुक्ति करने वाली समिति में हमेशा उसका बहुमत बना रहे। यह बात कई इजराइलियों के लिए विशेष चिंता का विषय थी।

विरोधियों को डर था कि इन सुधारों से नेतन्याहू को उच्चतम न्यायालय में उनसे सहानुभूति रखने वाले न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति मिल जाएगी और संभवतः इससे अभियोजन से छूट मिल जाएगी।

राष्ट्रवादियों के लिए, प्रस्तावित सुधार इजराइली बस्तियों के विस्तार और पश्चिमी तट में फलस्तीनी भूमि के विनियोग (किसी चीज को बिना अनुमति के लेने की क्रिया) पर उच्चतम न्यायालय द्वारा लगाए गए कई संस्थागत नियंत्रणों और संतुलनों को हटा देंगे, कुछ ऐसा जो इजराइली राष्ट्रवादी वर्षों से चाहते थे।

यदि यह सफल रहा तो इसका अर्थ यह होगा कि पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम पर इजराइल का 57 वर्षों से चला आ रहा कब्जा स्थायी हो जाएगा। यह भविष्य में किसी भी फलस्तीनी राज्य के लिए खतरे की घंटी होगी और यह बात हमास की नजरों से छिपी नहीं रहेगी।

प्रस्तावित सुधारों के कारण जनवरी से अक्टूबर 2023 तक इजराइल में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए।

7 अक्टूबर को जब हमास ने हमला किया, तब जाकर नेतन्याहू की सरकार को कुछ राहत मिली।

लेकिन सात अक्टूबर को हमास के हमलों ने नेतन्याहू के लिए एक अतिरिक्त समस्या खड़ी कर दी, क्योंकि सुरक्षा को लेकर यह एक बड़ी चूक थी। इसमें बड़ी संख्या में यहूदियों की जान चली गयी।

अपने पूरे राजनीतिक जीवन में नेतन्याहू ने हमेशा खुद को एकमात्र ऐसे राजनेता के रूप में पेश किया है जो यहूदियों और इजराइल की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम है।

इसमें फ़लस्तीनी राज्य की संभावना को स्वीकार करने से इनकार करना शामिल है, जिसे वह इज़राइल के लिए अस्तित्व का ख़तरा मानते हैं। यह तथ्य कि नेतन्याहू इस विशाल सुरक्षा विफलता के लिए जिम्मेदार हैं, उनकी राजनीतिक लोकप्रियता के मूल में चोट करता है।

इससे वह राजनीतिक रूप से कमजोर हो गए और सत्ता में बने रहने के लिए उन्हें अपने गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर होना पड़ा।

यदि इनमें से कोई भी पार्टी गठबंधन छोड़ती है, तो उसके पास नेसेट में बहुमत नहीं रहेगा, जिसका अर्थ है कि नए चुनाव होंगे, जिसमें वर्तमान राजनीतिक माहौल को देखते हुए नेतन्याहू के हारने की संभावना है।

राजनीतिक और न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने में असमर्थ नेतन्याहू ने स्वयं को उस न्याय प्रणाली की दया पर पाया जिसे वह कमजोर करना चाहते थे।

परिणामस्वरूप नेतन्याहू सत्ता में बने रहने के लिए जो भी आवश्यक है वह करने के लिए कृतसंकल्प हैं।

इजराइली सेना ने हाल ही में अक्टूबर 2023 के बाद से वेस्ट बैंक में सबसे बड़ी सैन्य घुसपैठ भी शुरू की है। गाजा में मारे गए 41,000 से अधिक फलस्तीनियों के अलावा वेस्ट बैंक में 650 से अधिक फलस्तीनी मारे गए हैं।

इजराइल का दावा है कि वह आतंकवाद से लड़ रहा है, इन कार्रवाइयों का अंतिम उद्देश्य गाजा में इजराइल की कार्रवाइयों के साथ-साथ, इजराइल के कब्जे और फलस्तीनी भूमि पर उसके कब्जे के खिलाफ किसी भी संगठित फलस्तीनी प्रतिरोध को कुचलना प्रतीत होता है।

यदि यह सफल रहा तो राष्ट्रवादियों का नदी से समुद्र तक यहूदी राज्य का सपना पहले से कहीं अधिक सच होने के निकट हो जाएगा।

(360इन्फो)

शुभम नरेश

नरेश