(शीना क्रुकशैंक, मैनचेस्टर विश्वविद्यालय)
मैनचेस्टर, दो सितंबर (द कन्वरसेशन) ब्रिटेन में खाद्य एलर्जी के शिकार लोगों की संख्या वर्ष 2008 से 2018 के बीच दोगुना से भी ज्यादा हो गई है। इंपीरियल कॉलेज लंदन के एक नये अध्ययन से यह बात सामने आई है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि प्री-स्कूल बच्चों में खाद्य एलर्जी दर सबसे अधिक है और उनमें से चार फीसदी ‘संभावित रूप से’ इससे जूझ रहे हैं। उन्होंने यह भी पाया कि ‘एनाफिलेक्सिस’ (एक जानलेवा एलर्जी प्रतिक्रिया) के जोखिम वाले एक-तिहाई लोग शरीर में एड्रेनलिन पहुंचाने वाली ‘ऑटोइंजेक्टर पेन’, जैसे कि ‘एपिपेन’ का इस्तेमाल नहीं करते। पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोगों के गंभीर एलर्जी प्रतिक्रिया के दौरान शरीर में जीवनरक्षक दवा पहुंचाने वाले इस उपकरण का इस्तेमाल करने की दर बेहद कम है।
खाद्य एलर्जी के शिकार लोगों की वास्तविक संख्या का पता लगाना मुश्किल रहा है और बच्चों में इसकी दर एक फीसदी से लेकर नौ फीसदी से ज्यादा होने का अनुमान है। यह इसलिए क्योंकि खाद्य एलर्जी से पीड़ित लोगों की संख्या आंकने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें ‘एड्रेनलिन पेन’ के प्रयोग का चिकित्सकीय परामर्श, लोगों द्वारा एलर्जी का शिकार होने की जानकारी दिया जाना और पीड़ितों की पहचान के लिए शरीर में एंटीबॉडी का पता लगाने वाली रक्त जांच करना शामिल है।
लोगों द्वारा एलर्जी का शिकार होने की जानकारी दिया जाना सबसे कम भरोसेमंद तरीका है, क्योंकि कई लोग किसी खास खाद्य वस्तु को पचाने की असमर्थता को अक्सर एलर्जी समझ बैठते हैं। यह बात ब्रिटेन की खाद्य मानक एजेंसी की हालिया रिपोर्ट से भी स्पष्ट है।
इस रिपोर्ट में 30 फीसदी से अधिक लोगों ने किसी खास खाद्य वस्तु के सेवन के बाद विभिन्न लक्षण उभरने की बात कही थी, लेकिन जांच में इनमें से महज छह प्रतिशत के खाद्य एलर्जी से पीड़ित होने की पुष्टि हुई। अंतर को देखते हुए इंपीरियल कॉलेज के शोधकर्ताओं ने खाद्य एलर्जी से जूझ रहे लोगों का पता लगाने के लिए ब्रिटेन में 75 लाख लोगों के स्वास्थ्य देखभाल डेटा और कई क्लीनिकल मानकों का सहारा लिया।
ऐसे लोगों को एलर्जी से पीड़ित माना गया, जिनके चिकित्सक ने उनके संभावित या स्पष्ट रूप से एलर्जी का शिकार होने के संकेत दिए, या फिर उन्हें ‘एड्रेनलिन पेन’ के इस्तेमाल का सुझाव दिया, या फिर दोनों। इस तरीके के इस्तेमाल से पता चला कि ब्रिटेन में एक दशक में खाद्य एलर्जी से पीड़ित लोगों की संख्या दोगुना से अधिक हो गई। हालांकि, 2018 के बाद से खाद्य एलर्जी दर प्री-स्कूल बच्चों में लगभग 4 प्रतिशत, स्कूल-आयु वर्ग के बच्चों में 2.4 प्रतिशत और वयस्कों में एक प्रतिशत से कम पर स्थिर है।
अध्ययन के नतीजे ‘द लांसेट पब्लिक हेल्थ’ पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।
अबूझ पहेली
-विकसित देशों में खाद्य एलर्जी से पीड़ित आबादी में वृद्धि की वजह वैज्ञानिकों के लिए वर्षों से अबूझ पहेली बनी हुई है। ‘ओल्ड फ्रेंड्स हाइपोथेसिस’ भी खाद्य एलर्जी के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार हो सकती है।
यह परिकल्पना हमारी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को आकार देने और इसके गलत तरीके से काम करने में माइक्रोबियम (शरीर के अंदर-बाहर रहने वाले सहायक जीवाणु, कवक और विषाणु का समूह), संक्रमण और पर्यावरण की भूमिका पर प्रकाश डालती है।
इस परिकल्पना का समर्थन करने वाले कई साक्ष्य मिले हैं। उदाहरण के लिए, अध्ययनों से पता चला है कि बचपन में प्रतिरक्षा प्रणाली और माइक्रोबियम के विकास के दौरान एंटीबायोटिक दवाओं का अधिक इस्तेमाल बाद के जीवन में एलर्जी के प्रति अधिक संवेदनशील बनने का कारण बनता है।
प्रदूषण भी एलर्जी का खतरा बढ़ा सकता है और लक्षणों को अधिक तीव्र कर सकता है।
जीवन के शुरुआती वर्षों में हम जिन खाद्य वस्तुओं का सेवन करते हैं, वे यह निर्धारित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं कि हमें खाद्य एलर्जी होगी या नहीं। कम उम्र में मूंगफली और अंडे न खिलाने संबंधी ब्रिटिश सरकार का पूर्व परामर्श अप्रत्यक्ष रूप से मूंगफली और अंडों से एलर्जी की बढ़ती दर का नतीजा हो सकता है।
खाद्य एलर्जी के शिकार वयस्क अपना आहार तय करने के लिए आहार विशेषज्ञों की मदद ले सकते हैं। वहीं, जिन बच्चों में खाद्य एलर्जी की पुष्टि होती है, उन्हें चिकित्सकीय सलाह के आधार पर धीरे-धीरे संबंधित खाद्य वस्तु देकर, उनके प्रतिरोधक तंत्र को एलर्जी से निपटने और समय बीतने के साथ इस पर काबू पाने के लिए तैयार किया जा सकता है।
(द कन्वरसेशन) पारुल नरेश
नरेश