पूरी तरह काले या सफेद जानवरों को लेकर सोच अंधविश्वास पर आधारित

पूरी तरह काले या सफेद जानवरों को लेकर सोच अंधविश्वास पर आधारित

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  • Publish Date - October 27, 2024 / 10:51 AM IST,
    Updated On - October 27, 2024 / 10:51 AM IST

(एलिजाबेथ कार्लेन, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी और टायस विलियम्स, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले)

बर्कले, 27 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) कल्पना कीजिए कि पतझड़ में मौसम में सुबह-सुबह धूप खिली है। आप कॉफी की एक स्थानीय दुकान से अभी-अभी निकले हैं और अपने दिन की शुरुआत करने के लिए तैयार हैं।

तभी आप कनखियों से झाड़ियों में कुछ हिलता हुआ देखते हैं। आप यह देखने के लिए आगे बढ़ते हैं कि यह कोई गिलहरी है या रॉबिन पक्षी है। जैसे-जैसे आप करीब जाते हैं तो छवि स्पष्ट होते ही आपकी सांस थम सी जाती है। यह एक काली बिल्ली है जो सुबह की सैर पर निकली है।

अब आप एक पल के लिए रुककर यह सोचते हैं कि अब आपको क्या करना हैं। क्या आप सड़क पार करेंगे ताकि बिल्ली आपका रास्ता न काट सके? क्या आप हिम्मत जुटाकर बिल्ली के पास से निकल जाएंगे या फिर उसे सहलाने के लिए नीचे झुकेंगे? तार्किक रूप से, आप जानते हैं कि काली बिल्ली को अशुभ मानने की धारणा केवल एक मूर्खतापूर्ण अंधविश्वास है… लेकिन आज दोपहर आपको एक अहम बैठक में शामिल होना है और आप ऐसे में कुछ अशुभ होने से बचना चाहते हैं।

काली बिल्लियों और अन्य काले जानवरों से जुड़े अंधविश्वासों ने जानवरों के संबंध में लोगों की पसंद को आकार दिया है। अधंविश्वास और इस सोच के कारण काली बिल्लियों को गोद लेने की दर कम है कि वे अधिक आक्रामक होती हैं। ये पूर्वाग्रह निराधार हैं।

मानव-वन्यजीव अंतःक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले दो जीवविज्ञानियों के रूप में, हमें यह बात डरावनी लगती है कि कैसे अंधविश्वास, लोककथाएं और मिथक आपके अवचेतन को आकार दे सकते हैं। ये विशेष रूप से उन जानवरों के प्रति पूर्वाग्रह पैदा करते हैं जिन्हें लोग संरक्षित और सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं।

केवल काले या सफेद जानवर की दुर्लभता

वैज्ञानिकों के अनुसार, किसी जानवर का पूरी तरह काला या सफेद होना असामान्य होता है। किसी जानवर का पूरी तरह से काला या पूरी तरह से सफेद होना एक दुर्लभ बात है। इन जानवरों को अपने निवास स्थान में घुलने-मिलने में अक्सर कठिनाई होती है। उनके लिए अपने शिकार पर घात लगाने की कोशिश करना और शिकारियों से खुद को छिपाने का प्रयास करना एक चुनौती है। उन्हें अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने और अपनी प्रजाति के अन्य जानवरों के साथ घुलने-मिलने में भी संघर्ष करना पड़ता है।

रंगों का पुराना नाता है

लोग हजारों वर्षों से एक-दूसरे के साथ ऐसी कहानियां, ज्ञान, किस्से और मिथक साझा करते रहे हैं जिनमें दुनिया को समझाने की कोशिश की जाती है।

कभी-कभी इन कहानियों के जरिए हमारे आस-पास के खतरों को लेकर हमें सतर्क किया जाता है। जब हमारे पूर्वज आग के चारों ओर बैठकर रोमांचक कहानियां सुनाते थे तो वे उस अंधेरे से बचने के लिए ऐसा करते थे जिसके कारण उन्हें खतरा हो सकता था। रंगों को लेकर हमारे इतिहास में स्पष्ट पक्षपात लंबे समय तक बना रह सकता है, जिससे इसे समाप्त करना मुश्किल हो जाता है।

कई मानवीय पूर्वाग्रह स्वयं का जीवन बचाने की प्रतिक्रिया के रूप में विकसित हुए हैं। उदाहरण के लिए, गहरे रंग का रात्रिचर शिकारी इसलिए अधिक खतरनाक होता है क्योंकि उसे रात में देख पाना मुश्किल होता है लेकिन कुछ आधुनिक पूर्वाग्रह हानिकारक विचारधाराओं पर आधारित होते हैं। सफेद रंग ‘‘अच्छाई’’ और ‘‘शुद्धता’’ का पर्याय बन गया है जबकि काला रंग ‘‘बुराई’’ और ‘‘अशुद्धता’’ के साथ जुड़ा माना जाता है। ये धारणाएं हमारे अचेतन मन को प्रभावित करती हैं।

द कन्वरसेशन सिम्मी प्रशांत

प्रशांत