(अदिति खन्ना)
लंदन, 25 दिसंबर (भाषा) ब्रिटेन के एक इतिहासकार ने 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान क्रिसमस पर संघर्ष-विराम की अवधि में भेंट किए गए मसालों के डिब्बों की खोज की है। यह खोज युद्ध में ब्रिटिश साम्राज्य की सेना में शामिल भारतीय सैनिकों के व्यापक योगदान पर प्रकाश डालती है।
‘द टाइम्स’ ने बुधवार को लंदन विश्वविद्यालय के गोल्डस्मिथ्स कॉलेज के प्रोफेसर पीटर डोयले के हवाले से प्रकाशित खबर में एक नये शोध का जिक्र किया है, जिससे पता चलता है कि 110 साल पहले प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब क्रिसमस पर संघर्ष-विराम हुआ और दोनों पक्षों के सैनिकों ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं देने, तोहफों का आदान-प्रदान करने और फुटबॉल खेलने के लिए ‘नो मैन लैंड’ (ऐसी भूमि जिस पर किसी का नियंत्रण या स्वामित्व न हो) में कदम रखा, तब मसालों के ये डिब्बे जर्मन फौजियों के हाथों में पहुंच गए।
डोयले ने पूर्वी इंग्लैंड के बरी सेंट एडमंड्स स्थित ग्रेट वॉर हट्स संग्रहालय में इस संघर्ष-विराम पर आधारित प्रदर्शनी लगाई, जिसमें मसालों के इन डिब्बों से जुड़ी जानकारियां भी प्रदर्शित की गईं।
‘द टाइम्स’ ने डोयले के हवाले से कहा, “यह संघर्ष-विराम सिर्फ ‘एंग्लो-सैक्सन’ से ‘सैक्सन’ के भाईचारे तक सीमित नहीं था। हाल-फिलहाल तक लोगों को वास्तव में इस बात पर यकीन नहीं था कि भारतीय सैनिकों ने संघर्ष-विराम में हिस्सा लिया था, फिर चाहे वे पर्यवेक्षक ही क्यों न रहे हों।”
अखबार में प्रकाशित खबर के मुताबिक, मसालों के ये डिब्बे प्रथम विश्व युद्ध में सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए राजकुमारी मैरी की ओर से भेजे गए क्रिसमस उपहारों में शामिल थे। राजकुमारी मैरी ब्रिटेन के तत्कालीन महाराज जॉर्ज पंचम की बेटी थीं।
खबर के अनुसार, ब्रिटिश सैनिकों के लिए भेजे गए उपहार में धूम्रपान किट और एक सिगरेट कार्ड शामिल था, जिसे भारतीय सेना के ज्यादातर सदस्यों के लिए अनुपयुक्त माना गया था, क्योंकि वे सिगरेट का सेवन नहीं करते थे। खबर में कहा गया है कि भारतीय सैनिकों के लिए भेजे गए उपहार में मसालों के डिब्बे के साथ राजकुमारी मैरी की तस्वीर शामिल थी।
डोयले ने अपनी किताब ‘समुद्री मोर्चा संभाल रहे प्रत्येक नाविक, जमीनी मोर्चे पर तैनात प्रत्येक सैनिक के लिए : राजकुमारी मैरी का क्रिसमस उपहार 1914’ में लिखा है कि उस वक्त महज 17 साल की राजकुमारी मैरी ने कैसे सैनिकों का मनोबल बनाए रखने के लिए उन्हें पसंदीदा तोहफे भेजने का फैसला किया था। किताब के लिए शोध के दौरान डोयले ने मसालों के ऐसे ही एक डिब्बे की खोज की। यह अब तक मिला अपनी तरह का महज दूसरा डिब्बा है।
डोयले को पता था कि 1914 में क्रिसमस पर संघर्ष-विराम के दौरान 39वीं गढ़वाल राइफल्स के जवान फ्रांस के गिवेंची में थे। इसलिए उन्होंने यह जानने के प्रयास में जर्मन इतिहासकार रॉबिन शैफर से संपर्क किया कि क्या मसाले के ये डिब्बे वह भी पहुंचे थे।
शैफर ने अभिलेखों पर नजर दौड़ाई और जर्मन अखबारों में प्रकाशित उन खबरों तक पहुंचे, जिनमें 110 साल पहले संघर्ष-विराम की संक्षिप्त अवधि में सैनिकों को क्रिसमस के उपहार के रूप में मसालों के डिब्बे मिलने का जिक्र है।
एक खबर में जर्मन सैनिक विल्हेल्म एलथॉफ के हवाले से लिखा गया था, “कुछ भारतीयों ने हमें अंजीर और मसालों का चमकीला डिब्बा भेंट किया।” डोयले ने कहा कि खोज किए जाने पर जर्मनी में ऐसे और डिब्बे मिलने की संभावना है।
भाषा पारुल माधव
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