अंतरिक्ष और समुद्र ‘सार्वभौमिक सहयोग’ के विषय हों, संघर्ष के नहीं: गुयाना में प्रधानमंत्री मोदी

अंतरिक्ष और समुद्र ‘सार्वभौमिक सहयोग’ के विषय हों, संघर्ष के नहीं: गुयाना में प्रधानमंत्री मोदी

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  • Publish Date - November 21, 2024 / 10:03 PM IST,
    Updated On - November 21, 2024 / 10:03 PM IST

(तस्वीरों के साथ)

जॉर्जटाउन, 21 नवंबर (भाषा) वैश्विक कल्याण के लिए ‘लोकतंत्र प्रथम, मानवता प्रथम’ का मंत्र देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कहा कि अंतरिक्ष और समुद्र सार्वभौमिक संघर्ष का नहीं, बल्कि ‘‘सार्वभौमिक सहयोग’’ के विषय होने चाहिए।

मोदी ने यहां गुयाना की संसद के विशेष सत्र में, अपने संबोधन में यह भी कहा कि भारत कभी भी स्वार्थ, विस्तारवादी रवैये के साथ आगे नहीं बढ़ा है और वह संसाधनों पर कब्जा करने की भावना से हमेशा दूर रहा है।

तीन देशों की अपनी यात्रा के अंतिम चरण में गुयाना पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी 50 से अधिक वर्षों में इस देश का दौरा करने वाले पहले भारतीय शासनाध्यक्ष हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया के आगे बढ़ने के लिए सबसे बड़ा मंत्र है ‘लोकतंत्र प्रथम, मानवता प्रथम’। लोकतंत्र की भावना सबसे पहले हमें सबको साथ लेकर चलना और सबके विकास में भाग लेना सिखाती है। ‘मानवता प्रथम’ हमारे निर्णय लेने का मार्गदर्शन करती है। जब हम ‘मानवता प्रथम’ की भावना रखते हैं तो हमारे निर्णय लेने का आधार, परिणाम भी वही होते हैं जो मानवता को लाभान्वित करते हैं।’’

मोदी ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि यह ‘‘ग्लोबल साउथ के जागरण का समय है’’, और इसके सदस्यों के एक नयी वैश्विक व्यवस्था बनाने के लिए एक साथ आने का समय है।

उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया के लिए यह संघर्ष का समय नहीं है। यह उन स्थितियों को पहचानने और खत्म करने का समय है जो संघर्ष का कारण बनती हैं।’’

मोदी ने कहा, ‘‘मेरा मानना ​​है कि अंतरिक्ष और समुद्र सार्वभौमिक सहयोग के विषय होने चाहिए, सार्वभौमिक संघर्ष के नहीं।’’

प्रधानमंत्री ने डेढ़ सदी से अधिक पुराने सांस्कृतिक संबंधों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत-गुयाना के ‘मिट्टी’ के संबंध सौहार्दपूर्ण हैं।

उन्होंने कहा कि ‘‘भारत कहता है, हर देश मायने रखता है’’। मोदी ने रेखांकित किया कि भारत द्वीप राष्ट्रों को छोटे देशों के रूप में नहीं, बल्कि बड़े महासागरीय देशों के रूप में देखता है।

मोदी ने कहा कि ‘लोकतंत्र प्रथम, मानवता प्रथम’ की भावना के साथ भारत ‘विश्व बंधु’ के रूप में भी अपना कर्तव्य निभा रहा है और संकट के समय में प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में कार्य करता रहा है।

भाषा नेत्रपाल सुभाष

सुभाष