संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में सिंगापुर के ‘सीवेज बियर’ ने पानी की कमी, नवाचार को किया रेखांकित

संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में सिंगापुर के ‘सीवेज बियर’ ने पानी की कमी, नवाचार को किया रेखांकित

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  • Publish Date - November 21, 2024 / 06:24 PM IST,
    Updated On - November 21, 2024 / 06:24 PM IST

बाकू (अजरबैजान), 21 नवंबर (एपी) संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता के विशाल मंडप में एक काउंटर पर पेय पदार्थ के छोटे-छोटे कैन (डिब्बे) खास तौर पर लोगों का ध्यान खींच रहे हैं।

मंडप के इस खंड में लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए विभिन्न देशों, गैर-लाभकारी संगठनों और प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा बड़े-बड़े व आकर्षक साइनबोर्ड लगाए गए हैं।

मंडप में जो लोग इस डिब्बे के पास जाते हैं, उन्हें पता चलता है कि ये डिब्बे बियर के हैं। इसका ब्रांड नाम न्यूब्रू है और यह मुफ्त उपलब्ध है। लेकिन एक बात है जो किसी को तुरंत पता नहीं चलता, इस बियर को उपचारित अपशिष्ट जल से बनाया जाता है।

कांगो से आए छात्र इग्नेस उर्चिल लोकोउको म्बोआम्बोआ ने हाल में सम्मेलन के दौरान इसका स्वाद चखा था। म्बोआम्बोआ ने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता था। मैं वास्तव में इसके बारे में जानकर हैरान था।’’

न्यूब्रू का निर्माण सिंगापुर में न्यूवाटर के साथ किया जाता है। न्यूवाटर उपचारित अपशिष्ट जल का नाम है, जो विश्व के सर्वाधिक जल-संकटग्रस्त स्थानों में से एक में प्रत्येक बूंद के संरक्षण के राष्ट्रीय अभियान का हिस्सा है।

सम्मेलन में उपस्थित कई लोगों ने इसे मजाक में ‘सीवेज बियर’ का नाम दिया। इस वर्ष अजरबैजान में आयोजित जलवायु वार्ता सीओपी29 के दौरान पर्यावरण संबंधी कई नवाचारों का प्रदर्शन किया जा रहा है। यह बियर भी इसी का हिस्सा है।

उपचारित अपशिष्ट जल के पहलुओं को रेखांकित करती यह प्रदर्शनी जलवायु परिवर्तन के तेज होने के साथ विश्व की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक को रेखांकित करती है। यह बढ़ती जनसंख्या के साथ पेयजल की उपलब्धता पर भी जोर देती है।

सिंगापुर कई वर्षों से जल प्रबंधन और नवाचारों में अग्रणी रहा है। दक्षिण-पूर्व एशिया के 60 लाख आबादी वाले द्वीपीय देश के पास कोई प्राकृतिक जल स्रोत नहीं है। सिंगापुर सबसे घनी आबादी वाले देशों में से एक है।

मलेशिया से पानी के आयात के अलावा पुनर्चक्रण समेत अन्य कदम उठाए जाते हैं। अधिकारियों ने कहा है कि उन्हें सभी जल स्रोतों को बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि 2065 तक पानी की मांग दोगुनी होने का अनुमान है।

एपी आशीष अविनाश

अविनाश