वैज्ञानिकों ने माइक्रोप्लास्टिक पर 7,000 अध्ययनों का विश्लेषण किया, मानवता के लिए खतरे की घंटी |

वैज्ञानिकों ने माइक्रोप्लास्टिक पर 7,000 अध्ययनों का विश्लेषण किया, मानवता के लिए खतरे की घंटी

वैज्ञानिकों ने माइक्रोप्लास्टिक पर 7,000 अध्ययनों का विश्लेषण किया, मानवता के लिए खतरे की घंटी

:   Modified Date:  September 21, 2024 / 05:25 PM IST, Published Date : September 21, 2024/5:25 pm IST

(कैरन रौबेनहाइमर, वोलोंगोंग विश्वविद्यालय)

वोलोंगोंग (ऑस्ट्रेलिया), 21 सितंबर (द कन्वरसेशन) ‘साइंस’ पत्रिका में 20 साल पहले एक शोधपत्र प्रकाशित हुआ था, जिसमें पर्यावरण में प्लास्टिक और फाइबर के सूक्ष्म कण इकट्ठा होने का खुलासा किया गया था। इसमें उक्त कणों को ‘माइक्रोप्लास्टिक’ नाम दिया गया था।

इस शोध पत्र ने अनुसंधान के नए क्षेत्र की शुरुआत की। तब से लेकर अब तक 7,000 से अधिक अध्ययनों में पर्यावरण में, जंगली जानवरों में और मानव शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी की पुष्टि की गई है।

तो आखिरकार हमने क्या सीखा? शनिवार को प्रकाशित एक शोधपत्र में अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के एक समूह ने माइक्रोप्लास्टिक के संबंध में अब तक ज्ञात तथ्यों का सार पेश किया है। इस समूह में मैं भी शामिल हूं।

संक्षिप्त में कहूं तो माइक्रोप्लास्टिक बड़े पैमाने पर फैले हुए हैं और इनके हमारे ग्रह के सुदूरतम हिस्सों में भी जमा होने के संकेत हैं। जैविक परिस्थितिकी तंत्र में हर स्तर पर-खाद्य शृंखला में सबसे निचले पायदान पर मौजूद छोटे कीड़ों से लेकर शीर्ष पर विराजमान शिकारी जीवों तक में, माइक्रोप्लास्टिक के जहरीले प्रभाव के प्रमाण मौजूद हैं।

माइक्रोप्लास्टिक खान-पान के जरिये शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। मानव शरीर के हर भाग में इनकी मौजूदगी दर्ज की गई है। माइक्रोप्लास्टिक के दुष्प्रभावों को लेकर कई प्रमाण भी सामने आ रहे हैं।

वैज्ञानिक साक्ष्य अब ज्यादा पुख्ता हो गए हैं कि माइक्रोप्लास्टिक की समस्या पहले कभी इतनी गंभीर नहीं रही है और इससे निपटने के लिए सामूहिक वैश्विक कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता है।

छोटे कण, बड़ी समस्या

-प्लास्टिक के उन कणों को माइक्रोप्लास्टिक की श्रेणी में रखा जाता है, जिनकी लंबाई पांच मिलीमीटर या उससे कम होती है। कुछ उत्पादों में माइक्रोप्लास्टिक जानबूझकर मिलाए जाते हैं, जैसे कि चेहरे पर लगाए जाने वाले साबुन में ‘माइक्रोबीड’ का इस्तेमाल होता है।

अन्य उत्पादों में प्लास्टिक के बड़े कण टूटने से माइक्रोप्लास्टिक अनजाने में पैदा होता है। मिसाल के तौर पर, पॉलिस्टर की जैकेट धोने के दौरान उससे रेशे निकलते हैं।

कई अध्ययन में माइक्रोप्लास्टिक के कुछ मुख्य स्रोत की पहचान की गई है

-कॉस्मेटिक क्लेंजर

-सिंथेटिक कपड़े

-वाहनों के टायर

-प्लास्टिक की परत वाली खाद

-मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाली रस्सी और जाल

-मिट्टी की ऊपरी परत को ढकने के लिए प्लास्टिक की पतली परत का इस्तेमाल

-कृत्रिम घास वाले मैदान या सतहों में ‘क्रम्ब रबड़’ (ट्रक या अन्य वाहनों के कबाड़ के पुनर्चक्रण से तैयार रबड़) के बुरादे का उपयोग

प्लास्टिक के बड़े कण किस दर से टूटकर माइक्रोप्लास्टिक में तब्दील होते हैं, विज्ञान अभी इसका आकलन नहीं कर पाया है। वैज्ञानिक यह भी पता लगाने की कोशिशों में जुटे हैं कि माइक्रोप्लास्टिक कितनी तेजी से टूटकर ‘नैनोप्लास्टिक’ का रूप अख्तियार करते हैं, जिनका आकार एक माइक्रॉन से कम होता है और जिन्हें नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता है।

माइक्रोप्लास्टिक संकट का आकलन

-हवा, मिट्टी और पानी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक का स्तर आंकना मुश्किल है, लेकिन शोधकर्ताओं ने इसका प्रयास किया है।

उदाहरण के तौर पर, 2020 में प्रकाशित एक शोध में अनुमान लगाया गया था कि समुद्र में हर साल औसतन आठ लाख से 30 लाख टन माइक्रोप्लास्टिक पहुंचता है।

और एक हालिया रिपोर्ट में पर्यावरण में समुद्र के मुकाबले तीन से दस गुना ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक पहुंचने के संकेत दिए गए हैं। अगर यह अनुमान सही है कि तो इसका मतलब है कि हर साल कुल एक करोड़ से चार करोड़ टन माइक्रोप्लास्टिक समुद्र और पर्यावरण में पहुंचता है।

चिंता का विषय यह है कि 2040 तक पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक एकत्र होने की दर दोगुनी होने की आशंका है। अगर इंसान पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक का प्रवाह रोक भी देता है, तो भी प्लास्टिक के बड़े कणों का टूटना जारी रहेगा।

मछलियों, स्तनपायी जीवों, पक्षियों और कीड़ों सहित 1,300 से अधिक जीव-जंतुओं में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी दर्ज की गई है।

कुछ जानवर माइक्रोप्लास्टिक को भोजन समझकर उन्हें निगल लेते हैं, जिससे उनकी आंतों के अवरुद्ध होने सहित अन्य खतरे सामने आते हैं। जानवरों को तब भी नुकसान पहुंचता है, जब उनके शरीर में मौजूद प्लास्टिक कण रसायनों का स्राव करते हैं।

मानव शरीर में कैसे घुसते हैं

-हम जो पानी पीते हैं, जो खाना खाते हैं और जिस हवा में सांस लेते हैं, उन सबमें माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी की पुष्टि हुई है। माइक्रोप्लास्टिक समुद्री आहार से लेकर नमक, शहद, चीनी, बीयर और चाय तक में मिले हैं।

कभी-कभी पर्यावरण में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक खाद्य पदार्थ में मिल जाते हैं। तो कई मामलों में खाद्य प्रसंस्करण, पैकेजिंग और रख-रखाव के दौरान इनके अंश उनमें पहुंच जाते हैं।

पशु उत्पाद, अनाज, फल, सब्जियां, पेय पदार्थ, मसाले और तेल में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का पता लगाने के लिए और डेटा की जरूरत है।

खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता व्यापक रूप से अलग होती है। इसका मतलब है कि दुनियाभर के मनुष्यों में जोखिम का स्तर समान नहीं होता है। हालांकि, इंसान के हर हफ्ते एक क्रेडिट कार्ड के बराबर प्लास्टिक निगलने जैसे अनुमान हकीकत से बहुत परे हैं।

वैज्ञानिकों ने मनुष्य के फेफड़ों, लिवर, किडनी, खून और प्रजनन अंगों में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी दर्ज की है। ये कण हमारे मस्तिष्क और हृदय में भी पाए गए हैं।

हालांकि, कुछ माइक्रोप्लास्टिक मल-मूत्र के रास्ते हमारे शरीर से बाहर निकल जाते हैं, लेकिन कई लंबे समय तक उसमें मौजूद रहते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक का मनुष्य और अन्य जीवों के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है? माइक्रोप्लास्टिक अलग-अलग प्रकृति के होते हैं। उदाहरण के लिए, उनमें अलग-अलग रसायन होते हैं और वे तरल पदार्थ या सूरज की रोशनी के संपर्क में आने पर अलग तरह से प्रतिक्रिया करते हैं। इसके अलावा, जीवों की प्रजातियां भी अलग-अलग होती हैं।

इससे वैज्ञानिकों के लिए माइक्रोप्लास्टिक के दुष्प्रभावों का आकलन जटिल हो जाता है।

हालांकि, मानव स्वास्थ्य पर इसके असर का पता लगाने की दिशा में प्रगति हुई है। आने वाले वर्षों में मानव शरीर पर इन दुष्प्रभावों के संबंध में तस्वीर और भी स्पष्ट हो सकती है :

-सूजन

-ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस (फ्री रैडिकल और एंटीऑक्सीडेंट के बीच असंतुलन, जिससे कोशिशों को नुकसान पहुंचता है)

-प्रतिरोधक तंत्र की कार्यप्रणाली

-जेनोटॉक्सिटी (कोशिका में दर्ज जेनेटिक सूचना के नष्ट होने से जेनेटिक संरचना में बदलाव, जो कैंसर का कारण बन सकता है)

हम क्या कर सकते हैं?

-माइक्रोप्लास्टिक को लेकर लोगों की चिंताएं बढ़ रही हैं। चूंकि, पर्यावरण में जमा माइक्रोप्लास्टिक को हटाना लगभग नामुमकिन है और हमारे लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने का अंदेशा है, इसलिए चिंताएं और विकराल रूप ले रही हैं।

माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण मानव गतिविधियों और फैसलों का नतीजा है। चूंकि, यह समस्या हमने खड़ी की है, इसलिए इसका हल भी हमें ही तलाशना होगा।

कुछ देशों ने माइक्रोप्लास्टिक के स्राव पर लगाम लगाने के लिए कानून लागू किए हैं, लेकिन यह समस्या से निपटने के लिए काफी नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक प्लास्टिक संधि इस दिशा में एक अहम अवसर है। नवंबर में इसे लेकर पांचवें दौर की बातचीत होगी।

वैश्विक प्लास्टिक संधि का मकसद वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक के उत्पादन में कमी लाना है। लेकिन संधि में खासतौर पर माइक्रोप्लास्टिक के स्तर में कमी लाने जैसे उपाय भी शामिल करने होंगे। अंतत: प्लास्टिक कुछ इस तरह से तैयार करना होगा कि उससे माइक्रोप्लास्टिक का स्राव न हो। लोगों और समुदायों को भी सरकारी नीतियों के समर्थन के लिए प्रेरित करना होगा।

माइक्रोप्लास्टिक पर अध्ययन के 20 साल बाद इस दिशा में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। हालांकि, हमारे पास उचित कार्रवाई के लिए अब पहले से ज्यादा साक्ष्य हैं।

(द कन्वरसेशन) पारुल नेत्रपाल

नेत्रपाल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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