अमीर देश प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की बाधाएं और एकतरफा व्यापारिक कदम की समस्या दूर करें : भारत

अमीर देश प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की बाधाएं और एकतरफा व्यापारिक कदम की समस्या दूर करें : भारत

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  • Publish Date - November 18, 2024 / 08:02 PM IST,
    Updated On - November 18, 2024 / 08:02 PM IST

(गौरव सैनी)

बाकू, 18 नवंबर (भाषा) भारत ने सोमवार को विकसित देशों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में आने वाली बाधाओं को दूर करने, सार्वजनिक जलवायु वित्त को बढ़ाने तथा जलवायु कार्रवाई के नाम पर अनुचित व्यापारिक कदम उठाने से बचने का आह्वान किया।

भारत द्वारा यह अपील बाकू में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में 2030 से पूर्व की आकांक्षा पर उच्च स्तरीय मंत्रिस्तरीय गोलमेज सम्मेलन के दौरान की गई।

भारत की पर्यावरण सचिव लीना नंदन ने अमीर देशों से आग्रह किया कि वे उत्सर्जन में कटौती करने और 2030 तक ‘नेट जीरो’ उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने में अग्रणी भूमिका निभाएं। उन्होंने कहा, ‘‘यह मजबूत और सतत भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक है।’’

अधिकारी ने कहा कि नवीन प्रौद्योगिकियां निम्न-कार्बन भविष्य के लिए अहम हैं, लेकिन उन्हें विकासशील देशों के लिए भी सुलभ बनाया जाना चाहिए।

नंदन ने कहा कि विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा और कार्बन निष्कासन जैसे समाधानों की आवश्यकता है, लेकिन बौद्धिक संपदा अधिकार जैसी बाधाएं उनके लिए इन प्रौद्योगिकियों तक पहुंच को कठिन बना देती हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘सीओपी29 को विकासशील देशों के लिए प्रौद्योगिकी को सस्ती, अनुकूलनीय और प्रासंगिक बनाने के लिए व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करना चाहिए।’’

भारत ने विकसित देशों से जलवायु वित्तपोषण के अंतर को पाटने की अपील की जिसकी वजह से विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई में देरी हो रही है।

नंदन ने कहा, ‘‘स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं, आपदा-रोधी बुनियादी ढांचे और जलवायु अनुकूलन के लिए हजारों अरब अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है…यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि विकासशील देशों द्वारा उत्सर्जन कम करने के लिए अपने पांरपरिक तरीके से हटने से होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति विकसित देशों द्वारा सार्वजनिक वित्त के माध्यम से पूरा किया जाए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा न करने से विकासशील देशों के लोगों पर अतिरिक्त लागत आती है, जो समस्या उत्पन्न किए बिना ही जलवायु परिवर्तन का असंगत बोझ उठाते हैं।’’

भारत ने यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) जैसे एकतरफा व्यापार उपायों पर भी कड़ी आपत्ति जताई। भारत ने इस बारे में कहा कि यह जलवायु कार्रवाई की लागत को अनुचित रूप से गरीब देशों पर डाल देता है।

नंदन ने चेतावनी दी कि इन उपायों से अंतरराष्ट्रीय सहयोग को नुकसान पहुंचता है और विकासशील देशों पर वित्तीय बोझ बढ़ता है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने सीबीएएम को ‘‘एकतरफा और मनमाना’’ करार दिया था और कहा था कि इस तरह के उपायों से भारत के उद्योगों को नुकसान पहुंच सकता है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में संतुलन बिगड़ सकता है।

दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार, सीबीएएम भारत से यूरोपीय संघ को निर्यात किए जाने वाले कार्बन-उत्सर्जित करने वाले सामानों पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त कर लगाएगा। यह कर भार देश के सकल घरेलू उत्पाद का 0.05 प्रतिशत होगा।

भाषा धीरज शफीक

शफीक